‘आधी आबादी’ यानि कि बात महिलाओं की। उनके आत्मसम्मान और उनके हक की। बेटी, पत्नी या बहन कोई भी हो। अपने अधिकारों के लिए हर रिश्ते से लड़ना महिलाओं की जैसे किस्मत में लिख दिया गया हो। महिलाओं के हक या उनके अधिकार की बात हो तो हाई कोर्ट से लेकर सुप्रिम कोर्ट ने भी कई अहम फैसले लिए हैं। ये फैसला उनके उत्तराधिकार और उनके सम्पत्ति में हक को लेकर भी किया गया है। वैसे तो कई फैसले और कई कानून ऐसे भी बने जो महिलाओं के हित में नहीं हुए। लेकिन बदले फैसले और महिलाओं एक लिए अधिनियम में भी जब बदलाव हुए तो पुरुष हो या महिला किसी में भी भेदभाव किये बिना विरासत के कानून और महिलाओं को जागरूक करने की जरूरत बढ़ी है। आज हम आपको आज के इस खास लेख के जरिये महिलाओं के अधिकारों के बारे में बताएंगे, जिनकी जानकारी आपको होनी बहुत जरूरी है।
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पहले जानें अपने अधिकार– बात सबसे पहले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार सिख, जैन धर्म के साथ साथ हिन्दू के उत्तराधिकारी और विरासत से जुड़े कानूनों को नियंत्रित करता है। यहां अचल और चल सम्पत्ति के बीच कोई भी बड़ा अंतर नहीं है। जहां किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति में जब विभाजन किया जाता है तो उसमें केवल बेटों को अधिकार दिया जाता था लेकिन, नये अधिनियम के तहत अब घर की बेटी का भी बराबर का हिस्सा दिया गया है। अधिनियम के मुताबिक बेटी का इसपर उसके जन्म से ही अधिकार है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो, तो उसकी सम्पत्ति को चार भागों में बांटा जाता है। जसमें दो तो खून के रिश्तों पर आधारित होते हैं, और दो गोद लिए हुए बच्चों की। लेकिन यहां प्राथमिकता खून के रिश्तों को दी जाती है।
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क्या है पत्नियों का अधिकार– जिस तरह पति सम्पत्ति का हकदार होता है, ठीक उसी तरह पत्नि का भी उसकी सम्पत्ति में बराबर से हिस्सा होता है। एक हिन्दू विवाहित महिला अपने पति की सम्पत्ति की एक मात्र मालिकाना हक रखती है। अगर वो एक संयुक्त परिवार का हिस्सा है और पति पत्नी का तलाक हो चुका है तो पति उसे रखरखाव और गुजारा भत्ता जरुर देगा। लेकिन पत्नी का उसकी सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा। वहीं अगर पति की मौत हो जाती है और पत्नी दूसरी शादी कर लेती है तो उसका हिस्सा अपने पहले पति की सम्पत्ति से शून्य हो जाएगा।
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महिला सम्पत्ति में किसका अधिकार– हिन्दू महिला की सम्पत्ति में किसी हकदार की बात करें तो ,महिला चाहे विवाहित हो या अविवाहित, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार वो अपने मुताबिक अपनी सम्पत्ति किसी को भी सौंप सकती है। उस महिला की सम्पत्ति का विवरण इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसे सम्पत्ति कहां से मिली है। अगर उसे पिता से मिली है तो पिता के पुत्र और पुत्रियों का उस पर हक हो सकता है। वहीं अगर सम्पत्ति पति से मिली है तो उसे अपने बेटे और बेटियों को उसे विभाजित करना पड़ता है।
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क्या है बेटी का अधिकार?– हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के मुताबिक महिलाओं के बेटे और बेटियों के खिलाफ भेदभाव खत्म करने के लिए इस अधिनियम को पारित किया गया है। जितना एक पिता की सम्पत्ति में बेटे का हक होता है, उतना ही हक उसकी बेटी को भी है। ऐसे में पिता खुद भी अपनी सम्पत्ति में भेदभाव नहीं कर सकता। अगर पिता की मौत हो जाती है, तो खुद ब खुद उसके वारिसों का पहला अधिकार उसकी सम्पत्ति से उन्हें मिल जाता है।
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क्या है माताओं का अधिकार?- बात जब मांओं की आती है तो पिता की मौत के बाद उनकी सम्पत्ति के जितने अधिकारी बच्चे होते हैं, उतनी ही अधिकारी उनकी मां भी होती हैं। एक विधवा मां अपने बच्चों का रख रखाव अपने हिसाब से कर सकती है। जो किसी की भी आश्रित नहीं होती।
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क्या कहते हैं मुस्लिम उत्तराधिकारी अधिनियम– मुसलमान महिलाओं के लिए सम्पत्ति से जुड़े कानून व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित होते हैं। देखा जाए तो इस्लाम से जुड़े कानून में चार मुख्य स्रोतकुरान, सुन्ना, इज्मा और कियाहोते हैं। जब भी किसी पुरुष सदस्य की मौत होती है तो महिला और पुरुष दोनों ही उसकी सम्पत्ति के अधिकारी हो जाते हैं। लेकिन यहां भी एक नियम है। जिसमें महिलाओं को पुरुष उत्तराधिकारी के हिस्से से आधा हिस्सा विरासत में मिलता है। जबकि सम्पत्ति का दो-तिहाई हिस्सा क़ानूनी रूप से उत्तराधिकारी के बीच बराबर से बांटा जाता है। वहीं एक तिहाई हिस्सा उन्हें उनकी मर्जी से दिया जा सकता है।
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क्या है पत्नियों का अधिकार– अगर किसी पत्नी के बच्चे नहीं हैं और उसके पति की मौत हो गयी है तो उसकी सम्पत्ति का सोर्फ़ एक चौथाई हिस्से की ही वो हकदार होती है। वहीं अगर वो अपने पति की एक से अधिक पत्नियों में से एक है तो उसकी हिस्सेदारी कम हो जाती है। इसके आलावा तलाक के मामले में इसके माता पिता के साथ रहने पर उसके पति द्वारा इसके रख रखाव का भत्ता भी उसका पति उसे देता है।
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मुस्लिम महिला की सम्पत्ति पर किसका अधिकारी– अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति, बेटे, पिता या मां से सम्पत्ति प्राप्त करती है तो वो अपने हिस्से की मालकिन होती हैं। अगर कोई मुस्लिम महिला अपनी वसीयत बनाना चाहती है तो उसका पति एक मात्र उसकी वसीयत का हकदार होता है।
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क्या है बेटियों का अधिकार– मुस्लिम धर्म में एक बेटा हमेशा किसी बेटी के हिस्से से दोगुना ज्यादा हिस्सेदारी प्राप्त करता है। वो मिली हुई सम्पत्ति का पूरा मालिक होता है। वहीं अगर बेटा नहीं है तो उसके आभाव में बेटी को विरासत में उसका आधा ही हिस्सा मिलता है। अगर बेटी एक से ज्यादा है तो सामूहिक रूप से विरासत का दो-तिहाई हिस्सेदार होती हैं।
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क्या हैं मां का अधिकार– मुस्लिम धर्म के अनुसार मां अपने बेटों की सम्पत्ति की एक तिहाई हकदार होती हैं। अगर किसी वजह से किसी मां के बेटे की मौत हो जाती है तो उसे उसकी सम्पत्ति का एक छठा हिस्सा मिलेगा। बात ईसाई उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की करें तो इसके तहत वारिस का हिस्सा मां को भी समाना रूप से मिलता है।
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क्या हैं अन्य धर्मों में अधिकार– किसी भी महिला की बनाई हुई सम्पत्ति की विरासत किसे मिलती है ये बात हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम धर्मों के अनुसार होती है। बात भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की करें तो किसी भी महिला के खून के रिश्ते को उसके पति और पति के रिश्तेदारों की उपस्थिति में विरासत में मिलती है।
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अन्य धर्मों में बेटियों के अधिकार– बात अलग अलग धर्मों की बेटियों की करें तो हर बेटी का हक उसके पिता की सम्पत्ति में बेटे के बराबर ही होता है। बात अगर बहुमत पाने पर व्यक्तिगत सम्पत्ति की करें तो उस पर भी बेटी का पूरा अधिकार है। जानकारों के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति का कोई वंशज या सन्तान नहीं हैं तो उसकी पत्नी के साथ उसकी मां का भी उसकी सम्पत्ति पर हक होता है।

संपत्ति पर महिलाओं का कितना हक है -
पिता या पति की मौत के बाद कैसे पाएं अधिकार– अगर आपके पिता या पति की मौत किसी कारणवश हो जाती है तो महिलाओं को विरासत से जुड़ी सुरक्षा के लिए क्या कुछ कदम उठाने चाहिए, ये भी आपको जानना बेहद जरूरी है। तो चलिए फिर जानते हैं।
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पति या पिता की मौत के डेथ सर्टिफिकेट की कई फोटो कॉपी अपने पास रखें और जरूरत पड़ने पर उसे सत्यापित करें।
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आप डेथ सर्टिफिकेट के लिए नगर निगम की वेब साईट से डाउनलोड कर सकते हैं।
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अगर कोई वसीयत से जुड़ी परेशानी हो रही है तो आप चल सम्पत्ति के नामांकन को हस्तांतरित करने में मदद कर सकते है।
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अगर मृतक को कको वसीयत नहीं है तू आप एक उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करे। इससे चल सम्पत्ति को स्थान्तरित करने के लिए जरूरी है। इस तरह इसे सभी क़ानूनी उत्तराधिकारी के बेच कानून के अनुसार बांट दिया जाएगा।
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वसीयत के लिए या उत्तराधिकार के लिए लिए प्रमाण पत्र की जरूरत होती है। इसके लिए आपको आवेदन करना होगा। जिसका रिकॉर्ड राजस्व रजिस्टर में दर्ज होगा।
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आपको बैंक को भी सूचित करना होगा ताकि पैसे निकलने में दिक्कत ना हो।
तो ये थी महिलाओं से जुड़े सम्पत्ति में उनके हक के बारे में जानकारी की। हमारे देश के कानून ने भी बेटे और बेटियों में कोई फर्क नहीं किया है। मां, बेटी, पत्नी रिश्ता कोई भी हो महिला को उसका अधिकार और सम्मान बराबर से देने का प्रावधान बनाया गया है। आपको इस लेख के जरिये जो भी जानकारी मिली है वो आपके कभी ना कभी जरूरी काम आएगी।
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