दिल्ली वाले गुरु जी,आज भी पूरी करते हैं भक्तों की हर इच्छा: Guru Ji
Guru ji Life Journey

Guru Ji: भारत में कई संत-महात्मा हैं, जो संसार को अध्यात्म से जोड़ने का कार्य करते हैं। इन्हीं में से एक हैं दिल्ली के छत्तरपुर वाले गुरु जी, जो मानवता को आशीर्वाद देने और जाग्रत करने के लिए पृथ्वी पर आए थे। 7 जुलाई 1954 को पंजाब के मलेरकोटला के दुगरी गांव में उनका जन्म हुआ था। गुरु जी ने अपने जीवन के शुरुआती चरण दुगरी गांव में ही बिताए। स्कूल-कॉलेज गए और अंत में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। उनको जानने वाले बताते हैं कि बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता की चिंगारी थी। इस चिंगारी को पूरी तरह से जलने में देर नहीं लगी।

Guru Ji: आशीर्वाद की बौछार

लाखों लोगों के कष्टों को कम करने के लिए गुरु जी के आशीर्वाद की बौछार पृथ्वी पर गिरने लगी। जालंधर, चंडीगढ़, पंचकुला और नई दिल्ली सहित अलग-अलग स्थानों पर उनके सत्संग आयोजित होने लगे, जिसमें भक्तों का बढ़ी संख्या में जमावड़ा लगने लगा। भारत समेत दुनिया के अन्य हिस्सों से भी भक्त जन उनका आशीर्वाद लेने आते थे। कहते हैं कि गुरु जी के सत्संग में परोसे जाने वाली चाय और लंगर प्रसाद पर उनकी दिव्य कृपा होती थी। भक्तों ने विभिन्न रूपों में उनकी कृपा का अनुभव किया है। गुरु जी की कृपा से असाध्य रोग ठीक हो गए और कानून से लेकर वित्तीय और भावनात्मक समस्याओं का भी समाधान होने लगा। संगत के कुछ सदस्यों का तो यहां तक कहना था कि गुरु जी की कृपा से उनको अपने देवी-देवताओं के दिव्य दर्शन तक हुए हैं। भक्तों की नजरों में गुरुजी के लिए कुछ भी असंभव नहीं था।

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दूर किया ऊंच-नीच का भेद

guru ji
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गुरु जी के दरवाजे ऊंच-नीच, गरीब-अमीर समेत सभी धर्मों के लोगों के लिए खुले थे। सबसे साधारण व्यक्ति से लेकर सबसे शक्तिशाली राजनेता, व्यापारी, नौकरशाह, सशस्त्र सेवा कर्मी और डॉक्टर समेत हर कोई उनका आशीर्वाद लेने आता था। सभी को उनकी समान रूप से आवश्यकता थी और गुरु जी ने सभी को समान रूप से आशीर्वाद भी दिया। उनके समीप बैठने वाले या उनके चरण स्पर्श करने वालों को भी उतना ही लाभ होता था, जितना दुनिया भर में कहीं भी उनकी प्रार्थना करने वालों को होता थाा। जो सबसे ज्यादा मायने रखता था, वह था भक्तों का पूर्ण समर्पण और गुरु जी पर बिना शर्त विश्वास। गुरुजी के चारों ओर दिव्य सुगंध रहती थी, मानों गुलाब के फूल खिले हो। गुरु जी ने कभी किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं की और न ही कुछ लिया। वह हमेशा कल्याण कर्ता के रूप में जग कल्याण करते रहे। उन्होंने एक बार बताया था कि उनका आशीर्वाद केवल इस जीवन के लिए नहीं है, हमेशा के लिए है। गुरुजी ने कभी भी कोई उपदेश नहीं दिया या कोई अनुष्ठान निर्धारित नहीं किया, फिर भी उनका संदेश भक्तों तक पहुंच गया।

बड़े मंदिर वाले गुरु जी

गुरु जी ने 31 मई 2007 को महासमाधि ले ली। उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है। अपने जीवनकाल में उनका जोर केवल इस बात पर था कि भक्त हमेशा प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से उनके साथ सीधे जुड़ें। गुरु जी का एक मंदिर है, जिसे ‘बड़े मंदिर’ के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिणी दिल्ली में स्थित है। आज, जब गुरु जी अपने नश्वर रूप में नहीं हैं, तो भी उनके आशीर्वाद चमत्कार कर रहे हैं, उनकी कृपा उन लोगों पर समान रूप से पड़ रही है, जो अपने जीवनकाल में उनसे कभी नहीं मिले।