शिव की महिमा और गुणगान हर ओर हैं। भगवान शिव को एक तरफ भोलेनाथ कहा जाता है, तो दूसरी ओर उनका क्रोध समस्त सृष्टि का नाश भी कर सकता है। वे अपने भक्तों के बेहद प्रिय हैं। भगवान शिव के दुनियाभर में बहुत से एतिहासिक मंदिर है। इन्हीं में से एक है त्र्यंबकेश्वर मंदिर। भोलेनाथ के इस मंदिर में तीन शिवलिंग विराजमान हैं। इस प्राचीन मंदिर के दर्शनों के लिए लोग दूर दूर से आते है और शिव की अराधना करते हैं। मंदिर के तीनों शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से विख्यात है। इस मंदिर के नज़दीक तीन पर्वत मौजूद हैं। पहला है ब्रह्मगिरी पर्वत, जिसे साक्षात भगवान शिव का ही स्वरूप माना जाता है। उसके बाद दूसरा है नीलगिरी पर्वत। इस पर्वत की खासियत ये है कि इस पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर बना हुआ है, जिसकी खूब महिमा है।  इसी श्रेणी में तीसरा पर्वत है, गंगा द्वार पर्वत, जिस पर देवी गोदावरी मंदिर स्थित है। त्रयंबकेश्वर मंदिर इन पर्वतों से घिरा हुआ है। अगर त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्यता की बात करें, तो ये मंदिर सिंधुण्आर्य शैली का एक बेहतरीन और खूबसूरत नमूना पेश करता है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते ही शिवलिंग की बजाय सिर्फ एक आर्घा के ही दर्शन होते हैं। अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो आपको उसी आर्घा के अंदर एक एक इंच के तीन लिंग दिखाई देगे, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के वक्त पूजा अर्चना के बाद दिखने वाली आर्घा पर चांदी का पंचमुखी मुकुट सजाया जाता है।

 

भगवान शिव का मंदिर त्रयंबकेश्व ब्रह्मगिरि हिल्स पर मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि ये भूमि गौतम ऋषि का तपोस्थान हुआ करता था। कहा जाता है कि गोहत्या के आरोप से मुक्त होने के लिए गोतम ऋषि ने इस स्थान पर खूब तपस्या भी की थी। ये भी प्रचलित है कि गौतम ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां पर खुद प्रकट हुए थे। ये मान्यता है कि यहां पर विशेषकर कुंडली में कालसर्प यां फिर पितृदोष होने पर यहां पर पूजा की जाती है और उनका दोष समाप्त हो जाता है।

 

 

 

एक पौराणिक कथा के मुताबिक ब्रह्मगिरी पर्वत पर गौतम ऋषि का निवास स्थान हुआ करता था। उनकी तपस्या और भक्ति को देखकर अन्य ऋषिगण उनसे भयभीत होने लगते थे, जिसके कारण उनका व्यवहार गौतम ऋषि की ओर काफी ईर्ष्यालु हो गया था। अब सभी ऋषियों ने घोर तपस्या कर गणेशजी को प्रसन्न कर दिया। अब गणेशजी ने ऋषियों की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हे वर मागंने के लिए कहा। वर के रूप में ऋषियों ने गौतम ऋषि को इस आश्रम से बाहर करने की बात की। उनकी इस बात को सुनकर गणेशजी ने उन्हें समझाया। मगर ऋषिगण नहीं माने और अपनी बात पर अडिग रहे। अब अपने भक्तों को निराश न करने के निए गणेशजी ने एक गाय का भेस धारण कर लिया। अब वो गाय दिखने में काफी दुर्बल थी। जो गौतम ऋषि के खेतों में जाकर फसल खराब करने लगी। इस दृश्य को देखकर गौतम ऋषि चिंतित हो उठे, वो जैसे ही गाय को हटाने के लिए वहां पहुंचे, गाय खुद ब खुद निढाल होकर ज़मीन पर गिर पड़ी और अपने प्राण त्याग दिए। इसी के चलते उन्होंने गौतम ऋषि गोहत्या करने का संगीन आरोप लगा दिया। ऐसे में सारे ब्राह्मणों ने एकजुट होकर गौतम ऋषि को कहीं दूर चले जाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अब सभी ऋषि मुनियों ने एकजुट होकर उनसे इस हत्या का प्रायश्चित करने को कहा और उनसे गंगा नदी इस स्थान पर लाने की जिद्द की। हैं।  ऋषियों ने गौतम ऋषि से तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए कहा। पंडितों का कहना था कि परिक्रमा समाप्त होने के बाद  एक महीने व्रत करने होंगे और उसके बाद ब्रह्मगिरी की भी 101 परिक्रमा करनी होगी। इन सब कार्यों के बाद तुम्हारे कर्मों का शुद्धिकरण संभव हो सकता है। इसके अलावा गंगा जी को यहां पर लाकर उनके जल से स्नान करो और फिर एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। अब गौतम ऋषि मन ही मन इस बात से बेहद विचलित हो उठे। वे अब खुद पर लगे आरोप से मुक्ति पाने के लिए भोलेनाथ की तपस्या में जुट गए। अब उनकी घोर तपस्या और साधना से खुश होकर शिवजी और पावर्ती जी ने उन्हें दर्शन दिए।  तभी गौतम ऋषि ने भगवान शिव से इस स्थान पर गंगा माता को उतारने का वर मांग लिया। मगर  माता गंगा को जब इस बात की जानकारी हुई , तो उन्होंने भगवान शिव से कहा कि यदि आप इस स्थान पर विराजेंगे, तभी मैं यहां पर उतर पाएंगी। इस कथा के अनुसार मांता गंगा के अनुरोध पर शिवजी यहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप निवास करने लगे। अब शिवजी के यहां निवास करने को लेकर इस स्थान को तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के नाम से पहचाना जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर के समान अब त्रयंबकेश्वर महाराज को ही गांव का राजा माना जाता है। इसी मान्यता के साथ अब हर सोमवार के दिन एक राजा के समान त्रयंबकेश्वर अपने भक्तों यानि की प्रजा से मिलने और उन्हें दर्शन देने के लिए अपने क्षेत्र के मुख्य मार्गों से होकर गुज़रते

 

 

 

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