ऑफिस से काम खत्म करके निकलना, अपने कान में इयरफोन लगा लेना, मेट्रो में एक तरफ बैठ जाना और गाने सुनते जाना, यह उसकी रोज़ की आदत थी। चेहरे पर उदासी की परतें गाने सुनते ही और गहरी हो जाती थीं। इन्हें वह नोटिस करता है।   

यार, फिर तुम बैठ गईं ये गाने लेकर?’  

यार, मैं प्रेम में हूं…समझते क्यों नहीं…?’ 

वह मुस्कुरा कर त्वरित जवाब देती। उदासी कुछ पल के लिए चटक जाती।  

मुझे प्रेम में उदास होना, आहें भरना बिल्कुल पसंद नहीं। सारे सैड सौंग की डीवीडी उठा के फेंक दूंगा। किस ज़माने के गाने सुनती हो यार?’ 

आमी फिर मुस्कराई नए ज़माने के भी सुनती हूं। अरिजीत सिंह के, और तुम मेरी डीवीडी फेंक दो। क्या-क्या फेंक दोंगे? पेन ड्राइव में भरे हैं गाने। मोबाइल पर गाने के सारे एप डाउनलोड कर रखे हैं।’ 

ïवायर हटा कर बात करो…’ झुंझलाता हुआ तरुण हाथ बढ़ा कर कानों से इयर प्लग निकाल देता।  

तरुण और आमी दोनों हुडा सिटी सेंटर से मेट्रो में बैठते। उन्हें वैशाली मेट्रो स्टेशन तक रोज़ का सफर तय करना पड़ता था।  दोनों को इस रिश्ते में दो साल हो गए हैं और दोनों के बीच उदासी स्थायी रूप से दीवार बन कर तनी हुई रहती है। स्वभाव से हंसोड़ तरुण के लिए उदास लड़की की तरफ आकर्षित होना जितना आसान था, उदासी को स्वीकार कर पाना उतना ही मुश्किल लग रहा था। 

हां, तो तुम्हें बहुत शौक है उदास रहने का। हांय..’

तरुण ने अमिताभ बच्चन की नकल उतारते हुए आमी को घेरा। 

तरुण उसकी बगल में खाली हुई सीट पर बैठ गया था। आमी ने अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया।  

नहीं यार। मैं नहीं चाहती, मगर क्या करूं? मैं शाम होते ही अजीब-सी उदासी से घिर जाती हूं। पता नहीं क्यों। जब तुम्हारे साथ होने का वक्त होता है।  सब अपने अपने घरों में लौटते हैं, मगर मैं क्या करूं? मैं घर जाना भी चाहती हूं और नहीं भी! मुझे अच्छा नहीं लगता। मां की उदासी मुझे डराती है।’ 

आमी उसके कंधे पर सिर रखे-रखे ही बोलना चाह रही थी, जो उसकी मां इन दिनों उसे सुनाती थीं- देख ले। अभी तो बहुत प्यार जता रहा है।  बाद में क्या हाल करेगा… दो कौड़ी की औरत में बदल कर रख देगा, फिर भागती फिरेगी…इधर-उधर…फिर पति में साथी ढूंढ़ेगी। विवाह सबसे पहले इसी भाव को नष्ट कर देता है।’ 

मां से जब भी पूछना चाहती है कि पापा से वे अलग क्यों हुईं, क्यों उन्हें छोड़ कर इतनी दूर चली आईं, इतना कष्ट अकेले झेला, क्या वजह रही, मां उसे झटक देती हैं।  

अभी नहीं, उचित समय आने पर खुद ही जि़ंदगी सब तुझे बता देगी। अभी अपने करियर पर फोकस करो, प्यार-शादी वाहियात चीज़ें दिमाग से निकाल दो। ये सब स्त्री को नेस्तनाबूद करने के औज़ार हैं…’  

वह तरुण से कहना चाहती है कि मां के दिमाग में प्यार और शादी को लेकर इतनी खराब इमेज बनी हुई है कि वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। मां को अकेली छोड़ कर बगावत नहीं कर सकती।  मां ने सारी जि़ंदगी बेटी के नाम कर दी, उसका भी कुछ फज़र् बनता है कि नहीं। 

तरुण अपने कंधे पर उसके चेहरे का ताप महसूस कर रहा था। भीतर का ताप छिटक- छिटक कर कंधे तक आ रहा था।  वह हैरान भी होता था कि कैसी मां है, जो अपनी बेटी के लिए प्यार और शादी के सपने नहीं देखती, बल्कि भड़कती और भड़काती है।  

आमी उसके कान में फुसफुसाई, मां नहीं चाहती कि मैं लव मैरिज करूं। उनका कहना है कि अजनबी से शादी करूं, जिससे उसे कुछ साल तक जानूं, बूझूं, मतलब लड़ाई करने के लिए समय रहे। कुछ साल जानने-समझने में गुज़र जाएंगे।’

हद है यार! तुम्हारी मां का लॉजिक! इस तरीके से तो अरेंज मैरिज में डिवोर्स होने ही नहीं चाहिए, मगर उनमें भी होते हैं, मेरी बुआ का ही हुआ।’ तरुण को गुस्सा आ गया। 

आई कैन अंडरस्टैंड यार, बट क्या किया जाए? उनका अनुभव बहुत ही खराब रहा है यार! इसीलिए वे कहती हैं कि पूरा जानने मत देना खुद को। उसके लिए थोड़ी अबूझ बनी रहना। थोड़ी अप्राप्य।  प्रेम विवाह में तो सिर्फ़ मोहभंग है। लव मैरिज में केवल सपने टूटते हैं, जिनका दर्द मैं सह नहीं पाऊंगी!’  

ओह ठीक है, तुम्हारी मां का असफल प्रेम विवाह हुआ तो क्या सबका होगा। बहुत डिप्रेसिंग है यह सब। उनको समझाओ या मैं समझाऊं।’ 

तरुण खीझ गया था। अलग होते हुए भी उखड़ा-सा रहा। आमी फिर उदास हो गई। उदासी ओढ़ कर ही घर में घुसना होता है।  

मेट्रो से उतरने के बाद ऑटो में बैठी आमी केवल अपनी मां के बारे में सोचती रही थी। आखिर उन्हें प्यार से इतनी ऊब क्यों हो गयी थी।  ठीक है, उन्होंने घर से भागकर लव मैरिज की और वह फेल हो गई, मगर इसमें उनका कसूर क्या और लव क्या लोगों की अरेंज मैरिज भी टूट जाती हैं, तो? जैसे ही वह घर पहुंची उसकी मां ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा-  

तुम्हारे लिए मैंगोशेक बनाया है! और यह मत कहना कि तुम उस तरुण के साथ मेट्रो में कुछ खा-पीकर आई हो! नहीं तो मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी!’  

घर में घुसते ही लगा जैसे सारे सपने कहीं दुबक गए हैं। दिन भर शादी के जो सपने देखती, वह घर आते- आते रास्ते में ही बिखर जाते हैं, आखिर मां को कैसे समझाया जाए? मां की तरह एकाकी जि़ंदगी नहीं काटना चाहती। उसे साथी चाहिए। उदासी से मुक्ति। ज़्यादा जि़द की तो मां ने साफ कह दिया- करनी है शादी तो कर लो! भाग जाओ! मैं नहीं कराऊंगी शादी।’  

मुंह हाथ धोकर आमी ड्राइंग रूम में आ गई। वह गहरी सोच में थी, आखिर क्या किया जाए। रोज़ की ही तरह अगले दिन की ऑफिस की तैयारी करने के बाद वह फिर से सोफे पर लेट गई।  सारेगामा कारवां पर उदास गीत बज रहा था। इसी ओढ़ी हुई, अर्जित उदासी के साथ वह तालमेल नहीं बिठा पा रही थी। हंसोड़ प्रेमी रोज़ उसकी त्वचा से उदासी की परतें नोंच कर फेंकता रहता था, जिसे रोज घर से चढ़ा कर निकलती थी। 

अगले दिन तरुण नया दांव लेकर तैयार था। उसके साथ एक अधेड़ थे, जो बिना बात मुस्कुराते रहने के अभ्यस्त लगे।  

सुनो, तुम्हारी मां को कोई शौक है क्या? गीत, संगीत, नृत्य, घूमना, नाटकों में अभिनय…कुछ भी?’ 

हां, एडवेंचर ट्रिप का बहुत शौक है। किसी ज़माने में बहुत जाया करती थीं। उनकी तस्वीरें देखी हैं। क्यों…?’ 

तरुण और साथ वाले सज्जन की हंसी एक साथ फूटी। आमी असहज हो गई। ये राजन हैं, देश के प्रसिद्ध ट्रैवल ब्लॉगर। ट्रैवलर मैगज़ीन के लेखक हैं। मेरे फ्रेंड, फिलासफर और गाइड भी।’  

राजन ने मुस्कुराते हुए आमी की तरफ हाथ बढ़ाया। मेट्रो में तीनों एक कोने में खड़े हो गए थे।   

कुछ न कुछ तो करना होगा ना यार…तुम देखते ही जाओ, बस तुम बीच में मत पड़ना। मैं जो करूं, करने देना…मुझ पर भरोसा रखना…’ तरुण की आंखें उम्मीद से जगमगा रही थीं। 

हमें तुम्हारी अनुपस्थिति में तुम्हारे घर जाना है। कुछ दिन तक तुम मां का गुस्सा झेलो। सुन लेना, जो भी कहें, मगर हमें अब इस टास्क पर काम करने दो। विचलित मत होना।  भरोसा रखना…’ राजन ने उससे वादा लिया। 

तरुण और राजन अभियान में जुट गए थे। पहली बार तरुण अकेले आमी की मां के पास पहुंचा था। आमी की मां का मूड उसे देखते ही खराब हो गया।  वह जितना इस लड़के को अपनी लड़की की जि़न्दगी से बाहर निकालना चाह रही थी, उतना ही आमी उसके प्यार में डूबती चली जा रही है। 

तरुण के साथ बैठ कर बात करने को तैयार तक न थी। आमी ने नोटिस किया कि एक दिन मां ज़्यादा बिफरी हुई थीं। उसके बाद शांत दिखने लगीं। फिर अचानक घर में गानों के सुर बदल गए।  अनजान बनी हुई आमी उनसे कुछ न पूछती। शादी, प्यार और तरुण की बातें आमी ने अपनी तरफ से करनी बंद कर दी थी। उसे लगा कि मां शायद कुछ कहना चाहती हैं, मगर रुक जाती हैं। मां के मूड में कुछ-कुछ बदलाव पिछले कई दिनों से देख रही थी, मगर अनजान बने रहना ही उचित लगा।  

एक शाम घर लौटी तो ड्राईंग रूम में नज़ारा देख कर दंग रह गई। मुंह से चीख निकलते- निकलते रह गई।  

मुश्किल से मुंह दबाया। ट्रैकिंग ड्रेस में मां और तरुण उनकी पीठ पर बैग टांग रहा है और राजन शूज़ डिब्बे से बाहर निकाल रहे हैं। आमी को देखते ही मां लड़खड़ाई, संभली, तरुण और राजन ठिठक गए।  आमी की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं। उसे टास्क के बारे में अनजान रखा गया था। चंद दिनों में ही इस परिणाम की कल्पना सोच से परे थी। 

मां ने गला साफ करते हुए कहा- मैं राजन के ग्रुप के साथ ट्रैकिंग के लिए जा रही हूं, नाग टिब्बा पीक, गढ़वाल रीजन की हाईएस्ट पीक है। इज़ी ट्रैक है, इसी से शुरुआत कर रही हूं। चार दिन की यात्रा है।  उस की तैयारी चल रही है। कुछ दिन मेरे बिना मैनेज कर लोगी न…तरुण है न, तुम्हें दिक्कत नहीं होने देगा, उसकी ड्यूटी लगा दी है…’

मां की आवाज में उल्लास और चेहरे पर बसंत खिल रहा था। आमी ने अपनी अधेड़ मां को गौर से देखा…एक युवा स्त्री जि़ंदगी की तरफ लौट रही थी।’ 

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