राजस्थान में मौजूद है देश का एकमात्र जलदुर्ग, जुड़ी है बलिदान की कहानियां: World Heritage Day
World Heritage Day Special 2023

World Heritage Day: राजस्थान के महल, राजपुताने के वैभव, राजाओं की वीरता के साथ मशहूर हैं यहां की रानियों का सौंदर्य और बलिदान के लिए। यहां के महल गवाह हैं रानियों-महारानियों के जौहर के। इस विशाल प्रदेश में एक किला ऐसा भी है जहां आज भी लोग शाम छह बजे बाद जाने से ठिठकते हैं। एक ऐसा किला जो उदाहरण है वीरता का, जहां की रानियों सहित हजारों महिलाओं ने अलग-अलग सालों में दो बार अपना मान बचाने के लिए जौहर कर अपनी जान दी। ये किला है देश का एकमात्र जलदुर्ग गागरोन फोर्ट।

इसलिए खास है दुर्ग

राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित इस जलदुर्ग में आज भी सात जौहर कुुंड़ रानियों के त्याग और बलिदान के गवाह बने हुए हैं। भारत का एकमात्र जलदुर्ग होने के साथ ही यह देश का एकमात्र ऐसा किला है जो सालों से बिना नींव के शान से खड़ा है। सालों से बिना नींव का यह किला राजपूती वीरता और साहस का गवाह रहा है। हालांकि इससे कई कहानियां जुड़ी हैं।  स्थानीय लोगों की मानें तो किले में सालों तक रात के अंधेरे में रोने की आवाजें सुनाई देती थीं। इसलिए रात में इस दुर्ग में जाने से लोग ठिठकते हैं। बताया जाता है कि महल में आज भी कई गुप्त रास्ते, सुरंगे और गुप्त कमरे हैं। यूनेस्को वल्र्ड हैरिटेज साइट में शामिल इस किले को उस समय की स्थापत्य और वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण कहा जा सकता है। इस किले पर दुश्मन का विजय पाना आसान नहीं था। क्योंकि यह तीन तरह पानी से घिरा है और इसकी एक तरफ खाई है।

वास्तुकला का शानदार उदाहरण

इतिहासकारों के अनुसार 12 वीं शताब्दी में डोड महाराजा बिजल देव ने इस शानदार किले का निर्माण करवाया था। यही कारण है कि इस विशाल दुर्ग को डोडगढ़ और धूलरगढ़ भी कहा जाता है। इस किले पर करीब 300 साल खींची ठाकुर राजाओं ने शासन किया। किले से 14 युद्ध और दो जौहर की कहानियां जुड़ी हैं। आहु और काली सिंध नदियों से घिरा यह दुर्ग लगभग तीन किलोमीटर में फैला है।दुर्गम चट्टानों पर निर्मित यह किला अपने आप में स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। इस किले की भव्यता और स्थापत्य कला ने मुगल शासकों को अपनी ओर आकर्षित किया। यही कारण है कि इस किले पर होसगसाह भीमकरण, महमूद खिलजी, सुल्तान बहादुर शाह और बादशाह अकबर ने आक्रमण किया।

परकोटे से सुरक्षित

बताया जाता है कि जितनी बार यहां के राजाओं को पराजय का सामना करना पड़ा, उतनी बार यहां की रानियों ने अपना मान सम्मान बचाने के लिए जौहर किया। बाद में औरंगजेब ने यह दुर्ग कोटा के महाराव भीम सिंह को दे दिया। हाडा शासकों ने इस प्राचीन दुर्ग में अनेक भवनों और संरचनाओं का निर्माण करवाया। 3 परकोटों से सुरक्षित इस दुर्ग में प्रवेश के लिए सूरजपोल, भैरवपोल और गणेशपोल प्रमुख दरवाजे हैं। दुर्ग के पीछे बने विशाल चौक से आप आहु और काली सिंध नदी का संगम देख सकते हैं। मानसून सीजन में यह दुर्ग बेहद खूबसूरत नजर आता है।

मैं अंकिता शर्मा। मुझे मीडिया के तीनों माध्यम प्रिंट, डिजिटल और टीवी का करीब 18 साल का लंबा अनुभव है। मैंने राजस्थान के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के साथ काम किया है। इसी के साथ मैं कई प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों की एडिटर भी...

Leave a comment