Overview: घोड़े की नाल क्यों मानी जाती है शुभ?
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए घोड़े की नाल पहनना या घर में लगाना सही उपाय नहीं है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति, अच्छे कर्म और आचरण सुधारने से ही जीवन के कष्ट दूर होते हैं। बाहरी उपाय नहीं, आंतरिक परिवर्तन ही असली समाधान है।
Premanand Maharaj: हिंदू धर्म में ग्रहों के प्रभाव और उनसे जुड़ी पीड़ा को कम करने के लिए लोग प्राचीन काल से ही विभिन्न उपाय करते आए हैं। विशेष रूप से शनि देव से जुड़े कष्टों से बचने के लिए कई परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें सबसे प्रचलित है घोड़े की नाल (Horse Shoe) का प्रयोग।
अक्सर देखा जाता है कि लोग शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए अपने घर के मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल टांगते हैं या उसकी अंगूठी पहनते हैं। लेकिन क्या यह वास्तव में प्रभावी है? क्या इससे जीवन की परेशानियां दूर हो जाती हैं? इस प्रश्न का उत्तर हाल ही में प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने दिया, जिससे भक्तों की वर्षों पुरानी भ्रांतियां दूर हो गईं।
घोड़े की नाल क्यों मानी जाती है शुभ?
शास्त्रों में घोड़े की नाल को विशेष महत्व दिया गया है।
इसे शनि देव का प्रतीक माना जाता है।
यह विश्वास है कि घोड़े की नाल नकारात्मक ऊर्जा को रोकती है और घर में सुख-समृद्धि लाती है।
कई लोग मानते हैं कि इसे पहनने या घर के दरवाजे पर लगाने से शनि दोष और कुंडली के अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है।
इसी कारण, बहुत से लोग इसे अपनी समस्याओं का समाधान मानकर अपनाते हैं। लेकिन प्रेमानंद महाराज का दृष्टिकोण इस पर बिल्कुल अलग है।
प्रेमानंद महाराज का स्पष्ट संदेश
प्रेमानंद महाराज का कहना है कि घोड़े की नाल की अंगूठी पहनना सही नहीं है। उन्होंने इसके पीछे एक गहरी और भावनात्मक बात बताई। उन्होंने कहा, “जिस घोड़े को स्वयं यातनाएं सहनी पड़ी हों, उसके खुरों में नाल ठोंकी गई हो, वह स्वयं दुखी है। जो खुद दुखी है, वह दूसरों का दुख कैसे दूर कर सकता है?”
महाराज ने यह स्पष्ट किया कि दुखी प्राणी की वस्तु से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार उन्होंने इस प्रचलित धारणा को पूरी तरह से खारिज कर दिया कि घोड़े की नाल पहनने या घर में लगाने से शनि दोष का निवारण हो सकता है।
शनि के कष्ट दूर करने का असली उपाय
प्रेमानंद महाराज ने यह भी बताया कि शनि के कष्टों से मुक्ति पाने का असली तरीका क्या है। उनका मानना है कि किसी अंगूठी को पहनने या तेल चढ़ाने से केवल अस्थायी संतोष मिलता है, स्थायी समाधान नहीं। ग्रहों की पीड़ा को दूर करने का सबसे सरल और सच्चा उपाय है – भगवान का नाम जपना। जब तक व्यक्ति अपना आचरण नहीं सुधारता, तब तक कोई भी बाहरी उपाय प्रभावी नहीं होता।
महाराज कहते हैं, “सच्चे मन से जब भगवान की भक्ति की जाती है और हमारा आचरण शुद्ध होता है, तभी ग्रह भी अनुकूल होने लगते हैं और जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं।” तेल चढ़ाने की जगह खुद को हरि के चरणों में अर्पित करें
दोष दूर करने के लिए शनिदेव को तेल चढ़ाना सही?
अक्सर लोग शनि दोष दूर करने के लिए शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं। इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा, “अगर तुम श्रीकृष्ण के सच्चे सेवक हो, तो तुम्हें किसी को तेल चढ़ाने की जरूरत नहीं। खुद को हरि के चरणों में अर्पित कर दो।” उनका संदेश था कि बाहरी उपायों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी आंतरिक शक्ति और ईश्वर पर विश्वास बढ़ाएं।
जब हम सच्ची भक्ति करते हैं, अच्छे कर्म करते हैं और अपनी सोच और व्यवहार को सकारात्मक बनाते हैं। तभी हमारे जीवन से विघ्न और परेशानियां दूर होती हैं।
सच्ची भक्ति का महत्व
महाराज ने यह भी कहा कि शनि दोष या अन्य ग्रहों की पीड़ा केवल पूजा-पाठ या प्रतीकों से नहीं मिटती।
अगर व्यक्ति का मन भक्ति और सदाचार से भरा हो, तो ग्रह स्वयं अनुकूल हो जाते हैं।
भक्ति केवल मंदिर जाने या पूजा करने तक सीमित नहीं है। यह हमारे विचारों, कर्मों और आचरण में भी झलकनी चाहिए।
उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि भक्ति को केवल बाहरी क्रियाओं तक सीमित न रखें, बल्कि उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
