Mystery hidden in temples
हमारे आस-पास बहुत सी जगहें व मंदिर ऐसे हैं जो अपने अंदर बहुत से रहस्यों को समेटे हुए हैं, जिनको समझ पाना सामान्य मनुष्य या फिर विज्ञान के लिए सम्भव नहीं है। ऐसे ही कुछ मंदिर हैं जो आस्था के साथ-साथ आकर्षण का भी केंद्र हैं।
कहते हैं यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा रचित है और बिना उसकी इच्छा के इस सम्पूर्ण जगत में एक पत्ता तक नहीं हिलता है तथा हम विज्ञान में चाहे कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन वह आध्यात्म के बिना अधूरा है व इस जगत में बहुत से रहस्य ऐसे हैं जिसके छोर तक विज्ञान आज इतनी तरक्की करने के बाद भी नहीं पहुंच पाया है।
आज भी हमारे आस-पास बहुत सी जगहें व मंदिर ऐसे हैं जो अपने अंदर बहुत से रहस्यों को समेटे हुए हैं, जिनको समझ पाना सामान्य मनुष्य या फिर विज्ञान के लिए सम्भव नहीं है। आइए आज बताते हैं आपको कुछ ऐसे ही अनोखे रहस्यों से परिपूर्ण मंदिरों व धार्मिक स्थलों के बार में।
म्यांमार का सुनहरा पत्थर
म्यांमार में लगभग 25 फीट की ऊंचाई पर एक छोटे से पत्थर तीखे ढाल पर एक बड़ा ही भारी-भरकम सा पत्थर अटका हुआ जिसे देखने से तो ऐसा प्रतीत होता है कि बस गिरने ही वाला हो, लेकिन यह पत्थर सदियों से उस जगह पर ज्यों का त्यों टिका है।
यह स्थल म्यांमार के बुद्धिस्ट लोगों का प्रमुख तीर्थ स्थल भी है। वहां के लोग इसे ‘गोल्डन रॉक’ व ‘क्यैंकटियों पगोडा’ के नाम से पुकारते हंै। नवंबर से मार्च के मध्य इस स्थान पर हजारों की संख्या में लोग पूजा करने आते हैं तथा लोगों में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति साल में तीन बार इस पवित्र स्थल पर आता है उसके धन व शोहरत में वृद्धि होती है।
पाताल भूवनेश्वर गुफा
पाताल भूवनेश्वर गुफा
यह गुफा उत्तराखण्ड के गंगोली घाट कस्बे में है तथा इस गुफा के बारे में यह मान्यता है कि इस गुफा में दुनिया के समाप्त होने का रहस्य भी छिपा है। इतना ही नहीं यह गुफा अपने आप में कई रहस्यों को समेटे है जिसका आभास आपको इस गुफा में जा कर यहां बनी विभिन्न आकृतियों को देखकर व उनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानकर स्वयं ही हो जाएगा।
स्कंद पुराण में इस गुफा को भगवान शिव का निवास है व इस गुफा के अंदर आपको एक हवन कुंड नजर आएगा जिसके बारे में ये कहा जाता है कि यह वही हवन कुंड है जिसमें जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था। इस गुफा के अंदर आप 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृतियों के अतिरिक्त शेषनाग की आकृति भी देख सकते हैं। इतना ही नहीं इस गुफा में चार खम्भे भी हैं।
जिनके बारे में कहा जाता है कि ये सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग व कलियुग को दर्शाते हंै तथा इन सब में कलियुग को दर्शाने वाले खम्भे की लम्बाई सबसे अधिक है तथा उसके ऊपर छत से एक पिंड भी लटक रहा है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यह सात करोड़ वर्षों में 1 इंच बढ़ता है तथा जिस दिन यह पिंड कलियुग के खम्भे से मिल जाएगा वह कयामत का दिन होगा व उस दिन ही कलियुग का अंत होगा। सालों तक लोगों की पहुंच से दूर रहे इस गुफा को शंकराचार्य ने खोजा था।
भूतेश्वर नाथ शिवलिंग
छत्तीसगढ़ के नरौदा नामक गांव में विश्व का सबसे बड़ा व सबसे अनोखा प्राकृतिक शिवलिंग स्थित है। इस शिवलिंग की ऊंचाई 18 फिट तथा गोलाई 20 फिट है तथा इस शिवलिंग की खासियत यह है कि इसकी ऊंचाई को प्रतिवर्ष नापा जाता है तो हर बार इसकी ऊंचाई में 6-8 इंच की वृद्धि मिलती है।
इस शिवलिंग के बारे में यह मान्यता है कि यहां की गई प्रार्थाना अवश्य पूरी होती है। इसकी खोज के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि शोभा सिंह नाम के एक व्यक्ति को शिवलिंग की आकृति वाले एक टीले के पास से शेर व सांड की आवाजें अक्सर सुनाई देती थी,
लेकिन जब भी वह अपने खेतों को देखने जाता तो आस-पास उनको कोई भी जानवर नहीं मिलता। यह बात उसने अन्य गांव वालों को बताई तो उन्होंने भी जानवरों की खोज की लेकिन दूर-दूर तक उनको कोई जानवर नहीं मिला तब से लोगों ने इसकी पूजा प्रारम्भ कर दी तथा यह लोगों की इसके प्रति आस्था बढ़ने लगी।
सहस्रलिंगा
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में एक नदी है यहां चट्टïानों पर जगह-जगह हजारों शिवलिंग हैं जो अपने आप में ही अनोखा है तथा यही वजह है कि इस स्थान का नाम ‘सहस्रलिंगा’ अर्थात्ï हजारों लिंग पड़ा।
यहां हजारों शिवलिंगों को यूं पानी के बीच देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव है। ये सारे शिवलिंग नदी के घटते जलस्तर के साथ ही नजर आने लगते हैं तथा इस मनोरथ दृष्य को देखने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक एकत्रित होते हैं।
शिवलिंग के अतिरिक्त कई बड़ी-बड़ी चट्टïाने भी पानी में नजर आती हैं जिन पर पशु-पक्षियों कि आकृतियां बनी होती हैं। इस स्थल के बारे में यह मान्यता प्रचलित है कि राजा सदाऐश्वर्य (1678-1718) ने इन शिवलिंगों का निर्माण कराया था तथा कई वर्षों बाद यह स्थान जलाशय में तब्दील गया जिस कारणवश शिवलिंग पानी में छिप गए।
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर
इस मंदिर में ऐसा (आमेर की पहाड़ियों पर स्थित) शिवलिंग है जिसका अभिषेक सावन के महीने में प्रकृति खुद करती है और सबसे अद्ïभुत बात यह है कि इस अभिषेक के लिए पानी कहां से आता है यह कोई नहीं जानता। इतना ही नहीं इस शिवलिंग की पूजा के लिए जो जल व दूध इस पर चढ़ाया जाता है। वो भी कहा चला जाता है यह भी कोई नहीं जानता।
इस मंदिर पर शोध करने वाले इतिहासकार आनंद शर्मा इस मंदिर के इतिहास के संदर्भ में यह बताते हैं कि आमेर किले की स्थापना करने वाले काकल देव की सारी गाएं चरने जाती तथा शाम को दूध देतीं लेकिन उनमें से एक गाय ऐसी थी जो चर के आने के बाद दूध नहीं देती थी।
इससे काकल देव को संदेह हुआ तथा उन्होंने अपने लोगों से कहा कि वो पता करें कि इस गाय का दूध आखिर जाता कहां है। जब लोगों ने गाय पर नजर रखी तो यह देखकर अचंभित रह गए कि गाय एक छोटे से गड्ïढे के पास जा कर गिरा देती थी।
उन लोगों ने जब यह बात काकल देव को बताई तो उन्होंने उस स्थान की खुदाई कराई जिसमें 15 फिट की खुदाई के बाद वहां एक शिवलिंग निकला। उसके बाद काकल देव ने अंजिकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर के गर्भगृह के पीछे एक सुरंग भी है जहां जो भी जाता है वापस नहीं आता व यह सुरंग कहां तक जाती है यह भी एक रहस्य ही है।
अक्षय वट
यह अक्षय वट संगम नगरी इलाहाबाद में है लेकिन यह वट वृक्ष कितना पुराना है इस बारे में कोई सही जानकारी है, लेकिन वर्तमान समय में यह वृक्ष यमुना नदी के किनारे बने एक किले में है, जिसका निर्माण अकबर ने 1583 में करवाया था। वर्तमान समय में यह किला सेना के कब्जे में है। इस पेड़ के बारे में यह मान्यता है कि यह पेड़ अमर है तथा प्रलय आने से भी यह नष्टï नहीं होगा।
इसके संदर्भ में यह कथा प्रचलित है कि एक बार एक ऋषि कि तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान ने उन्हें दर्शन दिया तो उन्होंने भगवान कोई चमत्कार दिखाने को कहा तो भगवान ने पूरे संसार को जलमग्न कर दिया, लेकिन तब भी यह वृक्ष पूर्ण रूप से सुरक्षित रहा।
इस वृक्ष के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसके निकट मरने वाला व्यक्ति सीधे भगवान विष्णु के लोक जाता है, क्योंकि यहां भगवान विष्णु बाल स्वरूप में विराजमान हैं। इन सब के अतिरिक्त इस वृक्ष को कई बार मुगल शासकों द्वारा जलाया भी गया, लेकिन यह पुन: हरा-भरा हो गया।
