Bring home happiness on diwali not disease
दिवाली त्योहार है मौज-मस्ती व खुशियां मनाने का लेकिन यह मस्ती कुछ लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां पैदा कर सकती हैं, इसलिए इस बार डॉक्टर्स एवं विशेषज्ञों की सलाह को ध्यान में रखते हुए ही दिवाली मनाएं।
नोवा स्पेशिएलिटी सर्जरी, नई दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार (इंटरनल मेडिसिन) डॉ. नवनीत कौर कहते हैं, दिवाली के समय वायु में सस्पेंडेड पार्टिकल्स का स्तर खतरनाक रूप से काफी बढ़ जाता है, जिससे सांस, आंख, गले और नाक में तकलीफ शुरू होती है। त्योहार पर पटाखे जलाने के कारण प्रदूषण के स्तर में काफी इजाफा दर्ज किया जाता है ऐसे मेेें अतिसंवेदनशील नाक वाले लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
बाहर मौजूद धुआं सांस के साथ अंदर लेने से बचने के लिए लोगों को घरों में रहने की सलाह दी जाती है। अस्थमा की समस्या से जूझ रहे लोगों को अपनी दवा बढ़ा देनी चाहिए और दिक्कत बढ़ने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
फुलझड़ी और अनार जैसे पटाखों में भारी मात्रा में तांबा, कैडमियम, सीसा, मैंगनीज, जस्ता, सोडियम और पोटैशियम जैसी हानिकारक धातुएं मौजूद होती हैं। अगर ये धातुएं हवा में मौजूद हों, तो रोगी को अस्थमा का दौरा पड़ सकता है। इनकी मौजूदगी से सिर में तेज दर्द, सांस से जुड़ी बीमारी के अलावा गंभीर खांसी भी हो सकती है।
मेडफोर्ट हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के नेत्र विशेषज्ञ डॉ. त्याग मूर्ति शर्मा बताते हैं, ‘दिवाली के दौरान आंखों को रसायनों और जलने से लगी चोट के मामले सबसे ज्यादा होते हैं। पटाखों से निकलने वाली गर्मी आंख के कॉर्निया को पिघला सकती है और यह ऐसा जख्म है, जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता है।
बच्चों को पटाखों से दूर रहना चाहिए क्योंकि उनकी आंखें रसायनों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं। पटाखे जलाते समय लोगों को अपना चेहरा पटाखे से दूर रखना चाहिए। आंखों पर लगाने से पहले हाथ अच्छी तरह से धो लें। सलाह दी जाती है कि पटाखे जलाने वाले लोग ऐसा करते समय आंखों पर चश्मा लगा लें क्योंकि हानिकारक रसायन आपकी आंखों में छेद कर सकते हैं।
लंबे समय तक ज्यादा गर्मी के संपर्क में रहने के कारण कॉन्टेक्ट लेंस से आंखों में जलन होने लगती है। जब भी आंखों में जलन महसूस हो, तो आंखों को ठंडे पानी से धोना चाहिए और ध्यान रखें आंखों को रगड़े नहीं।
पटाखों की प्रदूषण प्रवृत्ति के कारण बड़ी संख्या में स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं जैसे-
सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर-अस्थमा, कैंसर, फेफड़ों की बिमारियां और न्यूमोकोनियोसिस।
रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर- सांस लेने की बिमारियां (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस व अस्थमा), हृदय संबंधी रोग।
सल्फर डाईऑक्साइड (स्ह्र२)-
आंखों में जलन, सिर दर्द, सांस से जुड़ी समस्याएं मसलन पल्मोनरी एंफीसिमा, कैंसर, हृदय संबंधी रोग।
नाइट्रस ऑक्साइड्स- फेफड़ों में जलन, सीने में दर्द, वायरल संक्रमण, नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के प्रमुख (डायबिटीज विभाग) डॉ. विनोद गुजराल कहते हैं, ‘जरा उन स्वादिष्ट मिठाई के बारे में सोचिए, जो इस दिवाली पर आपके घर आएंगी। भले ही यह सोचकर आपके मुंह में पानी आ रहा हो लेकिन मधुमेह रोगियों के लिए यह किसी जहर से कम नहीं है।
दिवाली जश्न मनाने का समय होता है और इस दौरान लोग सैचुरेटेड खाद्य पदार्थों व मिठाई का जमकर सेवन करते हैं, जिनका असर उच्च रक्तचाप व मधुमेह से पीड़ित लोगों पर पड़ता है। दरअसल यह सर्दियों का समय होता है, जब उच्च रक्तचाप और मधुमेह रोगी आमतौर पर व्यायाम करना बंद कर देते हैं और इसके बाद उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ता है।
त्योहार के मौसम में मधुमेह रोगी चीनी की ज्यादा मात्रा वाली मिठाई और घी का काफी सेवन करते हैं, जिससे उनका वजन और शुगर लेवल काफी बढ़ जाता है। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के प्रमुख (कार्डियोलॉजी विभाग) डॉ. विनोद शर्मा कहते हैं, ‘मिठाई और तेलीय खाद्य पदार्थों के सेवन से कॉलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ जाता है, जिससे हृदय संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
ध्वनि प्रदूषण का प्रत्येक व्यक्ति पर अलग प्रभाव पड़ता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण से बुजुर्गों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने का ज्यादा जोखिम होता है। दिवाली पर ध्वनि प्रदूषण के सामान्य प्रभाव हैं- थकान, सिर दर्द, देखने में समस्या, भूख नहीं लगना और नींद कम आना। ज्यादा शोर के कारण चिढ़, तनाव और रक्तचाप जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं देखने को मिल सकती हैं।
अगर शोर के कारण आपके माता-पिता या दादा-दादी चिढ़चिढ़े हो रहे हैं, तो आप धैर्य बनाए रखें। ज्यादा शोर के कारण रक्तचाप बढ़ जाता है, जिससे हृदय संबंधी समस्या भी हो सकती है। अगर आपके घर में कोई बुजुर्ग है, तो सुनिश्चित करें कि आप घर के बाहर जाकर पटाखे जलाएं। दिवाली पर बुजुर्गों को शोर और प्रदूषण के संपर्क में आने से परहेज करना चाहिए।
दिवाली बिना पटाखों वाली
दिवाली पर सारा वातावरण धुआं-धुआं हो जाता है, और यह जानलेवा धुआं हमारे लिए कितना घातक हो सकता है इस बात को जानते हुए भी हम हर बार यह भूल करते हैं। यदि ऐसे ही हम भूल करते रहे तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हम अपनी भूलों को सुधारने का अवसर खो चुके होंगे।
प्रकृति ने हमे कितना कुछ दिया इंसान इस पृथ्वी पर रह कर उन चीजों का सही से उपयोग करे तो न केवल खुद बल्कि आने वाली पीढ़ी भी उससे लाभान्वित होगी लेकिन हमने हमेशा उन चीजों का दुरुपयोग किया। इन पटाखों के प्रयोग से जन धन दोनों की हानि होती है।
इन पटाखों का सिर्फ धुआं ही नहीं बल्कि इनके धमाके से होने वाला शोर भी बहुत हानिकारक होता है। बच्चें बुजुर्गों को तो इससे बहुत ही हानि होती है सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।
इन पटाखों से न सिर्फ वातावरण प्रदूषित व दूषित होता है बल्कि कई बार इन पटाखों की चपेट में आ जाने से न सिर्फ जलने का खतरा रहता है बल्कि इनसे निकली चिंगारी से बड़ी हानि भी हो जाती है। हर वर्ष ऐसी खबरें आती हैं की फला जगह आग लगने से इतने लोगों की जान गयी व इतने घर जल गए पटाखों की चपेट में आकर।
हमारे यहां दिवाली से पहले खूब प्रचार, प्रसार किया जाता है कि ‘से नो टू क्रैकर्स’ क्लीन दिवाली ग्रीन दिवाली आदि स्लोगन से अखबार भरे रहते हैं लेकिन दिवाली की रात इन सारे संदेशों पर अमल करने के बजाए, इनको पटाखोंं के साथ जला दिया जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग आज दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरा है। पटाखों से निकली गैसें इसे बढ़ाती हैं और ग्लोबल वार्मिंग प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का खतरा हमेशा बढ़ाती है।
प्रदूषण एक धीमा जहर है,जो हमारे शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण कर देता है, ये प्रदूषण न केवल हमें बल्कि वातावरण के साथ साथ पेड़-पौधे, पशु-पक्षी को भी प्रभावित करता है। दिवाली पर पटाकों से पालतू जानवर भी इसके कारण प्रभावित होते हैं, घरों में मौजूद कुत्ते, बिल्लियां या पक्षियों को दिवाली के शोर से खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
उन जानवरों के बारे में सोचिये जिनकी जिंदगी सड़कों पर गुजरती है। ऐसे जानवर न सिर्फ आवाज और रोशनी से डरते हैं बल्कि रॉकेट जैसे पटाखे और जले पटाखों के बचे अवशेष से उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है। रॉकेट की आवाज और धुंए से पंछियों को बेहद नुकसान होता है।
इसलिए हमें इस बार दृढ़ निश्चय लेना होगा की इस दिवाली हम पटाके को न कहेंगे और रोशनी के इस पर्व को वातावरण को बिना नुकसान पहुंचाए मनाएंगे।
