Hindi Story: दीवाली को कुछ ही दिन बाकी थे। कितना कुछ करना बाकी था,घर की साफ-सफाई, पेंटिंग, नए कपड़े, मिठाई और न जाने कितने सारे पकवान…साल भर का त्योहार था ऐसे कैसे छोड़ दे। सोच-सोच कर नम्रता का सिर दर्द हो रहा था। वह सोच रही थी, कैसे होगा यह सब रोजी-रोटी की वजह से बच्चे भी अब साथ नहीं रहते, बच्चों के बिना त्यौहार…त्यौहार नहीं लगता है। बच्चों के रहने पर यही घर कितना छोटा लगता था पर आज चार कमरे का घर भी भाए-भाए करता था।एक बार तो उसने बच्चों से कह भी दिया था।
“साल भर कहीं भी रहो पर त्यौहार यहीं घर पर मनाया करो।”
पर क्या पता था वक्त के साथ घर के पते के साथ बच्चे भी बदल जाएंगे सब अपनी-अपनी दुनिया में मस्त थे। शुरू-शुरू में तीज- त्यौहार पर तो आ भी जाते थे पर अपने घर-गृहस्थी में ऐसे रमे कि अब घर आना भी मुश्किल हो गया था। विनय परिवार के साथ यूरोप टूर पर गया था और वैभव का कल रात ही फोन आया था,
“माॅं! मैं इस साल त्यौहार पर नहीं आ पाऊॅंगा।एक प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है,इसी महीने समिट करना है।”
नम्रता कुछ भी नहीं बोल पाई थी।ठीक ही था, जहाँ भी रहे खुश रहे, खूब तरक्की करें। उसने भी तो यही चाहा था पर मन को कैसे समझाती। बच्चों की याद आ गई और न जाने क्यों आँखें छल -छला गई।नम्रता की नजर अचानक मनोज पर पड़ी।मनोज उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे।
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“आज फिर आँख में कुछ चला गया ?”
उसकी चोरी पकड़ी गई थी, मनोज ने उसे छेड़ते हुए कहा
“पुष्पा आई हेट टीयर्स,हमें छोड़कर किस की याद में टेसुए बहाए जा रहे हैं।”
मनोज की बात सुन नम्रता चिढ़ गई
“आप भी न कुछ भी कहते हैं, अब इस उम्र में हमें कौन पूछेगा?”
“अरे मैडम आप सेवा का मौका तो दीजिए, यहाँ से चौराहे तक लाइन लगवा देंगे।”
पता नहीं आज मनोज की किसी भी बात पर उसे हँसी नहीं आ रही थी। बच्चों के बाहर जाने के बाद मनोज हमेशा कोशिश करते थे कि नम्रता खुश रहे, वह भी तो इसी दर्द से गुजर रहे थे पर वह कभी दिखाते नहीं थे।किसी ने भेदभाव किया हो या न ही पर दर्द ने औरत और मर्द में कभी भेदभाव नहीं किया है।बस फ़र्क इतना सा ही था एक छिपाता नहीं एक दिखाता नहीं या फिर इसे यूँ भी समझ सकते हैं।एक चाह कर भी छिपा नही पाता और एक चाह कर भी दिखा नहीं पाता।
“इतना सारा काम है,कैसे होगा।बच्चे भी नहीं हैं ?”
नम्रता ने झुंझलाते हुए कहा
“तो?”
मनोज ने बेफिक्री से कहा
“आप भी न…आपसे तो कुछ भी कहना बेकार है।”
नम्रता ने नाराजगी दिखाते हुए कहा,मनोज ने उसकी पतली कलाइयों को अपने मज़बूत हाथों से पकड़ा और सोफे बैठा दिया।नम्रता मनोज के इस व्यवहार से कसमसा सी गई ।
“क्या है?क्या कर रहे हैं आप?
मनोज ने अपने चश्मे के शीशे को कुर्ते से पोछा और उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा
“नम्रता तुम्हें याद है हम पति-पत्नी कब थे?”
“मतलब?”
मनोज ने एक गहरी सांस ली।
“नम्रता जब तुम शादी हो कर इस घर में आई थी तब इस रिश्ते को समझने की न तुम्हारी उम्र थी न मेरी… तुम इस घर की बहू थी और मैं इस घर का बेटा। वैभव और विनय बहुत जल्दी ही पैदा हो गए थे और हम बेटे – बहू से कब माता-पिता बन गए हमें पता भी नहीं चला।पति-पत्नी के बीच का सफर पीछे न जाने कहाँ छूट गया। आज ईश्वर ने हमें मौका दिया है उस संबंध को, उस रिश्ते को, उस पल को जीने का फिर इस मौके को हम क्यों जाने दे।”
नम्रता मनोज की आँखों को देखती रही।कितने वर्षों बाद उसे इन आँखों में अपना प्रेमी,अपना पति,अपना जीवनसाथी नज़र आया था।उसने मनोज की मजबूत हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और खड़ी हो गई।
“कहाँ चली मोहतरमा?”
मनोज ने बड़ी अदा से कहा… वह जब बड़े मूड में होते थे तब ऐसे ही नम्रता को छेड़ते थे।
“मार्केट चलना है न फिर आप ही कहेंगे मै तैयार होने में बहुत समय लगाती हूँ।”
नम्रता ने पीठ पर झूल आए अपने बालों का जूड़ा बनाते हुए कहा
“लाल वाली साड़ी पहनना…तुम उसमें बिल्कुल शर्मिला टैगोर लगती हो।”
मनोज की आँखों में लाल डोरे थे।
“और आप वो ब्लू वाली टी शर्ट और ब्लैक पेंट…उसमें आप बिल्कुल राजेश खन्ना लगते हैं।”
मनोज के झुरियों से भरे चेहरे पर विश्वास की चमक थी और उस चमक से नम्रता का चेहरा भी चमकने लगा।आज इतने सालों बाद वह बच्चों के लिए नहीं खुद के लिए दीवाली मनाने जा रहे थे।खुशी हाथ पसारे उनका इंतजार कर रही थी।
