भगवान शिव को समर्पित प्राचीन मध्यमहेश्वर मंदिर का रोमांचक ट्रैक: Madhyamaheshwar
Madhyamaheshwar Temple

भगवान शिव की नाभि की पूजा

मध्यमहेश्वर का ट्रेक करते हुए आप हिमालय की चोटियों का ऐसा अद्भुत दृश्य दिखाई देता है कि आपका मन आकर्षित हुए बिना नहीं रह पायेगा

Madhyamaheshwar: भगवान शिव को समर्पित मध्यमहेश्वर मंदिर पंच केदारों में दूसरे नंबर पर आता है। यह हमारे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में पड़ता है। इस मंदिर की कथा महाभारत काल के पांडवों से जुड़ी हुई है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित इस मंदिर में भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। यह मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ साहसिक पर्यटन के लिए भी जाना जाता है। युवाओं में यह अपने ख़ूबसूरत ट्रेक को लेकर काफ़ी लोकप्रिय है। इसलिए यहाँ पर आकर उनका उत्साह दोगुना हो जाता है। सर्दियों के मौसम में जब बर्फ़ नहीं होती है और रास्ता खुला होता है तो यहाँ पर काफ़ी भीड़ रहती है। इस जगह का ट्रैक करते हुए आप हिमालय की चोटियों का ऐसा अद्भुत दृश्य दिखाई देता है कि आपका मन आकर्षित हुए बिना नहीं रह पायेगा। इस लेख के माध्यम से इस ब्लॉग में हम आपको मध्यमेश्वर शिव मंदिर के बारे में पूरी जानकारी देंगे।

यह भी देखे-गर्मियों की छुट्टियों में करें माता रानी के इन पांच भव्य मंदिरों के दर्शन: IRCTC Temple Tour

मध्यमहेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा  

grehlakshmi
Madhyamaheshwar Katha

इस मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि यह महाभारत काल का मंदिर है जिसका निर्माण पांडवों ने किया था। इस सम्बंध में एक लोककथा प्रचलित है कि पांडव महाभारत का युद्ध जीतने के बाद भी कई तरह के पापों के भागीदार हो गए थे और  वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए थे। लेकिन शिव पांडवों से बहुत ज़्यादा क्रुद्ध थे, इसलिए वे बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे पर भीम ने उन्हें देख लिया।

भीम ने उस बैल को पकड़ने की कोशिश किया पर उसका पिछला हिस्सा ही हाथ में आया। शिव काफ़ी हद तक मिट्टी में शमा गए बैल का पीछे वाला भाग वही रह गया जबकि चार अन्य भाग चार हिमालय के विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों ने शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया जिन्हें हम वर्तमान में पंच केदार कहते हैं। एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को देखते हुए भगवान शिव और माता पार्वती मुग्ध हो गए थे और उन्होंने इस जगह पर मधुचंद्र रात्रि बिताई थी। जिसकी वजह से इस स्थल की धार्मिक महत्ता और भी ज़्यादा बढ़ जाती है।

पंच केदार में मध्यमहेश्वर का स्थान 

बैल का जो हिस्सा भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित है और सभी केदारों में पहले स्थान पर आता है। मद्महेश्वर मंदिर जिसका हम इस लेख में बात कर रहे हैं यह पंच केदार में दूसरे स्थान पर आता है। इसमें भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की नाभि प्रकट हुई थी। अन्य तीन केदारों में तुंगनाथ में उसकी भुजाएं, रुद्रनाथ में मुख व कल्पेश्वर में जटाएं प्रकट हुईं हैं और धार्मिक रूप से इन जगहों का बहुत ही उच्च और विशिष्ट महत्व है। 

मध्यमहेश्वर मंदिर का भूगोल 

मध्यमहेश्वर मंदिर समुंद्र तल से 11,473 फीट की ऊंचाई पर रुद्रप्रयाग जिले में उखीमठ के पास में स्थित है। मध्यमहेश्वर जाने के लिए सबसे पहले उखीमठ से रांसी गाँव जाना पड़ता है जो कि 20 से 25 किलोमीटर दूर है। रांसी गाँव से ही मध्यमेश्वर का ट्रेक शुरू होता है जोकि 18 किलोमीटर का है। मध्यमहेश्वर मंदिर यात्रा करने वाले सैलानियों को यह अठारह किमी का रास्ता पैदल चलकर पार करना पड़ता है। मध्यमहेश्वर मंदिर की इस यात्रा में घने जंगल, मखमली घास के मैदान, पुष्प, पशु-पक्षी इत्यादि देखने को मिलते हैं। ट्रेक के बीच में कई गाँव पड़ते हैं जिसमें गौंडार गाँव काफ़ी लोकप्रिय है। इस जगह पर ठहरने आदि की सुविधा मौजूद है। 

मध्यमहेश्वर मंदिर की संरचना 

Madhyamaheshwar
Madhyamaheshwar Structure

रांसी गाँव से 18 किलोमीटर का मध्यमेश्वर मंदिर का ट्रेक करके जब आप ऊपर पहुंचेगे, तो ठीक सामने बड़े-बड़े पत्थरों से बना विशाल मंदिर दिखाई देगा। वही मध्यमहेश्वर मंदिर है, जिसके गर्भगृह में भगवान शिव को समर्पित नाभि के आकार का काले पत्थरों से बनाया गया शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में दो मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें से एक केवल माता पार्वती की है और दूसरी भगवान शिव और माता पार्वती की है, जिनके अर्धनारीश्वर रूप की पूजा की जाती है। मध्यमहेश्वर मंदिर के बिल्कुल पास में ही एक और भी मंदिर है, जिसमें माता सरस्वती की मूर्ति है। मुख्य मंदिर से कुछ ही और दूरी पर एक मंदिर है जिसे बुढा मध्यमहेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की भी युवाओं में बहुत ज़्यादा मान्यता है। 

बुढा मध्यमहेश्वर मंदिर का ट्रैक 

Madhyamaheshwar Route
Madhyamaheshwar Trek

बुढा मध्यमहेश्वर मंदिर मुख्य मध्यमहेश्वर मंदिर से ऊपर दो-तीन किलोमीटर का ट्रेक करने के बाद आता है। यह जगह इतनी ख़ूबसूरत है कि अठारह किमी का लम्बा ट्रेक करने के बावजूद भी लोगों का साहस कम नहीं होता है जो लोग मध्यमहेश्वर मंदिर आते हैं वे बुढा मध्यमहेश्वर ज़रूर जाते हैं। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ से दिखने वाले हिमालय के अद्भुत और ख़ूबसूरत दृश्य। इस जगह से हिमालय की चौखम्भा चोटियां बहुत ही ख़ूबसूरत दिखाई देती हैं। इस जगह से आप हिमालय की चौखम्भा की चोटियों के साथ-साथ नीलकंठ, केदारनाथ, पंचुली व त्रिशूल की चोटियाँ की ख़ूबसूरती को अच्छी तरह से देख सकते हैं। 

मध्यमहेश्वर मंदिर का ट्रैक 

मध्यमहेश्वर का ट्रेक मध्यम श्रेणी का होते हुए भी काफ़ी लंबा और सीधी चढ़ाई वाला है जो थका देता है। पंच केदारों में मध्यमहेश्वर के ट्रेक को कठिन ट्रेक में गिना जाता है और ट्रेक में सुविधायों का भी भारी अभाव है। इसमें आपको केदारनाथ जैसी सुविधायें नहीं मिलेंगी। आपको उखीमठ से रांसी के लिए अमूमन सीधी बस मिल जाती है और यदि नहीं मिले तो आप मनसुना या उनियाना चले जायें। इस जगह से रांसी के लिए टैक्सी या जीप मिल जाती है। पहले जब आगे का मार्ग बना नही था तो मध्यमेश्वर की यात्रा मनसुना गाँव से शुरू होती थी।

रांसी गाँव से चलन पर सबसे पहले गौंडार गाँव आता है। रांसी से गौंडार का 6 किमी के ट्रेक में ज़ायद चढ़ाई नहीं है और आप आसानी से पार कर लेंगे। यह रास्ता भी पत्थरों और पगडंडियों की सहायता से सुगम बनाया गया है। गौंडार गाँव से आगे मध्यमहेश्वर का 12 किमी का ट्रेक बहुत दुर्गम हैं क्योंकि यहाँ से सीधी चढ़ाई शुरू हो जाती है। इस रास्ते में आपको रहने या विश्राम करने के लिए कुछ जगहें मिल जायेंगी लेकिन आखिरी स्थान गौंडार ही हैं। इस गाँव में आपको होमस्टे आदि की आधारभूत सुविधा मिल जायेगी पर इससे आगे के सफ़र के लिए आपको अपनी तैयारी खुद करके ही आगे निकलना चाहिए। 

मध्यमहेश्वर मंदिर के ट्रेक में मध्यमेश्वर गंगा नदी और कुछ प्राकृतिक झरने भी मिलते हैं जहां पर हाथ-मुहं धोकर अपनी पानी की बोतलें भर सकते हैं। अठारह किमी की चढ़ाई के बाद आप मध्यमहेश्वर मंदिर पहुँच जाएंगे। मंदिर दर्शन के उपरांत इस जगह पर कुछ समय व्यतीत करें और फिर बूढा मध्यमहेश्वर के ट्रेक के लिए निकल पड़े। यह ट्रेक नही किया तो इस यात्रा का आनंद अधुरा रह जाएगा। 

आसपास के अन्य पर्यटन स्थल 

मध्यमहेश्वर मंदिर के आसपास कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं। इस यात्रा के बाद यदि आप कहीं और जाना और घूमना चाहते हैं तो कंडिया, हमशा, धनपाल, पंचगंगा, पनार बुग्याल क्षेत्र का चुनाव कर सकते हैं। यहीं पर कल्पेश्वर शिव मंदिर,माता अनुसूया मंदिर, गोपीनाथ मंदिर,  तुंगनाथ शिव मंदिर, लौह त्रिशूल, नंदीकुंड, राकेश्वरी मंदिर, रांसी गाँव, चंद्रशिला पहाड़ी, देवरिया ताल झील आदि भी स्थित हैं।

मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रैक के लिए टिप्स 

मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रैक करने का मन बना रहे हैं, तो कुछ बातों का आवश्यक रूप से ध्यान रखना चाहिए। जैसे कि यहाँ का मौसम वर्षभर ठंडा रहता हैं इसलिए गर्म कपड़े साथ रखें, ट्रैकिंग वाले जूते व एक छड़ी भी साथ में रखें, थोड़ी बहुत जानकारी पहले से जुटा लें। इस जगह पर मोबाइल का सिग्नल बहुत कम मिलता है और मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना पूरी तरह से निषेध है। बारिश के मौसम में यहाँ आने से बचे क्योंकि ट्रेक मुश्किल और ख़तरनाक साबित हो सकता है। नवंबर से लेकर अप्रैल माह तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।

Leave a comment