Pushkar Temple
Pushkar Temple

Pushkar Temple: राजस्थान के अजमेर ज़िले का शहर पुष्कर यूं तो एक छोटा सा शहर है। लेकिन देश का एकलौता ब्रह्मा मन्दिर होने की वजह से यह शहर अपनी एक अलग खासियत रखता है। अजमेर से केवल 14 किमी दूर स्थित इस शहर तक पहुंचना कोई मुश्किल नहीं है। शहर में प्रवेश करते ही आप मन में सुकून का एहसास करेंगे। बेशक राजस्थान की रंग-रंगीली संस्कृति आपको अच्छी लगेगी, लेकिन यहां ब्रह्मा जी का मंदिर होने से आप पवित्रता की एक मीठी सी बयार महसूस करेंगे। ऐसा माना जाता है कि पुष्कर को स्वयं ब्रह्मा ने बनाया था। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इसे पांचवा तीर्थ माना गया है। यही कारण है कि आपको यहां लाखों की तादाद में दर्शन करने वाले तीर्थयात्री मिलेंगे। अगर आपको यहां जाना है तो आप अजमेर या किशनगढ़ होते हुए पहुंच सकते हैं। अजमेर काफी सारे शहरों से जुड़ा है। आप बस और रेलवे मार्ग से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। पुष्कर में आपको रेगिस्तान भी मिलेगा। जहां आप डेजर्ट सफारी का भी आनंद ले सकते हैं। वहीं अगर आप शाहरुख और सलमान खान के फैन हैं तो आपको बता दें कि करन-अर्जुन फिल्म की शूटिंग भी यहां हुई थी।

2000 साल पुराना है मंदिर

पुष्कर झील के तट पर बने इस मंदिर की पहचान लाल शिखर और हंस की छवि है। मंदिर के आंतरिक गर्भगृह में भगवान ब्रह्मा की चतुर्मुखी मूर्ति है। मंदिर सुबह 6.30 बजे से रात 8.30 बजे तक खुला रहता है। यहां पर अगर आप आएं तो आरती में शामिल होने का मौका न छोड़ें। यहां तीन बार आरती होती है।

  • संध्या आरती: शाम के समय में सूरज डूबने के लगभग 40 मिनट बाद
  • रात्रि शयन आरती: सूरज डूबने के 5 घंटे बाद
  • और मंगला आरती: सूरज उगने के से 2 घंटे पहले

इस मंदिर के चारों तरफ एक शानदार माहौल है। आप जब इस मंदिर में एंटर करेंगे तो प्रवेश द्वार पर एक हंस की मूर्ति मिलेगी। गौरतलब है कि हंस ब्रह्मा जी का वाहक है। इसके ताज में लाल नीलमणि लगी है। इसमें नक्काशीदार चांदी का कछुआ भी है। इस मंदिर में भगवान ब्रह्मा की एक चार मुखी मूर्ति है जो बहुत शानदार है।

कार्तिक पूर्णिमा पर लगती है भीड़

वैसे तो पुष्कर में पूरे साल ही लोगों का तांता लगा रहता है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा की बात अलग है। यही वो समय था जब ब्रह्मा ने पुष्कर में यज्ञ किया था। इस समय श्रद्धालु पुष्कर झील में डुबकी लगाकर जगत पिता के आगे अपना सिर झुकाते हैं। पद्मा पुराण के अनुसार, पुष्कर मंदिर के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा यज्ञ करने के लिए एक सही जगह तलाश कर रहे थे, तब उनके हाथ में धारण किया हुआ कमल का फूल नीचे धरती पर गिर जाता है। चमत्कारिक रूप से जहां पर कमल गिरा था वह से एक झील निकलने लगती है और ब्रह्मा उसे यज्ञ करने का उचित स्थान मान लेते हैं और तब उस शहर का नाम पुष्कर पड़ा। लेकिन जब उनकी पत्नी सरस्वती ने उनके साथ आने से मना कर दिया, तब उन्होंने गायत्री से शादी की और इस यज्ञ को पूरा किया, इस बात का पता चलने पर क्रोधित सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि आज से पुष्कर स्थान को छोड़कर उनकी पूजा पृथ्वी के किसी स्थान पर नहीं की जाएगी |

विदेशी और देसी का मिलन

Pushkar Mela

कार्तिक पूणिमा के समय राजस्थान सरकार की ओर से कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। वहीं इस समय यहां पशु मेला भी लगता है। इस मेले की वजह से इस शहर को एक अलग ही पहचान मिली है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन देखने को मिलता है। मेले में आने वाले अधिकतर विजिटर विदेशी होते हैं तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शामिल होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। यहां कतारों में दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और भी अन्य चीज़ें नजर आती हैं।

सोलो ट्रैवलर

बेशक यहां मंदिर है उन मंदिरों की स्थापत्य कला की अपनी एक अलग बात है। लेकिन अगर आप एक सोलो ट्रैवलर के तौर पर जाते हैं तो भी आपको यहां अच्छा लगेगा। जब आप घाट पर बैठेंगे तो हवा के साथ मंदिर के अंदर से आती हुई घंटियों की आवाजें आपके तनाव को बहुत हद तक दूर करेंगी। तीर्थस्थल होने की वजह से यह जगह महिला यात्रियों के लिए भी बहुत सुरक्षित है। यहां आपको तीर्थयात्रियों के साथ विदेशी पर्यटक भी बहुत मिलेंगे। यह एक आध्यात्मिक स्थान है, आप इसके परिवेश को महसूस कर सकते हैं। यह स्थान रंगीन, शांत और कालातीत है। यहां के वातावरण में बैठकर आप खुद से मुलाकात कर सकते हैं।

सुबह की चाय

Pushkar Tea
Pushkar Tea

पुष्कर में सूर्यउदय से बहुत पहले ही जीवन शुरु हो जाता है। यहां आपको बहुत फोटोग्राफर भी मिलेंगे जो अपने एक अच्छे शॉट के लिए बेताब नजर आएंगे तो वहीं सुबह-सुबह पुष्कर चाय पीने का अपना एक आनंद है। साइकिल पर आपको जगह-जगह चाय वाले मिलेंगे। पीतल के बर्तन में बनी चाय को वो कुल्हढ़ में देते हैं। चाय का वो फ्लेवर अलग ही है। कोयले पर बने होने की वजह से उसका सौंधापन अलग होता है।