Plastic Effects: भारत सरकार, सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के साथ प्लास्टिक के कचरे से निपटने के लिए अपने कदम बढ़ा चुकी है, पर क्या सरकार का ये प्रतिबंध वास्तव में प्लास्टिक के कहर से निपटने में कारगर हो सकेगा।
‘सुबह की शुरुआत प्लास्टिक के साथ’ सुनने में अजीब है, लेकिन सौ प्रतिशत सच है। आप उठते ही
सबसे पहले प्लास्टिक का टूथब्रश मुंह में डाल लेते है। यहीं से प्लास्टिक और आपकी दोस्ती की रोजाना शुरुआत हो जाती है। फिर नहाने के लिए बाल्टी और मग का इस्तेमाल करना हो या फिर ऑफिस के लिए प्लास्टिक वाला टिफिन और उसमें लंच साथ में पीने वाली बॉटल भी प्लास्टिक की ही होती है। इस तरह से प्लास्टिक आज हर जगह, हर समय, हमारी आदतों में शुमार हो चुका है और ये हमारी आदत ही है, जिसके चलते आज हम प्लास्टिक का कहर झेलने को मजबूर हो चुके हैं।
आज पूरी दुनिया प्लास्टिक के कचरे के चलते विनाश के कगार पर पहुंच चुकी है। आंकड़ों की बात करें, तो सिर्फ भारत में ही 1.65 करोड़ टन प्लास्टिक की सालाना खपत हो रही है, जिसमें से 43 फीसदी प्लास्टिक का इस्तेमाल तो सिर्फ एक बार के लिए होता है और इसका 80 फीसदी प्लास्टिक सीधे कचरे में फेंका जाता है। स्पष्ट है कि प्लास्टिक का उपयोग अब इतना बढ़ चुका है कि इसके इस्तेमाल पर नियंत्रण के लिए सरकार को कानून का सहारा लेना पड़ा।
बीते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक सिंगल यूज प्लास्टिक यानी कि एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक से निजात पाने का आह्वान किया है। हालांकि इसके अलावा भी प्रदेश स्तर पर कई राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम उठा चुकी हैं, लेकिन उन सबका परिणाम अब तक शून्य ही रहा है। क्योंकि अभी तक प्लास्टिक बैन के लिए किए गए इन प्रयासों में सरकार को आम जनता का सहयोग नहीं मिला है। इसीलिए स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी ने मोर्चा संभाला है। उनका मानना है, जब तक जनजागृति नहीं होगी, तब तक ऐसे प्रयासों का सफल होना असम्भव है।
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प्लास्टिक ने बदल डाली जीवनशैली

असल में जब तक हम और आप इस दिशा में नहीं सोचेंगे तब तक प्लास्टिक के कचरे से निपटना मुश्किल है। क्योंकि प्लास्टिक बीते 10 से 15 सालों में हमारी जीवनशैली का एक अहम हिस्सा सा बन चुका है। अगर आप आज से एक या डेढ़ दशक पहले की सोचें तो आपको याद आएगा कि तब प्लास्टिक का इतना इस्तेमाल नहीं था। तब लोग बाजार निकलते तो एक कपड़े का थैला अपने साथ लेकर ही निकलते थे, जिसमें वो एक साथ सारी चीजें लेकर आते थे, लेकिन देखते ही देखते प्लास्टिक की थैली का चलन बढ़ा, लोगों ने घर से थैला लेकर निकलना ही छोड़ दिया। सब्जी से लेकर राशन तक, छोटी सी छोटी चीज से लेकर बड़े से बड़ा सामान तक हर कुछ आपको प्लास्टिक के पैकेट में मिलने लगा। 5 रुपये की नमकीन हो या बिस्किट वो भी प्लास्टिक के पैकेट में मिलता है।
सहूलियत और प्लास्टिक का मोहपाश

बाकी चीजें छोड़िए यहां तक कि खाने पीने के बर्तन भी प्लास्टिक के आने लगे, कि आप एक बार उनका इस्तेमाल कीजिए और फेंक दीजिए। ना उन्हें धुलने का झंझट और ना ही उन्हें रखने का, साथ ही सस्ते का सस्ता भी। इन्ही सहुलियतों और किफायती दर के जरिए प्लास्टिक ने हर घर में अपनी जगह बना ली। कभी आप किचन में ही नजर घुमा लीजिए, आप पाएंगे कि पहले जहां टीन या स्टिल के कंटेनर में राशन और दूसरे खाद्य पदार्थ रखें जाते थे, वहीं अब प्लास्टिक के डिब्बों में चीजें रखी जाती हैं। प्लास्टिक के डिब्बों में लोग खाद्य पदार्थों को बड़े जतन से सम्भालकर रखते हैं और पैकेजिंग का ये फंडा ही है, जिसके चलते लोग प्लास्टिक के मोहपाश में बंधे।
आदतें बन चुकी हैं दुश्वारी
दरअसल, किसी भी कृत्रिम चीज का आविष्कार या निर्माण इंसान अपनी सहूलियत के लिए करता है, प्लास्टिक भी सहूलियत के लिए बनाई गई एक कृत्रिम वस्तु है, जिसने इंसानी जीवन को काफी हद तक आसान बनाया। इसी सहुलियत के चलते इसका उपयोग दिन पर दिन बढ़ता ही गया और इस हद तक बढ़ा कि जब तक इसका दुष्परिणाम विकट में रूप में ना देखने को मिल गया। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान की बात करें तो इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये है कि इसे पूरी तरह से विघटित होने यानी कि खत्म होने में 500 से 1,000 साल तक लगते हैं और तब तक ये मिट्टी को दूषित करता है। वहीं प्लास्टिक का कचरा अब नदियों और समुद्र तक भी पहुंच चुका है, जिसके चलते हर साल 10 लाख से अधिक समुद्री जीवों और पक्षियों की मौत हो रही है।
वैसे प्लास्टिक ना सिर्फ कचरे के रूप में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इसका उत्पादन भी पर्यावरण के लिए खतरनाक है, क्योंकि प्लास्टिक के उत्पादन में पूरे विश्व के कुल तेल का 8 प्रतिशत तेल खर्च हो जाता है। जाहिर है प्लास्टिक का इस्तेमाल हर रूप में पर्यावरण और जीवन के लिए विनाशकारी है। पर सवाल ये है कि इससे निपटा कैसा जाए तो आपको बता दें कि हर सवाल में ही उसका जवाब होता है, जैसे कि अगर आज प्लास्टिक हमारी आदत में शुमार हो चुका है, तो क्यों ना इन आदतों को ही बदल डाला जाए।
कैसे मिलेगी प्लास्टिक से मुक्ति
दरअसल, हमें प्लास्टिक के उपयोग की जो लत लगी है, उसे बदलना ही इस समस्या से निपटने का सबसे कारगर उपाय है। असल में प्लास्टिक का इस्तेमाल हम अपनी स्वेच्छा से कर रहे हैं, ऐसा नहीं है कि हमारे पास इसका कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। क्योंकि प्लास्टिक की चीजें बाजार में आने से पहले भी हमारा काम चल रहा था, प्लास्टिक के बजाए दूसरी धातुओं की चीजें उपयोग में लाई जाती थीं, पर जब प्लास्टिक का विकल्प हमारे सामने आया तो हमनें प्लास्टिक को अपना लिया और वो भी अधिकता के साथ। कहते हैं ना कि अति किसी भी चीज की बुरी होती है और प्लास्टिक की इसी अति ने भी वही किया हमारे साथ। आज ये इंसानी जीवन के साथ ही दूसरे जीव जंतुओं और पर्यावरण के लिए संकट बन चुका है। तो चलिए अपनी आदतों में इन बदलाव के जरिए इस 2 अक्टूबर एक स्वच्छ भारत के साथ ही एक बेहतर जीवन और भविष्य के लिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को छोड़ने का संकल्प करें।
क्या कर सकते हैं हम
अगर हमें प्लास्टिक की इस बुरी लत से निजात पाना है तो अपनी आदत बदलनी होगी। इसलिए आज से और अभी से अपनी आदतों पर गौर कीजिए और प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम से कम करने की कोशिश कीजिए। जैसे-
1. घर-ऑफिस हर जगह से सिंगल यूज वाले प्लास्टिक को निकाल बाहर कीजिए।
2. बाहर निकलते वक्त हमेशा अपने साथ एक कपड़े का थैला साथ रखें, ताकी अगर आप बाहर से कुछ भी खरीदते हैं तो आपको उसे रखने के लिए प्लास्टिक का बैग ना लेना पड़ें।
3. घर के कूड़े को भी जहां तक हो सके खराब पेपर में पैक करें।
4.पुराने प्लास्टिक के बॉटल को फेंकने के बजाए उन्हें प्लांट लगाने के लिए या घर के दूसरे काम में दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं।
5.पीने का पानी हमेशा तांबे या दूसरी धातुओं के बॉटल में रखें।
6. ऑफिस का लंच स्टील या दूसरे धातुओं के बर्तनों में ले जाएं।
