ब्रह्मा जी के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने जब एक दानव वज्रांश को सबको परेशान करते देखा तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने दांव के हथियार को कमाल के फूल में बदल दिया। इस दौरान फूल की पत्तियां धरती पर तीन जगह गिरीं। इन्हीं तीन जगहों पर तीन झीलें बनीं। पुष्कर लेक, मध्य पुष्कर लेक और कनिष्ठ पुष्कर लेक। इन्हीं में से एक झील पुष्कर पर बना है दुनिया का अकेला ब्रह्मा मंदिर कहलाने वाला जगतपिता ब्रह्मा मंदिर। इस अनोखे मंदिर से जुड़ी कई और बातें हैं, जो आपको इसके दर्शन के लिए उत्साहित कर देंगी। इस मंदिर से जुड़ी कई बातों के बारे में आइए जानें-

कब जाएं-
इस मंदिर में कार्तिक पुर्णिमा को जलसा सा होता है। तब यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। तीर्थयात्री मंदिर में प्रवेश से पहले पवित्र झील में नहाते भी हैं। इसलिए इस वक्त यहां आना ज्यादा मंगलकारी माना जाता है।
कैसे पहुंचे-
पुष्कर पहुंचना बहुत कठिन बिलकुल नहीं है। इससे सबसे करीबी एयरपोर्ट जयपुर है, जो करीब 140 किलोमीटर दूर है। रेल यात्रा करनी है तो आपको अजमेर तक की ट्रेन लेनी होगी। इसके बाद करीब 30 मिनट की यात्रा के साथ आप पुष्कर पहुंच सकते हैं।

आर्किटेक्ट क्यों है खास-
जगतपिता ब्रह्मा मंदिर की संरचना बेहद खास है और 14 वीं शताब्दी की है। इसके बाद इसे और भी बनाया गया है। मंदिर में मार्बल और स्टोन लगे हैं। इतना ही नहीं मंदिर में शिकरा और हमसा चिड़ियों के मोटिफ बने हैं। मंदिर में ब्रम्हा जी की चारमुखी छवि भी देखी जा सकती है।
इत्ता ऊंचा शिकरा-
मंदिर में बना पक्षी शिकरा करीब 70 फीट ऊंचा है। इसके अलावा मंदिर के मंडप क्षेत्र में चांदी का कछुआ रखा है।

धार्मिक महत्व-
पद्म पुराण के मुताबिक ब्रह्मा जब धरती पर आए तो उन्होंने क्योंकि फूल की पत्तियां नीचे गिरने की वजह से कर यानि उनके हाथों और फूल मतलब पुष्प को मिलकर इस जगह को नाम दिया पुष्कर। इसके बाद उन्होंने इस जगह पर यज्ञ करने की सोची। उन्होंने पुष्कर झील में झील ही यज्ञ करना शुरू किया। मगर दांव फिर से हमला न कर दें, ये सोच कर दक्षिण में रत्नागिरी, उत्तर में नीलगिरि, पश्चिम में सनचूरा और पूरब में सूर्यगिरि पहाड़ियां बनाईं। हालांकि यज्ञ के समय उनकी पत्नी सावित्री समय पर नहीं आ सकीं क्योंकि वो अपनी साथी लक्ष्मी, पार्वती और इंद्राणी का इंतजार कर रही थीं। सावित्री के समय पर न पहुंच पाने की वजह से ब्रह्मा जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने स्वर्ग के राजा इन्द्र से उनके लिए युवती लाने को कहा। वो दूध की देवी गायत्री को लाए, ब्रह्मा जी ने उनसे शादी की और यज्ञ पूरा किया। मगर जब सावित्री वहां पहुंची तो गायत्री को उनकी जगह बैठे देख कर बहुत नाराज हुईं और ब्रह्मा को श्राप दिया कि अब उन्हें कभी पूजा नहीं जाएगा। पर फिर श्राप को थोड़ा कम करके उन्होंने पुष्कर में पूजा की अनुमति दे दी। क्योंकि यज्ञ के बाद गायत्री को कई शक्तियां मिल गई थीं इसलिए इसलिए उन्होंने पुष्कर को सभी तीर्थों का राजा माने जाने का आशीर्वाद दिया।
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