‘बड़ी मसक्कत कर रहे हो, भीखम चौधरी! इतने सवेरे ही काम कर जुट गये?’ आते ही वैदराज बोले।
‘क्या करूं वैदराज! घर बैठने से पेट तो भरेगा नहीं—।’ भीखम बोला, फिर पुकारा—‘बिटिया, जरा मचिया तो दे जा।’
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‘आई काका!’ मचिया लेकर दौड़ती हुई घटा आई। वैदराज को देखकर बोली—‘पालागी वैदराज मामा!’
‘जीती रहो बिटिया।’ कहते हुए वैदराज ने तीक्ष्ण दृष्टि से घटा की ओर देखा।
घटा सहमकर झोंपड़ी में चली गईं।
वैदराज मचिया पर बैठ गए।
‘घटिया को इधर बहुत दिनों के बाद देखा है, चौधरी।’ वैदराज बोले—‘अब तो काफी बड़ी हो गईं है। तुम्हें इसके विवाह की चिंता है कुछ?’
‘है क्यों नहीं, वैदराज! मगर काछियों के घर इतना बड़ा लड़का मिलना कठिन है। सब लड़कपन में ही शादी कर देते हैं।’
‘तुमने उसके विवाह का जुगाड़ पहले क्यों नहीं किया?’
‘किया था, वैदराज! एक अच्छे घराने में उसका ब्याह कर दिया था, तब वह सिर्फ चार बरस की थी, मगर बिटिया का भाग फूट गया। विवाह के दो बरस बाद ही बिटिया विधवा हो गईं।’
‘तुम लोगों में दुबारा विवाह होता है न, चौधरी?’
‘होता तो है, पर कोई सयाना लड़का मिले तब तो?’
‘भीखम तमाकू चढ़ा लाया। वैदराज चिलम लेकर पीने लगे। बोले—‘तुम सेहटा गांव के चौधरी हो, आज रात की कुछ खबर मालूम है तुम्हें?’
‘नहीं तो…क्या हुआ वैदराज?’
‘जैकरन अहीर के बड़े लड़के को जानते हो? वहीं ललुआ।’
‘जानता हूं, क्या किया उसने?’
‘आज रात बुधनी पासिन के घर पकड़ा गया है, दोनों में बहुत दिनों से लगाव था।’
‘बुधनी पासिन को तो सभी जानते हैं, वैदराज! वेश्या का तो उसका पेशा है, मगर वह ललुआ कैसे जा फंसा?’
‘अब तक ललुवा ही नहीं, कितने ही उसके पास आते-जाते रहे हैं। यह कहो कि ललुवा पकड़ा गया नहीं तो छिपे-छिपे कितने ही उसके पास रातें काटते हैं। यह गांव के लिए बड़े कलंक की बात है।’
‘मैं कल ही खदेड़ दूंगा हरामजादी को।’ भीखम बोला।
‘सब लोग बड़े ठाकुर के पास गये थे ललुआ को पकड़कर।’
‘तुम्हारे पास भी अब आते ही होंगे। पंचायत होगी और ललुआ कुजात हो जाएगा—।’ वैदराज ने कहा—‘चलता हूं, अब घटा का ब्याह बहुत जल्दी ठीक कर लो, देर करना ठीक न होगा।’
‘जतन तो बहुत कर रहा हूं, वैदराज!’
वैदराज उठकर चल पड़े। कुछ दूर जाने पर बुधनी पासिन का मकान मिला। गोरे चिट्टे गालों पर कडुआ तेल लगाए, मुंह चिकनाए वह बैठी थी। ज्यादा खूबसूरत न थी, परंतु उठती जवानी का आकर्षण काफी मात्रा में मौजूद था।
वैदराज को देखकर वह मुस्करा पड़ीं, शेखी से।
‘ललुआ को तबाह कर दिया है तुमने, बुधनी?’ वैदराज बोले।
‘क्या करूं, वैदराज?’ बुधयनी बोली। मुस्कराने से उसके मिस्सी लगे हुए सफेद काले दांत दिखाई पड़ने लगे थे—‘लोग रात-बिरात आकर मुझे तंग करते हैं। मेरे घर पर कोई मर्द नहीं कि मेरी सहायता करे। ये गांव के लोग जैसे नचाते हैं, वैसे नाचना पड़ता है। वैदराज! बैठोगे नहीं आज?’ कहकर उसने एक मधुर कटाक्ष फेंका।’
‘हट मरो…।’ वैदराज बोले—‘मुझ बुड्ढे के पास क्या रखा है, जो आंख मैली करती है?’ कहते हुए वे आगे बढ़ चले।

आध कोस जाने के बाद ठाकुर की हवेली आ गईं। लठैत से ठाकुर को खबर भिजवाई। तुरंत ही ठाकुर ने उन्हें बुला भेजा।’
‘जुहार ठाकुर!’
‘जुहार वैदराज! आओ बैठो।’
वैदराज गद्दी पर आकर बैठ गए। बोले—‘छोटे ठाकुर कहां हैं?’
‘अभी-अभी अम्मा से झगड़ रहा था। कहता था, मैं शादी करूंगा ही नहीं। क्या करूं?’ ठकुराइन अम्मा ने उसे सिर पर चढ़ा रखा है।’
अब चाहे जैसे हो, छोटे ठाकुर की शादी हो ही जानी चाहिए। छोटे ठाकुर की उम्र अभी कच्ची है। ऐसी उम्र में लड़कों में फिसल पड़ने का डर रहता है। अच्छा मैं किसी दिन उन्हें समझाकर देखूंगा।’
‘कल सेहटा गांव के तालाब पर पंचायत होगी, वैदराज!’
‘मालूम है। भीखम चौधरी को बड़ा रंज हुआ है, वह घटना सुनकर।’ वैदराज बोले।

ठाकुर साहब की जमींदारी में जितने गांव थे, उनमें एक-एक चौधरी होता था। वहीं गांव का मुखिया समझा जाता था। जब कभी गांव में कोई घटना होती तो चौधरी उस घटना की खबर बड़े ठाकुर को देखता, पंचायत जूटती, विचार-विमर्श होता और तब बड़े ठाकुर अपना फैसला देते थे।
ठाकुर की जमींदारी का एक भी मुकदमा कचहरी में नहीं जाने पाता था। कचहरी यहां से बहुत दूर थी। ठाकुर का काफी दबदबा था, जिससे कोई भी अपना मुकदमा कचहरी ले जाने से डरता था। ठाकुर जो फैसला करते, उसे सबको मानना ही पड़ता था।
