आशा और निराशा,सिक्के के दो पहलू हैं.आशा है तो हौसले हैं,हौसले हैं तो उम्मीद है,उम्मीद है तो सफलता है. इसके विपरीत निराशा है तो कुछ भी नहीं है.न हौसले हैं,न उम्मीद और न ही सरलता. निराशा एक स्थिति है जो निम्न मनोदशा और काम के प्रति अरुचि को दर्शाती  है.निराश व्यक्ति,बेबस,बेकार,ख़ुद को दोषी समझने वाला ,चिड़चिड़ा या बेचैन हो जाता है.अपनी जो गतिविधियाँ उसे आनंददायक लगती थीं,उन गतिविधियों में अपनी रुचि खोने लगता है.इसके अतिरिक्त ,भूख न लगना,या ज्यादा खाना खाना,ध्यान केंद्रित करने,या निर्णय लेने या विवरण याद करने में असमर्थता,और आत्महत्या का विचार या प्रयास करना,अनिद्रा,जल्दी जागना,अत्यधिक निद्रा,थकान,ऊर्जा की हानि या दर्द या पाचन दर्द,ग़लत विचार जैसी समस्याओं का होना,निराशा के प्रमुख लक्षण हैं.

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे संबंधी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है ,भीख मांग कर जीवन जी लिया जाय,भले ही वो लालच वश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन हैं तो मेरे गुरु ही,उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूँगा तो वो सब उनके रक्त से सना होगा.मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है,और क्या अनुचित,हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीतना चाहते हैं.धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर, हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वो सब युद्ध भूमि में हमारे सामने खड़े हैं.

उस समय भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,”हे पार्थ,इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं,सब कुछ परिवर्तनशील है.न सर्दी हमेशा रहती है न गर्मी,न सुख सदा रहता है न दुःख,न अनुकूलताएँ सदा रहती हैं,न प्रतिकूलताएँ,यह सच है किसी भी परिस्थिति में ,किसी भी कारण से जेल में बंद होने पर निराशा हो जाती है,धीरे धीरे निराशा इतनी बढ़ जाती है,कि मन पूरी तरह टूट जाता है.

लेकिन यहाँ का निर्धारित तो समय पूरा होना ही है.इसलिए,निराशा में घिरे घिरे या तो समय बिता या आशावादी बनकर,उत्साह वादी विचारों ,अच्छे कर्मों की ओर आगे बढ़.अगर वे दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे.संसार की स्थितियां-परिस्थितियां,धन,वैभव सब कुछ आने जाने वाला है.आदर्श पुरुष वो है जो,न प्रतिकूल परिस्थिति में निराशावादी बनते हैं न अनुकूल परिस्थिति में अहंकारी .संयम और सहनशील बनकर ,सम्पूर्ण विश्वास के साथ जेल की बंद दीवारों में भी जीवन को अच्छा बनाने के लिए,समय का सदुपयोग करते हैं .

हे पार्थ,इस समस्त संसार में प्राप्त होने योग्य,सबका पोषण कर्ता,समस्त जगत का स्वामी,शुभ,अशुभ को देखने वाला,प्रत्युपकार की चाह किए बिना हित करने वाला ,सबकी उत्पत्ति व प्रलय का हेतु,समस्त निधान और अविनाशी कारण मैं ही हूँ.जो न कभी हर्षित होता है,न शोक करता है,न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों को छोड़ देता है वही भक्त मुझे प्रिय है और मैं उसे उसी प्रकार आश्रय देता हूँ

हे अर्जुन आत्मा ही आत्मा का सबसे प्रिय मित्र है और आत्मा ही आत्मा का परम शत्रु भी है.इसलिए आत्मा का उद्धार करना चाहिए,विनाश नहीं.जिस व्यक्ति ने आत्मज्ञान से आत्मा को जाना है उसके लिए आत्मा मित्र है और जो आत्मज्ञान से रहित हैं,उसके लिए आत्मा शत्रु है.

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