Guru Granth Sahib: सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले सन 1708 में यह घोषणा की थी कि वह सिखों के आखिरी गुरु होंगे, इसके बाद कोई और गुरु नहीं होंगे। इसके बाद गुरु ग्रंथ साहिब ही सिक्खों के आखिरी गुरु और जीवित गुरु होंगे। गुरु ग्रंथ साहिब को जीवित और आखिरी गुरु माना जाता है। जहां भी यह ग्रंथ रखा जाता है, उसे गुरुद्वारा कहा जाता है। गुरुद्वारे में पूरे आदर सम्मान के साथ गुरु ग्रंथ साहब को रखा जाता है। सिख इन्हें अपने जीवित गुरु मानते हैं क्योंकि इनमें सभी सिख गुरुओं की पवित्र वाणियां संकलित हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में क्या है –
गुरु ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं के पवित्र वाणियां,सूक्तियां, दोहे, शबद, कई धार्मिक लेख और उक्तियों का संग्रह है। इसमें सिखों के धर्म गुरु की पवित्र वाणियां लिखी गई हैं ,जिन्हें गुरबानी अर्थात गुरु की वाणी कहा जाता है। यह पंजाब की भाषा गुरमुखी लिपि में लिखी गई है। इसकी शुरुआत गुरु नानक देव जी के समय से हो गई थी। नानकदेव जी के पवित्र उपदेशों को बाद में संकलित कर लिपिबद्ध किया गया। उसके बाद के गुरुओं की वाणी और उपदेशों को भी संकलित किया गया। छह सिख गुरुओं गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमर दास जी, गुरु रामदास जी, गुरु अर्जुन देव जी और गुरु तेग बहादुर जी के पवित्र वाणियां और उनके उपदेशों का संकलन है।
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सिख गुरुओं की वाणियों का संकलन सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने करना शुरू किया था। सिख धर्म गुरुओं की वाणियों के अलावा अन्य कई संतों की भी वाणियां इसमें संकलित किया गया है। जिनमें गुरु कबीर दास,गुरु नामदेव , रविदास और शेख फरीद की भी वाणियां और उपदेश संकलित हैं। इसका अंतिम रूप गुरु गोविंद सिंह जी ने दिया। उन्होंने इस ग्रंथ में अपने पिता गुरु तेग बहादुर सिंह जी के भी उपदेश संकलित किया।गुरु ग्रंथ साहिब को तैयार होने में लगभग 200 साल लग गए। इसे पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में स्थापित किया गया।पहली बार 30 अगस्त सन् 1604 में इसका पहला संस्करण प्रकाशित किया गया था।
गुरु ग्रंथ साहिब का महत्व
सिख धर्म का आधार है: इसमें सिखों के सभी गुरुजनों की वाणी और उनके उपदेश संकलित हैं। सिक्ख इसे अंतिम और जीवित गुरु मानते हैं।
ईश्वर की वाणी–सिख इन्हें ईश्वर की वाणी मानते हैं।
एकता का महत्व–गुरुद्वारे में एकजुट होकर प्रार्थना करते हैं। यह समाज में भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है।
इस आदि ग्रंथ में सिख गुरुओं के अलावा कई अन्य गुरु जनों की भी पवित्र वाणियां संकलित हैं जो सब धर्म समान का समर्थन करते हैं ।
गुरु ग्रंथ साहिब में कई ऐसे शब्द हैं जिनके अलग अलग अर्थ हैं।
शबद-गुरु ग्रंथ साहिब में शबद का अर्थ बहुत ही गहरा है। इसमें संकलित वाणियों को शबद कहते हैं। शबद का अर्थ है ईश्वर की वाणी।
दरबार साहिब- गुरुद्वारे के प्रार्थना कक्ष को दरबार साहिब कहते हैं।
संगत- एक साथ प्रार्थना करने को संगत कहते हैं।
वाहेगुरु–सिख अपने गुरुओं के प्रति अपनी नम्रता और भक्ति प्रकट करने के लिए वाहेगुरु का जाप करते हैं।
इक ओंकारा– अर्थात ईश्वर एक है। यह गुरु ग्रंथ साहिब के पहले पन्ने पर लिखा गया है।
गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब के पास सिर ढक कर ही प्रवेश किया जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 5,894 शबद हैं जिनमें इनमें 974 शबद गुरु नानक जी के हैं। इन्हें 31 राग में लिखा गया है। गुरु अर्जन देव ने 1601 ईस्वी में शुरू किया था और सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 1705 ईस्वी में इसका संपूर्ण रूप तैयार किया। इसमें उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द भी जोड़े थे। सिखों इसे आदि ग्रंथ मानते हैं। इस महान ग्रंथ में सर्व धर्म समन्वय का सिद्धांत दिखता है, जिसमें सिख धर्म गुरुओं के अलावा अन्य धर्म गुरुओं के पवित्र उपदेश भी संकलित हैं।
