भगवान शिव के मंदिरों के बारे में ये जानकारी होनी चाहिए
हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव की पूजा की जाती है। साथ ही साथ अनेको शिवालय भी हैं जहां पर जाकर भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्तिभाव को प्रकट करते हैं।
Shiv Temples: हमारे देश में भगवान शिव को लेकर जो आस्था है वह अतुलनीय है। यही कारण है कि भगवान शिव को देवों का भी देव कहा है। देश के कोने कान में शिवलिंग स्थापित किए गए हैं जोकि शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव की पूजा की जाती है। साथ ही साथ अनेको शिवालय भी हैं जहां पर जाकर भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्तिभाव को प्रकट करते हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथो में कहा गया है कि सोमवार का दिन भगवान शिव का होता है और सावन के महीने में इसकी पूजा करने से मनचाहा फल मिलता है। इसीलिए, महाशिवरात्रि के मौक़े पर शिव पूजा का विधान है। शिव की पूजा अर्चना और जल देने की एक बहुत ही पौराणिक धारना है। ऐसा माना जाता है कि इससे सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
सीधी रेखा में सात मंदिर

भगवान शिव को हमेशा आस्था के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है लेकिन शिव मंदिरों के निर्माण में सिर्फ़ आस्था ही नहीं बल्कि बहुत बड़ा विज्ञान भी है। यह जानकार हर किसी को आश्चर्य होता है कि हमारे देश में 7 ऐसे शिव मंदिर हैं जोकि केदारनाथ धाम से लेकर रामेश्वरम धाम तक एक सीध में बनाए गए हैं। यह हैरत करने वाली बात हो सकती है कि उस समय का हमारा विज्ञान कितना उन्नत था। हमारे पूर्वजों के पास ऐसा विज्ञान और तकनीक जानकारी थी जिसका रहस्य अब भी लोग नहीं जान पाते हैं। केदारनाथ, कालेश्वरम, कालहस्ती, एकंबरेश्वर, चिदंबरम और रामेश्वरम मंदिरों को (79° E 41’54” लॉन्गीट्यूड के) सीधी रेखा में बनाया गया है।
पंच भूत के प्रतीक

इन सभी मंदिरों को पंच भूत के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है क्योंकि ये सभी मंदिर प्रकृति के पांच तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे यहाँ पंच भूत का संदर्भ हमारी पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से है। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन सभी पांच शिवलिंगों को स्थापित किया है। जिसकी वजह से इन मंदिरों को वास्तु-विज्ञान-वेद का समागम कहा जाता है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल, आग का तिरुवन्नमलई, हवा का कालाहस्ती, पृथ्वी का कांचीपुरम और आकाश का चिदंबरम मंदिर में है।
मंदिरों और योग विज्ञान

भौगोलिक रूप से देखा जाए तो इन मंदिरों में एक बहुत ही बड़ी विशिष्टा नज़र आती है। जिसकी वजह से जानकार इसके पीछे योग विज्ञान से जोड़कर देखते हैं। वह इन पाँचो ही मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बने जाने का प्रतिनिधित्व करते हैं। सभी मंदिरों को एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में होने को वह महज़ इत्तेफ़ाक नहीं मानते हैं। वह कहते हैं कि इसके पीछे कोई विज्ञान ज़रूर होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा। करीब चार हजार वर्ष पूर्व की बात करें, तो उस समय उपग्रह तकनीक नहीं थीं।
सिर्फ़ पांच ही नहीं और भी मंदिर होंगे

केदारनाथ धाम से रामेश्वरम की दूरी 2383 किमी है। सारे मंदिरों का एक ही समानांतर रेखा में होना हर किसी को आश्चर्य में डाल देता है। हजारों वर्ष पूर्व आख़िर किस तकनीक का उपयोग हुआ ये आज भी एक रहस्य है। जानकरों का यह भी कहना है कि केवल पांच ही नहीं बल्कि इस रेखा में अनेक शिव मंदिर होंगे जिनके बारे में हमें जानकारी ही नहीं है। कुछ तो समय के साथ गिर भी गए होंगे और उनके बारे में हम नहीं जान पाए।
