Premanand Maharaj on Periods in Sawan 2025
Premanand Maharaj on Periods in Sawan 2025

Overview: क्या मासिक धर्म के दिनों में पूजा-पाठ वर्जित है, जानिए संत प्रेमानंद जी का दृष्टिकोण

पीरियड्स एक प्राकृतिक और जरूरी प्रक्रिया है, जिसे अपवित्र मानना विज्ञान और धर्म दोनों की दृष्टि से अनुचित है। संत प्रेमानंद महाराज की राय साफ है — ईश्वर के दर्शन, पूजा और भक्ति पर किसी भी महिला को रोका नहीं जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी समय में हो, विशेषकर सावन जैसे पवित्र महीने में।

Premanand Maharaj on Periods in Sawan: भारत में सदियों से माहवारी (पीरियड्स) को लेकर कई तरह की मान्यताएं और सामाजिक व धार्मिक प्रतिबंध जुड़े हुए हैं। खासकर जब बात सावन जैसे पवित्र महीने की हो, तो महिलाओं के मन में यह सवाल गहराता है — क्या इस दौरान मंदिर जाना, पूजा करना या भगवान के दर्शन करना उचित है? इसी विषय पर प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में बेहद सटीक और सहज जवाब दिया है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है बल्कि सामाजिक सोच को भी चुनौती देता है। आइए विस्तार से जानते हैं उन्होंने क्या कहा।

परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं की जड़ें

भारत में प्राचीन काल से ही पीरियड्स को एक अपवित्र समय माना गया है। महिलाएं इस दौरान मंदिर नहीं जातीं, पूजा नहीं करतीं और धार्मिक आयोजनों से दूर रहती हैं। पर क्या यह सब वास्तव में धर्म से जुड़ा है या केवल परंपरा का हिस्सा है?

संत प्रेमानंद जी की स्पष्ट और संतुलित राय

प्रेमानंद महाराज ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि “मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो ईश्वर की ही दी हुई है। इससे किसी महिला की भक्ति में कोई कमी नहीं आती।” उन्होंने साफ कहा कि “अगर मन और श्रद्धा शुद्ध है, तो भगवान के दर्शन करने से कोई पाप नहीं होता।”

सावन का महत्व और महिला भक्ति

सावन का महीना भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। महिलाएं इस महीने विशेष व्रत और पूजन करती हैं। प्रेमानंद जी ने यह भी कहा कि ईश्वर के लिए भक्त का प्रेम और भावना सर्वोपरि है, न कि शरीर की कोई स्थिति।

शरीर की प्रक्रिया को न बनाएं सामाजिक बंदिश

मासिक धर्म कोई बीमारी या अशुद्धता नहीं, बल्कि महिलाओं की शक्ति और सृजनशीलता का प्रतीक है। इसे लेकर सामाजिक संकोच और दूरी बनाना महिलाओं को मानसिक रूप से प्रभावित करता है।

क्या कहता है धर्म और वेद-शास्त्र

कई वैदिक शास्त्रों और संतों की राय है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को आराम की सलाह दी गई थी, न कि उन्हें पूजा से वंचित करने के लिए रोका गया। यह स्वास्थ्य के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण था, जिसे आज के समाज ने ‘अपवित्रता’ का नाम दे दिया।

ईश्वर की नजर में भेद नहीं

प्रेमानंद जी ने जोर देते हुए कहा कि “ईश्वर पुरुष और स्त्री में भेद नहीं करता। वह केवल भक्ति देखता है, शरीर की स्थिति नहीं।” इसलिए जो भी महिला सच्चे मन से भक्ति करती है, वह हमेशा भगवान के करीब होती है — चाहे वह किसी भी अवस्था में हो।

आध्यात्मिकता का मूल है भाव, न बाहरी नियम

भक्ति और ईश्वर के प्रति प्रेम का संबंध आत्मा से होता है, न कि शरीर की स्थितियों से। सावन के महीने में अगर महिला श्रद्धा से भरी है, तो वह हर हाल में भगवान से जुड़ सकती है। प्रेमानंद जी का यही संदेश हर महिला के लिए संबल है।

मेरा नाम श्वेता गोयल है। मैंने वाणिज्य (Commerce) में स्नातक किया है और पिछले तीन वर्षों से गृहलक्ष्मी डिजिटल प्लेटफॉर्म से बतौर कंटेंट राइटर जुड़ी हूं। यहां मैं महिलाओं से जुड़े विषयों जैसे गृहस्थ जीवन, फैमिली वेलनेस, किचन से लेकर करियर...