ब्रह्मा जी को भगवानों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री के मंदिर को कितने ही लोग जानते हैं। जबकि देवी सावित्री का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान में है।  इस मंदिर की मान्यता भी बहुत है। राजस्थान के पुष्कर का ये मंदिर विदेशियों को भी खूब रोमांचित करता है। मंदिर की अपनी अलग आस्था तो है ही, इसका बहुत ऊंचाई पर रत्नागिरी की पहाड़ियों पर बना होना भी इसको खास बनाता है। इसको ऐसे समझिए कि इस मंदिर से पूरे पुष्कर को आसानी से देखा जा सकता है। शहर का दृश्य यहां से काफी मनोरम नजर आता है। इस मंदिर की खासियतों को चलिये जान लें-
कैसे पहुंचे-
पुष्कर पहुंचना बहुत कठिन बिलकुल नहीं है। इससे सबसे करीबी एयरपोर्ट जयपुर है, जो करीब 140 किलोमीटर दूर है। रेल यात्रा करनी है तो आपको अजमेर तक की ट्रेन लेनी होगी। इसके बाद करीब 30 मिनट की यात्रा के बाद आप पुष्कर पहुंच सकते हैं। पुष्कर झील से ये मंदिर 15 मिनट की दूरी पर है। पुष्कर बस स्टेशन से भी मंदिर की दूरी 3 किलोमीटर है। पर ऊंचाई होने के ऊपर मंदिर तक आने के लिए सीढ़ियों की बजाय रोपवे से जाना सही रहता है। रोपवे का किराया करीब 90 रुपए है।
ब्रह्मा जी की पहली पत्नी-
सावित्री जी को ब्रह्मा जी की पहली पत्नी माना जाता है। माना जाता है कि पुष्कर में यज्ञ करते हुए ब्रह्मा नाराज हो गए थे क्योंकि सावित्री जी समय पर नहीं पहुंची थीं। इस वक्त ब्रह्मा जी ने गायत्री नाम की युवती के साथ पूजा कर ली। इस बात पर सावित्री जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि अब उनकी पूजा सिर्फ पुष्कर में ही की जाएगी। फिर वो रत्नागिरी की पहाड़ियों पर चली गईं। 
750 फीट की ऊंचाई-
मंदिर की ऊंचाई 750 फीट है, जहां पहुंचने के लिए 650 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यही वजह है कि यहां आने के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि इस वक्त यहां उगता हुआ सूरज देखा जा सकता है। ढेरों लोग ये दृश्य देखने के लिए सुबह ही यहां आते हैं। 
खुलने का समय-
मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से 9 बजे तक खुलता है। जबकि रोपवे का खुलने का समय सुबह 7.30 से रात 8 बजे तक है। 
पहले सावित्री की आरती-
खास बात ये है कि कुछ ही दूरी पर बने ब्रह्मा जी के मंदिर में आरती तब ही होती है जब सावित्री मंदिर में आरती हो जाती है। 
सैंकड़ों साल पुराना-
देवी सावित्री का ये मंदिर सैंकड़ों साल पुराना है। इस मंदिर को 1687 में बनाया गया था। इसको बाद में 20 वीं शताब्दी के शुरू में फिर से बनवाया गया था। यहां रखी देवी की मूर्ति 7वीं शताब्दी की है।