Artisans weaving and decorating Chhath Puja baskets and soops with bamboo strips ahead of the festival in Bihar markets.
Artisans weaving and decorating Chhath Puja baskets and soops with bamboo strips ahead of the festival in Bihar markets.

Summary: कैसे बनती हैं छठ पूजा के लिए टोकरी और सूप, जानिए कितनी कीमत पर मिलती हैं?

छठ पूजा बिहार का सबसे पवित्र त्योहार है, जिसमें सूर्य देव और छठी मइया की आराधना की जाती है। इस पर्व में पूजा के लिए इस्तेमाल होने वाली टोकरी और सूप का बहुत महत्व है। जिसे कारीगर बहुत ही मेहनत से तैयार करते हैं।

Chhath Puja Tokri Making: छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे पवित्र और भव्य त्योहार माना जाता है। इस पर्व में सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है। पूजा के लिए कई पारंपरिक चीज़ों का उपयोग होता है, जिनमें सबसे अहम होती है छठ पूजा की टोकरी या डाला। यही टोकरी सूर्य अर्घ्य के समय पूजा सामग्रियों को रखने और अर्पित करने के काम आती है। हर साल छठ से कुछ हफ्ते पहले ही इनकी मांग तेजी से बढ़ जाती है, और इसी के साथ इनके दामों में भी बदलाव देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन खूबसूरत टोकरियों को कारीगर कितनी मेहनत और नज़ाकत से तैयार करते हैं? शायद इसके बारे में आपको ज़्यादा जानकारी न हो। तो चलिए जानते हैं कि छठ पूजा से पहले इन्हें किस तरह बनाया जाता है और बाजार में ये किन-किन कीमतों पर बेची जाती हैं।

Colorful Chhath Puja baskets and soops displayed for sale in a Bihar market, showcasing different sizes and price ranges
Chhath Puja Tokri Making

छठ पूजा की टोकरी बनाने का काम ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक रूप से पीढ़ियों से चलता आ रहा है। यह टोकरी बांस या बाँस की पतली पट्टियों से बनाई जाती है। बिहार के कई जिलों में जैसे मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, सिवान, और भोजपुर में टोकरी बनाने वाले परिवार सालों से इस काम में लगे हुए हैं।

टोकरी बनाने के लिए सबसे पहले बांस को काटकर सुखाया जाता है। सूखने के बाद इसे चाकू या तेज धार वाले औजार की मदद से पतली-पतली पट्टियों में बांटा जाता है। फिर इन पट्टियों को हाथों से बुनकर गोल या ओवल शेप की टोकरी या त्रिकोण वाली सूप बनाई जाती है। कुछ टोकरी पर हल्का रंग या वार्निश भी किया जाता है ताकि वह चमकदार और मजबूत दिखे। इसके बाद टोकरी के किनारों को सजाने के लिए स्थानीय कारीगर रंगीन पट्टियों, चमकीले पेपर, सिंदूर की डिबिया, पत्तों या फूलों की डोरी से सजावट करते हैं।  आपको बता दें कि बिहार में छठ पूजा के लिए सिर्फ एक ही साइज की टोकरी नहीं बनती, बल्कि ये कई तरह के आकार और डिज़ाइन में तैयार की जाती हैं।

Traditional bamboo baskets and soops being crafted by artisans in Bihar for Chhath Puja, showing their handmade detailing and decorations.
Chhath Puja 2025

टोकरी बनाना आसान काम नहीं है। एक कारीगर को एक मीडियम शेप की टोकरी तैयार करने में लगभग दो से तीन घंटे लगते हैं। बड़े आकार की टोकरी में तो आधा दिन तक लग जाता है। कई कारीगर परिवार मिलकर काम करते हैं पुरुष बांस काटने और छीलने का काम करते हैं, जबकि महिलाएं टोकरी बुनती और सजाती हैं। छठ पूजा के करीब आते ही इन कारीगरों के घरों में दिन-रात काम चलता है। अक्टूबर और नवंबर का महीना उनके लिए सबसे व्यस्त रहता है क्योंकि इन्हीं दिनों में पूरे बिहार से टोकरी की मांग बढ़ जाती है।

बिहार के अलग-अलग जिलों में छठ पूजा की टोकरी की कीमतें शेप और डेकोर के अनुसार बदलती हैं। साधारण छोटी बांस की बिना सजावट वाली टोकरी 50 से 100 तक मिल जाती है, जबकि मध्यम आकार की सजी हुई टोकरी 150 से 300 तक बेची जाती है। बड़ी और डिजाइनर टोकरी, जिसमें रंगीन लेस, कपड़ा और सजावट होती है, उसकी कीमत 400 से 700 तक होती है। टोकरी में जितनी ज्यादा सजावट की जाती है, उसकी कीमत उतनी ही बढ़ जाती है। हालांकि, छठ पूजा के लिए ज़्यादातर लोग पारंपरिक और सिंपल बांस की टोकरी ही खरीदना पसंद करते हैं।

स्वाति कुमारी एक अनुभवी डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं, जो वर्तमान में गृहलक्ष्मी में फ्रीलांसर के रूप में काम कर रही हैं। चार वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली स्वाति को खासतौर पर लाइफस्टाइल विषयों पर लेखन में दक्षता हासिल है। खाली समय...