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Summary: होम लोन EMI: जानें 8 फैक्टर्स जो तय करते हैं आपकी मासिक किस्त

होम लोन EMI सिर्फ लोन राशि पर नहीं, बल्कि ब्याज दर, अवधि, डाउन पेमेंट और क्रेडिट स्कोर जैसे कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है। इन पहलुओं को समझकर आप अपनी EMI को अपने बजट के अनुसार सही तरीके से मैनेज कर सकते हैं।

Home Loan EMI: घर खरीदना हर इंसान का सपना होता है, और इस सपने को पूरा करने के लिए अधिकांश लोग होम लोन (Home Loan) लेते हैं। लेकिन, लोन लेते समय सबसे बड़ा सवाल होता है कि EMI (Equated Monthly Installment) कितनी देनी होगी। EMI कई कारकों पर निर्भर करती है, जिन्हें समझकर आप अपने लिए सही लोन चुन सकते हैं। आइए जानते हैं वो 8 फैक्टर जो आपकी होम लोन EMI को प्रभावित करते हैं।

लोन की राशि

सबसे पहला और सबसे बड़ा फैक्टर है आपका लोन अमाउंट। जितना बड़ा लोन लेंगे, उतनी ही ज्यादा EMI देनी होगी। उदाहरण के लिए, अगर आप 30 लाख रुपए का लोन लेते हैं तो EMI ₹15 लाख के लोन की तुलना में लगभग दोगुनी होगी। इसलिए अपनी आय और जरूरत को ध्यान में रखकर ही लोन राशि तय करें।

ब्याज दर

Home Loan EMI-Applying for home loan
Applying for home loan

ब्याज दर सीधे आपकी EMI को प्रभावित करती है। अगर ब्याज दर ज्यादा है तो EMI भी बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, 8% ब्याज पर लोन लेना और 9% पर लोन लेना, दोनों में EMI में बड़ा फर्क ला सकता है। इसलिए होम लोन लेने से पहले अलग-अलग बैंकों की ब्याज दरों की तुलना जरूर करें।

लोन की अवधि

लोन की अवधि जितनी लंबी होगी, आपकी EMI उतनी कम होगी। लेकिन ध्यान रहे, लंबी अवधि में कुल ब्याज ज्यादा देना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर आप 15 साल की जगह 25 साल की अवधि चुनते हैं तो EMI कम हो जाएगी, लेकिन ब्याज का बोझ काफी बढ़ जाएगा।

डाउन पेमेंट

जितना ज्यादा आप डाउन पेमेंट देंगे, उतना ही कम लोन लेना पड़ेगा और EMI घट जाएगी। बैंक सामान्यतः 20-25% डाउन पेमेंट मांगते हैं। अगर आप अपनी बचत से अधिक डाउन पेमेंट कर सकते हैं तो लोन की राशि कम होगी और EMI भी कम पड़ेगी।

क्रेडिट स्कोर

बैंक और वित्तीय संस्थान लोन देने से पहले आपका क्रेडिट स्कोर देखते हैं। अगर आपका क्रेडिट स्कोर 750 से ऊपर है तो आपको कम ब्याज दर पर लोन मिल सकता है, जिससे EMI कम हो जाएगी। लेकिन कम क्रेडिट स्कोर होने पर ब्याज दर ज्यादा लगती है और EMI भी बढ़ जाती है।

प्रीपेमेंट और पार्ट पेमेंट

अगर आप लोन की अवधि में अतिरिक्त रकम (पार्ट पेमेंट) जमा कर देते हैं या लोन का एक हिस्सा जल्दी चुका देते हैं (प्रीपेमेंट), तो आपकी EMI पर असर पड़ता है। इससे लोन का बोझ कम हो जाता है और भविष्य की EMI भी घट जाती है।

फिक्स्ड और फ्लोटिंग ब्याज दर

फिक्स्ड रेट लोन में आपकी EMI पूरी अवधि तक एक जैसी रहती है। फ्लोटिंग रेट लोन में ब्याज दर बदलने पर EMI भी बदल जाती है। अगर बाजार में ब्याज दरें गिरती हैं तो फ्लोटिंग रेट EMI कम कर सकता है, लेकिन दरें बढ़ने पर EMI भी बढ़ जाएगी।

मार्केट की स्थिति

होम लोन की ईएमआई पर बाज़ार का माहौल सीधा असर डालता है। जब अर्थव्यवस्था में महंगाई बढ़ती है तो बैंक अपने ब्याज दरों को ऊँचा कर देते हैं ताकि जोखिम को संतुलित किया जा सके। इसके विपरीत, यदि बाजार स्थिर हो और महंगाई नियंत्रित रहे तो ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम हो जाती हैं। इसलिए होम लोन लेने का सही समय चुनना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।

होम लोन EMI केवल लोन की राशि पर निर्भर नहीं करती, बल्कि ब्याज दर, लोन अवधि, डाउन पेमेंट और क्रेडिट स्कोर जैसे कई कारक इसे प्रभावित करते हैं। अगर आप इन फैक्टर्स को समझकर सही फैसले लेते हैं तो EMI को अपने बजट के अनुसार मैनेज कर सकते हैं।

अभिलाषा सक्सेना चक्रवर्ती पिछले 15 वर्षों से प्रिंट और डिजिटल मीडिया में सक्रिय हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में दक्षता रखने वाली अभिलाषा ने करियर की शुरुआत हिंदुस्तान टाइम्स, भोपाल से की थी। डीएनए, नईदुनिया, फर्स्ट इंडिया,...