लड़कियों के लिए टीचिंग जॉब बेस्ट है! अब कहे कोई ऐसी बात तो बताएं 'टीचर बर्नआउट' के बारे में: Teacher Burnout
Teacher Burnout

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टीचिंग जॉब अब पहले से कहीं ज्यादा टफ हो गई है और ऐसे में 'टीचर बर्नआउट' की समस्या बढ़ती जा रही है। वे हर समय थकान महसूस करते हैं। और नौकरी से उनका मोहभंग हो जाता है।

Teacher Burnout: ‘लड़कियों के लिए टीचिंग जॉब बेस्ट है।’ यह बात आपने अक्सर सुनी होगी। एक समय था जब टीचिंग जॉब को सेफ्टी, सिक्योरिटी और शांति की जॉब माना जाता था, लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है। टीचिंग जॉब अब पहले से कहीं ज्यादा टफ हो गई है और ऐसे में ‘टीचर बर्नआउट’ की समस्या बढ़ती जा रही है। क्या है टीचर बर्नआउट और क्या है इसके पीछे के कारण, चलिए जानते हैंं।

पिछले कुछ सालों में टीचिंग जॉब में टेंशन दोगुनी हो गई है। एक ही क्लास में 35 से 100 स्टूडेंट्स को पढ़ाना, सात से आठ घंटे खड़े रहना, स्टूडेंट्स को पढ़ाने के साथ ही उन्हें ठीक तरीके से हैंडल करना, पढ़ाई के अलावा भी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में समय देना आदि के कारण टीचर्स के सिर पर तनाव का बड़ा पिटारा है। स्कूल खत्म होते-होते तो अधिकांश टीचर्स की एनर्जी डाउन हो जाती है। इसी के साथ टीचर्स से अच्छे व्यवहार और सही शब्दों का चयन करने की अपेक्षा भी की जाती है। सीधे शब्दों में एक टीचर को सारे दिन अपनी सहजता का प्रदर्शन करना पड़ता है। इन सबके चलते कई टीचर्स बर्नआउट की स्थिति में पहुंच जाते हैं। वे हर समय थकान महसूस करते हैं। और नौकरी से उनका मोहभंग हो जाता है।  

Teacher Burnout
There was a time when Guru-shishya tradition was prevalent.

एक समय था जब गुरु-शिष्य परंपरा का चलन था। अपने टीचर्स की बात स्टूडेंट्स के लिए पत्थर की लकीर बन जाया करती थी, लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है। स्टूडेंट्स अब टीचर्स के प्रति पहले जैसा सम्मान नहीं दिखाते। ऐसे में वे टीचर्स से इमोशनली जुड़ाव भी नहीं रखते, जिससे टेंशन और बर्नआउट की समस्या हो जाती है।

स्टाफ पॉलिटिक्स भी टीचर बर्नआउट का कारण है। इसके कारण टीचर्स का आपस में लगाव बहुत ही कम रह गया है। कुछ टीचर्स अब आपसी सहयोग की जगह चुनौतियों पर ज्यादा फोकस करते हैं। एक दूसरे की कमियों को दूर करने की जगह उन्हें हाईलाइट करते हैं। ऐसे में आपसी सहयोग और दोस्ती का व्यवहार ही नहीं बन पाता और नौकरी बोझ लगने लगती है।

एक समय था जब पेरेंट्स बच्चों के न पढ़ने पर उन्हें डांटते थे, लेकिन आज अधिकांश पेरेंट्स इसके लिए टीचर्स को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसे में स्कूल मैनेजमेंट भी टीचर्स पर ही सही प्रदर्शन के लिए दबाव बनाता है। कुल मिलाकर टीचर्स दोनों ओर से प्रेशर फील करते हैं और उन्हें सराहना के दो बोल भी सुनने को नहीं मिलते हैं। साल 2021-22 में हुए एक सर्वे के अनुसार अधिकांश टीचर्स ने माना कि उन्हें अपने काम में सराहना की कमी महसूस होती है। ऐसे में वे तनाव महसूस करती हैं।  

अधिकांश राज्यों में टीचर्स के पास पढ़ाई के अलावा भी बहुत कामों की जिम्मेदारी है। फिर चाहे वो जनगणना हो या फिर कोई सरकारी सर्वे, टीकाकरण आदि। ऐसे में टीचर्स अपमानित महसूस करते हैं। इससे समाज में टीचर्स के सम्मान में भी कमी आई है।  

आमतौर पर टीचर्स के ड्यूटी ओवर्स काफी लंबे होते हैं। अधिकांश टीचर्स को वीक में करीब 54 घंटे काम करना पड़ता है। टीचिंग को सिर्फ पढ़ाने से न जोड़ें। इसके लिए नोट्स बनाने से लेकर कॉपी चेकिंग, पेपर बनाना, क्लास अरेंज करना जैसी कई तैयारियां होती हैं। जिसके कारण स्कूल ओवर्स खत्म होने के बाद भी टीचर्स को काम करना पड़ता है।

अधिकांश प्राइवेट टीचर्स को बहुत कम सैलरी मिलती है। एक सर्वे के अनुसार  स्कूल टीचर को कॉलेज लेक्चरर के मुकाबले 23.5 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है। चिंता की बात ये है कि यह अंतर लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में शिक्षक उपेक्षित महसूस करते हैं।