Overview: ग्रहण के दौरान क्यों कष्ट में रहते हैं देवता
21 सितंबर 2025 को आंशिक सूर्य ग्रहण लगेगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। धार्मिक मान्यता अनुसार, ग्रहण में देवता भी कष्ट में रहते हैं।
Second Surya Grahan 2025: ग्रहण लगना एक विशेष खगोलीय घटना मानी जाती है, जिसका प्रभाव देश-दुनिया और लोगों के जीवन पर पड़ता है। खगोल विज्ञान में सूर्य ग्रहण की घटना को महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि ज्योतिष और धर्म में ग्रहण लगने की घटना को शुभ नहीं माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ग्रहण के दौरान देवता भी कष्ट में रहते हैं। बात करें सूर्य ग्रहण की तो इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च 2025 को लगा था। इसके बाद अगला सूर्य ग्रहण सितंबर के महीने में लगेगा जोकि साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण होगा। सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है। ऐसी स्थिति में सूर्य का प्रकाश धरती तक नहीं पहुंच पाता, जिसे विज्ञान में सूर्य ग्रहण का नाम दिया गया है। हालांकि धार्मिक परिपेक्ष्य में ग्रहण लगने की घटना को राहु-केतु से जोड़ा जाता है। आइए जानते हैं साल का आखिरी सूर्य ग्रहण किस दिन लगेगा और क्या ग्रहण के दौरान सचमुच देवता भी कष्ट में रहते हैं।
21 सितंबर को लगेगा दूसरा सूर्य ग्रहण

साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण 21 सितंबर 2025 को लगेगा जोकि रात 11:00 बजे शुरू होगा और 22 सितंबर को तड़के सुबह 03:24 पर समाप्त हो जाएगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा जिसका प्रभाव भारत पर नहीं पड़ेगा यानी यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा और ना ही इसका सूतक यहां मान्य होगा। सूर्य ग्रहण कन्या राशि और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में लगेगा। भारत में भले ही ग्रहण दिखाई नहीं देगा, लेकिन अमेरिका, समोआ, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी और अटलांटिक महासागर जैसे क्षेत्रों में ग्रहण को देखा जा सकेगा। बता दें कि जिस स्थान पर ग्रहण दृश्यमान होता है, वहीं उसका सूतक भी मान्य होता है। ऐसे में साल के दूसरे सूर्य ग्रहण का प्रभाव भारत पर नहीं पड़ेगा। इसलिए धार्मिक अनुषठान या पूजा पाठ पर कोई जा रोक नहीं रहेगा।
क्या सचमुच ग्रहण के दौरान कष्ट पाते हैं देवता

ग्रहण लगने का संबंध ज्योतिष से लेकर शास्त्र और पुराणों में भी मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, ग्रहण का दुष्प्रभाव सिर्फ व्यक्ति ही नहीं बल्कि देवता पर भी पड़ता है और इसलिए ग्रहण के दौरान देवता भी कष्ट में रहते हैं। यही कारण है कि ग्रहण लगने से पहले यानी सूतक की अवधि से ही मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्य नहीं होते हैं। ज्योतिष शास्त्र की माने तो ग्रहण का प्रभाव सूर्य और चंद्रमा पर पड़ता है। दरअसल ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। साथ ही यह रहस्यमयी और क्रूर ग्रह भी कहलाते हैं। यह दोनों ग्रह कुंडली में सूर्य और चंद्रमा को प्रभावित करते हैं। इसका कारण समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है।
ग्रहण से जुड़ी पौराणिक और प्रचलित कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इससे अमृत कलश प्राप्त हुआ। अमृत कलश निकलते ही देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिढ़ गया। लेकिन सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने तब मोहिनी अवतार लिया और उन्होंने देवताओं और दानवों को बारी-बारी से अमृतपान कराने को कहा। भगवान के मोहिनी रूप से मोहित होकर दानव इसके लिए मान गए। विष्णुजी ने अमृतपान कराने के लिए देवता और दानवों को अलग-अलग पंक्ति में बिठा दिया। सबसे पहले उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराना शुरू किया। लेकिन देवताओं की पंक्ति में छल से एक दैत्य स्वरभानु भी बैठ गया। स्वरभानु दैत्य को सूर्य और चंद्रमा ने पहचान लिया और विष्णु जी को जाकर बता दिया। क्रोध में आकर विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य का शरीर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन तब तक दैत्य अमृतपान कर चुका था जिस कारण वह अमर हो गया था। स्वरभानु राक्षस के इसी शरीर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहा जाता है।
सूर्य-चंद्रमा से बदला लेते हैं राहु-केतु

सूर्य और चंद्रमा के कारण ही भगवान विष्णु ने स्वरभानु राक्षस का सिर धड़ से अलग किया था, जिस कारण राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। अमावस्या के दिन राहु-केतु सूर्य और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को निगलने का प्रयास करता हैं, जिससे कि देवता कष्ट पाते हैं। यही कारण है कि ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ नहीं किए जाते।
