Pappu Ki Rimjhim Chhatri
Pappu Ki Rimjhim Chhatri

Kids story in hindi: बारिशें शुरू हो गई थीं, मगर पप्पू की रिमझिम छतरी अभी तैयार ही नहीं हुई थी।

कब बनेगी, कुछ भी पक्का नहीं था। उस पर भी पप्पू की जिद थी कि चाहे कुछ हो जाए, मगर मैं तो अपनी खुद की छतरी बनाऊँगा और जब उसे लेकर बाहर निकलूंगा, तो दुनिया देखती रह जाएगी।

एक-एक कर पूरे तीन महीने हो गए और अब तो बारिशों का मौसम भी आ गया। तो भला कब तैयार होगी उसकी तीन लोक से न्यारी छतरी? और उसमें ऐसी क्या खास बात होगी, जिसके लिए वह इतना परेशान है। क्या अनमोल लाल जड़े होंगे उसकी छतरी में?

मम्मी- पापा, भैया- दीदी सबने बहुत समझाया, “अरे पप्पू, तुम कहो तो बाजार से हम तुम्हारे लिए बढ़िया वाली छतरी ला देते हैं। जो भी चाहो, खुद चलकर पसंद कर लो। यह तुम किस चक्कर में पड़ गए? भला छतरी भी कोई अपने हाथ से बनाता है? हमने तो आज तक नहीं सुना।”

मीनू दीदी ने कहा, “देख पप्पू, तुझे पता नहीं है, पर आजकल तो ऐसी छतरियाँ भी आने लगी हैं कि बिल्कुल इंद्रधनुष समझो। मैं तुझे ला दूँगी तो तू लाखों में अलग नजर आएगा। दूर से देखते रह जाएँगे तेरे दोस्त। सब कहेंगे कि पप्पू कहाँ से ली छतरी, हमें भी दिलवाओ।”

पर पप्पू को भला कौन समझाए? उसकी तो वही जिद कि “नहीं, मैं तो अपनी ही रिमझिम छतरी लेकर निकलूंगा बाहर, रिमझिम छतरी!”

“पर है कहाँ वह, कहाँ मिलेगी वह? कब तक तैयार होगी? तू तो कुछ बता ही नहीं रहा।” दीदी चिढ़कर कहती।

सुनकर पप्पू हँस देता। हँसते-हँसते कहता, “जब होगी तो होगी। आखिर कभी न कभी तो होगी! इसमें भला परेशान होने की कौन-सी बात है?”

“और बारिश में भीगकर बीमार पड़ गए तो? फिर कौन बनाएगा तेरी रिमझिम छतरी?” मीनू दीदी ने कहा।

“तो क्या हुआ? पड़ने दो बीमार। फिर तो और भी जल्दी बनेगी मेरी छतरी, क्योंकि चारपाई पर लेटे-लेटे सोचता रहूँगा! फिर ठीक होते ही झटपट बनाना शुरू कर दूँगा अपनी प्यारी छतरी। और एक दिन तो सच्ची में ही झंडा गाड़ दूँगा।” पप्पू इतराते हुए बोला।

और फिर धीरे-धीरे हालत यह हुई कि पप्पू इस छतरी के चक्कर में अपनी पढ़ाई-लिखाई तो भूला ही, खाने-पीने का भी उसे कुछ होश न रहा। मम्मी जब भी खाने के लिए बुलातीं, उसका एक ही जवाब होता कि “अरे, मैं आ रहा हूँ न मम्मी!” और फिर स्टोर में लोहा-लंगड़ और बिजली के तारों के साथ उसकी वही खट-खट, खिट- पिट चालू। बात करता तो ऐसे, जैसे हवा में उड़ रहा है।

उसकी हालत देखकर मम्मी एकदम परेशान हो गईं। सोचने लगीं, ‘कहीं लड़के को कुछ हो तो नहीं गया?’

उन्होंने अपने पति मि. भटनागर से कहा, “अब आप ही सँभालिए, मैं तो परेशान हो गई।”

कुछ ही दिनों में हालत यह हुई कि घर में सबके सब हैरान-परेशान। भला इस पप्पू को हो क्या गया है? अच्छा भला ठीक-ठाक था। पढ़ाई-लिखाई में भी बढ़िया चल रहा था। सब टीचर भी खुश थे, पर तभी जाने कैसा भूत सिर पर चढ़ा कि पिछले दो-तीन महीने से सारी पढ़ाई चौपट। ऐसे पास होगा, ऐसे…?

पर पप्पू पर कोई असर ही नहीं। वह तो अब भी अपनी रिमझिम छतरी की कल्पना में ही खोया हुआ था। उसके भीतर हर वक्त बस एक ही उथल-पुथल चलती रहती कि वह होगी तो ऐसा होगा… ऐसा- ऐसा होगा। और छतरी क्या, पूरा जादू-मंतर होगा। जब वह लेकर जाएगा बाहर, तो क्या-क्या कमाल होंगे? सोचते-सोचते उसके चेहरे पर बड़ी ही भीनी मुसकान आ जाती।

*

आखिर पूरे छह महीने बाद पप्पू की रिमझिम छतरी तैयार हुई। तब तक खूब झमाझम बारिशें शुरू हो गई थीं। पर पप्पू भला उसे ऐसे ही बाहर कैसे ले जाना शुरू करे? कहीं उसका यह नायाब एक्सपेरीमेंट फेल हो गया और मामला गड़बड़ा गया तो?

लिहाजा अपनी रिमझिम छतरी को बनाने के बाद कोई हफ्ते भर तक उसने खूब अच्छी तरह सारे परीक्षण किए। हालाँकि, इस चक्कर में उसे कम मुसीबत नहीं झेलनी पड़ी। और सबसे ज्यादा तो निक्की ने ही रुलाया।

हुआ यह कि एक दिन जरा जोश में आकर उसने अपनी छोटी बहन निक्की से कहा, “ओ निक्की, जरा तू इस छतरी पर एक गिलास भरकर पानी तो डाल।”

“पानी… छतरी पर पानी डालूँ, पप्पू भैया?” निक्की ने अजीब तरह से आँखें फैलाकर पूछा, “पर छतरी है कहाँ…? आपके सिर पर तो नीला-नीला रोशनी का घेरा घूम रहा है। क्या यही है छतरी?”

“अरे, तू डाल ना! मैं जरा छतरी को टेस्ट कर रहा हूँ।” पप्पू ने उसे समझाया।

“क्या ये टेस्ट करना है कि कहीं पानी टपकता तो नहीं?” निक्की ने अपनी बुद्धिमत्ता बघारी।

अब पप्पू के लिए खुद पर जज्ब करना मुश्किल हो गया।

“अरे, तू बहुत बातें करती है। अब चुप करेगी भी कि नहीं?” उसने डपटा।

इस पर निक्की ने पानी तो डाला, पर भीतर रोती हुई चली गई। खामखा मम्मी से अच्छी-खासी डाँट पड़ गई पप्पू को और मूड एकदम ऑफ हो गया।

तब पप्पू ने बड़े प्यार से निक्की को समझाया कि वह असल में एक नई-निराली जादू वाली छतरी बना रहा है।

“अरे वाह, जादू वाली छतरी! फिर तो जरूर पानी डालूंगी। और भी बताओ, क्या-क्या करना है, पप्पू भैया!” निक्की ने कहा, और फिर उसने पप्पू की पूरी मदद की।

उसी से पता चला कि पप्पू का एक्सपेरीमेंट एकदम सौ परसेंट सही है। निक्की ने एक नहीं, कोई दस-बीस बार पानी से भरा मग उलट दिया, पर छतरी पर पड़ने से पहले ही पानी उड़न- छू। छतरी उससे जरा भी भीगी न थी।

और फिर एक दिन तो पप्पू फर-फर चलते बाथरूम के फव्वारे के नीचे ही अपनी छतरी लेकर खड़ा हो गया।

और जादू… वाकई जादू हो गया। फव्वारे का पानी नीचे आते ही छतरी के चारों ओर नाचने लगा, मगर मजाल है कि छतरी की ओर पानी की एक बूँद भी आ जाए, या छतरी थोड़ी भीग जाए। यों साबित हो गया कि पप्पू की रिमझिम छतरी वाकई जादू वाली छतरी है।

फिर एक दिन जब आकाश में खूब घने काले बादल छाए हुए थे, पप्पू अपनी रिमझिम छतरी लेकर निकला बाहर। ‘पता नहीं, सब कुछ ठीक-ठाक होगा या नहीं?’ सोच-सोचकर उसके भीतर रोमांच-सा हो रहा था। कलेजा धक-धक कर रहा था।

पर पप्पू की वह अनोखी छतरी थी कहाँ? वह तो किसी को दिखाई ही नहीं पड़ रही थी और न पप्पू ने उसे हाथ से पकड़ा हुआ था। तो क्या वह हवा में घुल गई? मम्मी को जब उसने बताया कि वह अपनी छतरी लेकर स्कूल जा रहा है, तो वे बड़ी हैरान थीं, कि पप्पू कौन-सी नीली छतरी की बात कर रहा है? सिर्फ एक नीला प्रकाश था, जो पप्पू के सिर पर घूम रहा था। मगर छतरी तो कहीं नहीं थी।

और जब पप्पू बाहर सड़क पर आया, तो लोग आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, “अरे, पप्पू के सिर पर यह नीला-नीला-सा कैसा प्रकाश-चक्र घूम रहा है। यह तो कमाल की बात है, बड़े ही कमाल की बात!” और पप्पू इस सब से बेफिक्र, मुसकराता हुआ बढ़ रहा था।

तभी जोर की गड़गड़ाहट के साथ खूब झमाझम बारिश होने लगी। आसपास भगदड़-सी मच गई। लोग पानी से बचाव के लिए दौड़-दौड़कर किसी सुरक्षित जगह पर जा रहे थे। कोई किसी पेड़ के नीचे जा खड़ा हुआ तो कोई किसी इमारत के छज्जे के नीचे खड़ा हो गया। कुछ लोग भीगते हुए ही जल्दी-जल्दी रास्ता पार कर रहे थे।

पर पप्पू तो मजे में खरामा -खरामा आगे बढ़ता जा रहा था, जैसे उसे इस झमाझम बारिश से कुछ मतलब ही न हो। और मजे की बात यह कि बूँदें उस पर गिरने की बजाय उसके सिर पर चक्कर काटते नीले प्रकाश में गायब होती जा रही थीं।

पप्पू जरा भी भीगा नहीं था।

यह माजरा देखा तो आसपास के लोग भौचक्के रह गए। सब देखने वालों ने दाँतों तले उँगली दवा ली, “अरे भैया! यह क्या चक्कर है?”

पर पप्पू निश्चित था। आवाजें उस तक भी आ रही थीं, पर वह मन ही मन मुसकराता हुआ आगे बढ़ रहा था।

एक-दो लोगों ने सोचा कि जरा रोककर पप्पू से पूछा जाए, कि कहीं उसके सिर पर कोई भूत-प्रेत का साया तो नहीं?

एक लालाजी पप्पू के पड़ोस में ही रहते थे। अपना बड़ा-सा छाता लेकर उसकी बगल से गुजर रहे थे। पप्पू को देखा तो कहने ही वाले थे कि “पप्पू, ओ पप्पू, आ जा मेरी छतरी में!” पर यह क्या…? वे तो भौचक्के ही रह गए। यह हो क्या रहा है? बेचारे लालाजी ऐसे चकराए कि डर के मारे उनकी टोपी उछलकर नीचे जमीन पर जा गिरी। उधर पप्पू था कि मस्ती में गाना गाते हुए आगे बढ़ता जा रहा था।

कुछ आगे रज्जू अंकल मिले। पप्पू से कुछ बात करना चाहते थे, पर उसके सिर की ओर निगाह गई, तो बुरी तरह चौंके। बोले, “अरे पप्पू, कुछ जादू-वादू सीख लिया क्या? ऐसा नजारा तो मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखा।”

अब तक पप्पू स्कूल पहुँच गया था और उसे देखने के लिए बच्चों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। उसके दोस्तों को उसकी इस रिमझिम छतरी के बारे में कुछ पता था। पर जो विचित्र नजारा उनके सामने था, उसकी तो वे कल्पना तक नहीं कर सकते थे।

इतने में उसकी क्लास टीचर शांता मैम वहाँ से गुजरीं। वे भी पप्पू को देखकर चकराईं। फिर मुसकराते हुए बोलीं, “पप्पू, चलो क्लास में!”

पर उसके दोस्त नीलू ने रोक लिया। दूर से चिल्लाकर बोला, “पप्पू, ओ पप्पू, तेरे सिर पर भूत…!”

“होने दो।” पप्पू हँसता हुआ आगे चल दिया।

पर तब तक और भी बहुत सारे लड़कों ने उसे घेर लिया। सब एक ही बात कह रहे थे, “अरे, बता तो पप्पू, यह क्या चक्कर है? कैसा यह गोल-गोल नीला प्रकाश घूम रहा है तेरे सिर पर। भला यह चक्कर क्या है?”

“छतरी … रिमझिम छतरी!” कहकर पप्पू हँसा।

“छतरी! ओए, हमें बुद्धू बनाता है, ऐसी होती है छतरी?” नीलू, अंकित, मिंटू और रोहन एक साथ चीखे, “नहीं-नहीं पप्पू, तुझे बताना पड़ेगा।”

तब तक साइंस के टीचर वधवाजी वहाँ से निकले। उनकी आँखें एकबारगी पप्पू पर जमीं, तो जमीं रह गईं। फिर एकाएक उनके मुँह से निकला, “क्या वाकई पप्पू, तुम्हें कामयाबी मिल गई? यानी वही तुम्हारी रिमझिम छतरी!”

“हाँ सर!” पप्पू ने बताया।

सुनकर वधवा सर एकदम सीरियस हो गए। बोले, “अरे, तब तो बताओ, कैसे? क्या कुछ किया तुमने? इट्स अ बिग सक्सेज, नो डाउट! सचमुच कमाल ही कर दिया।”

“बताऊँगा सर, पूरी क्लास के सामने बताऊँगा। पर आज नहीं। मैं उसके लिए तैयारी कर रहा हूँ। पहले मैं पेटेंट करवा लूँ, फिर उसके बारे में सबको बताऊँगा।”

*

और फिर पेटेंट का चक्कर पूरा होते ही पप्पू ने सबसे पहले स्कूल में ही अपनी इस नायाब छतरी का प्रदर्शन किया। साइंस के वधवा सर ने बड़े उत्साह से इसके लिए तैयारियाँ की थीं।

स्कूल के हॉल में सारे बच्चे इकट्ठे थे। प्रिंसिपल डॉ. राजन राजवंशी ने चीफ गेस्ट के रूप में मॉडर्न साइंस एकेडेमी के निदेशक डॉ. अमिय घोष को खास तौर से आमंत्रित किया था। वे पप्पू की इस नायाब छतरी की बात सुनकर हैरान थे। पूरा हॉल पप्पू की यह छतरी देखने और उसके इस अनोखे आविष्कार के बारे में जानने के लिए उत्सुक था।

प्रिंसिपल साहब के बुलाने पर पप्पू मंच पर पहुँचा, तब भी उसके सिर पर वही नीले प्रकाश का चक्र घूम रहा था। सबकी आँखें उसी पर टिकी थीं। पप्पू ने मुसकराते हुए कहा, “अफसोस, आपको मेरी छतरी दिखाई नहीं दे रही होगी। इसलिए कि यह ऐसी छतरी है जो किसी को दिखाई नहीं देती। पर मैं आपको बता दूँ कि यह दिखाई देने वाली छतरियों से ज्यादा बढ़िया काम करती है। फिर इसके खोने का कोई डर नहीं है और इसे हाथ से पकड़ने की भी जरूरत नहीं। पर काम ऐसा करेगी कि जैसे जादू वाली छतरी हो। कितनी ही तेज बारिश हो, मजाल है कि एक बूँद पानी भी इसके नजदीक आ जाए। पानी इसके पास आने से पहले ही हवा में भाप बनकर उड़ जाएगा और छतरी गीली तक नहीं होगी। इसके लिए इसमें से खास तरह के रेडिएशंस निकलते हैं और देखा जाए तो, असल में वही हमारी छतरी का काम भी करते हैं। …”

कहकर पप्पू ने हॉल में चारों ओर एक नजर डाली। सब ओर ऐसा सन्नाटा था, जैसे किसी को अपना होश ही न हो। पप्पू की छतरी ने वहाँ उपस्थित लोगों को किसी और दुनिया में पहुँचा दिया था, जिसमें विज्ञान किसी जादू भरे करिश्मे की तरह था। पप्पू ने अपनी छतरी का असली राज खोलते हुए कहा, “और हाँ, आप लोगों को एक बात बताना तो मैं भूल ही गया। मैंने इसमें लेजर रेज के जादू का बढ़िया इस्तेमाल किया है। इस छतरी को आँधी-तूफान में कहीं भी ले जाएँ, इसका जादू कम नहीं होगा। जो इसका काम है, वह करेगी। पर किसी को यह नजर नहीं आएगी और इसे हाथ में पकड़ने का झंझट तो बिल्कुल है ही नहीं। अपने प्रयोग के अगले चरण में मैं कोशिश करूँगा कि ऐसी छतरियाँ सस्ती बनें, ताकि हर कोई इनका इस्तेमाल कर सके।”

पप्पू की बात पूरी होते ही सभाभवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजने लगा।

फिर वधवा सर ने मंच पर आकर कहा, “मुझे पता है, अब आप लोग जल्दी से जल्दी पप्पू की छतरी का अजब करिश्मा देखना चाहते हैं। तो अपनी आँखों से यह कमाल देखने के लिए तैयार हो जाइए।”

वधवा सर के इशारे पर मंच पर एक-एक कर सात बच्चे आए। सबके हाथ में पानी की छोटी-छोटी बालटियाँ थीं। सब पप्पू के चारों ओर गोला बनाकर खड़े हो गए। सबने एक साथ पप्पू की छतरी पर पानी की बालटियाँ उलटनी शुरू कीं। पर यह क्या? देखते ही देखते वह पानी पप्पू की छतरी के चारों ओर नाचने लगा और फिर एकाएक गायब!

इस पर पूरे हॉल में इतनी तालियाँ बजीं कि वे देर तक रुकने का नाम ही नहीं लेती थीं।

इसके बाद प्रिंसिपल डॉ. राजन राजवंशीजी ने पप्पू की खूब तारीफ करते हुए कहा, “हमारे स्कूल का यह नन्हा जगमग सितारा, उम्मीद है, जीवन में ऐसे एक से एक बड़े आविष्कार करके लोगों का जीवन खुशहाल बनाएगा। हमारा प्यार और आशीर्वाद हमेशा इस नन्हे फरिश्ते के साथ है, जिसमें काम करने की बड़ी ललक है।” मॉडर्न साइंस एकेडेमी के निदेशक डॉ. अमिय घोष ने खुश होकर पप्पू को अपनी एकेडेमी की जूनियर फेलोशिप देने की घोषणा की।

अगले दिन सारे अखबारों में भारत के नन्हे वैज्ञानिक पप्पू के इस अनोखे आविष्कार की ही चर्चा थी। सबका यही कहना था कि पप्पू ने साबित कर दिया, अगर कोई बड़े सपने देखता है तो उसे पूरा भी कर सकता है। और हमारे देश के नन्हे वैज्ञानिक भी किसी से कम नहीं हैं।

पप्पू की रिमझिम छतरी के इर्द-गिर्द बारिश की नाचती हुई बूँदें भी शायद यही कह रही थीं।

ये कहानी ‘इक्कीसवीं सदी की श्रेष्ठ बाल कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं 21vi Sadi ki Shreshtha Baal Kahaniyan (21वी सदी की श्रेष्ठ बाल कहानियां)