Shivratri फाल्गुन माह की चर्तुदशी के दिन आती है यानी वर्ष का अंतिम मास फाल्गुन एवं अंतिम अंधेरी रात्रि चतुर्दशी। अब यह स्वयं जानने की बात है कि शिव सम्पूर्ण जगत के काल स्वरूप हैं अर्थात मृत्यु के देवता हैं, उनके द्वारा प्रलय होने पर ही सम्पूर्ण सृष्टि पुन: स्थापित होती है। इसी कारण उनका पर्व भी वर्ष के अंतिम मास व अंधकार की अंतिम रात को मनाया जाता है, यही शिव लीला है।
शिवरात्रि की पूजन सामग्री में क्या होता है?
गंगा जल, केसर, इत्र, चंदन, अक्षत (बिना टूटे हुए चावल), फुलों की माला, बिल्व पत्र, दूब, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी मिले हुए) मौली (इसे कलावा व रंगीन धागा भी कहा जाता है जिसे प्राय: पंडित आपके हाथ पर बांधते हैं), यज्ञोपवीत, फल, मिठाई, अगरबत्ती, कपूर, कोरे पान (डन्ठल सहित), सुपारी, लौंग, इलायची, दक्षिणा, थाली, जल पात्र तथा अन्य पूजन सामग्री।
शिवरात्रि की पूजन विधी क्या है?
प्रात: काल उठ जाएं। अपना नित्य कर्म करके शिव मंदिर में पहुंचें। वहां विधिपूर्वक शिव पूजन करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि- ‘हे नीलकंठ! मैं चाहता हूं कि आज शिवरात्रि का उपवास धारण करूं। इसमें मेरी अभिलाषा को आप कृपा करके निर्विघ्न पूर्ण करो। काम, क्रोध, शत्रु मेरा कुछ बिगाड़ न सकें। मेरी भली-भांति आप रक्षा करें। यह बोलकर शिव जी के सामने प्रतिज्ञा व संकल्प करें, उसके बाद रात होने पर सभी पूजन सामग्री अपने पास इकट्ठा करके उस शिव-मंदिर में पहुंचे जहां शिवलिंग शास्त्र सिद्ध हों, जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्रों द्वारा हो चुकी हो।
वेद मंत्रों से शिव पूजन करें
वहां पहुंचकर शुद्ध स्थान पर सामग्री रखकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करके उत्तम आसन पर बैठकर शिव पूजन आरम्भ करें। शिव भक्त रात्रि के चारों प्रहर में चार शिवपार्थिव लिंगों की रचना करके विधिपूर्वक वेद-मंत्रों के द्वारा पांच वस्तुओं से शिव पूजन करें। एक सौ आठ शिवमंत्र बोलकर जल धारा चढ़ाएं। जल धारा चढ़ाने से पहले शिव पर चढ़ाई वस्तुओं को नीचे उतारें। उसके बाद गुरु मंत्र अथवा शिवनाम मंत्र बोलकर काले तिलों से भगवान शंकर को पूजकर भव, शर्व रुद्र, पशुपति उग्र, महान, भीम एवं ईशान, इन आठ नामों को बेलते हुए कमल पुष्प तथा कनेर के फूल शिव पर चढ़ाएं। उसके बाद धूप, दीप, पके हुए उत्तम अन्न का नैवेद्य आदि निवेदन करें, फिर नमस्कार करें। ‘ऊं नम: शिवाय” इस पंचाक्षर मंत्र का भी जाप करें। जाप हो जाने पर धेनुमुद्रा दिखाकर निर्मल जल द्वारा शिव तर्पण करें।
दो सौ सोलह शिव मंत्रों का करें जाप
यह पूजन रात्रि के पहले प्रहर का हुआ। इसी प्रकार दूसरे प्रहर में भी उन्हीं वस्तुओं द्वारा शिव-पूजन करके दो सौ सोलह शिव मंत्रों द्वारा शिव पर जल धारा चढ़ावें। इसी तरह हर एक वस्तु को चढ़ाते समय पहले की अपेक्षा हर एक मंत्र दो बार बोलें। तिल, जौ, चावल, बिल्वपत्र, अर्घ्य, बिजौर आदि वस्तुओं से पूजन करें। खीर का नैवेद्य चढ़ाकर प्रणाम करें। उसके बाद पहले प्रहर में जपे हुए मंत्र से दोगुना जाप करें। ब्राह्मण भोजन व संकल्प करके पूजन फल शिवार्पण करें। फिर विसर्जन करें।
तीसरे प्रहर का पूजन फिर प्रथमवत् हो। विशेषत: इसमें जौ के स्थान पर गेहूं हो और पुष्प के स्थान पर आक के फूल से पूजन करें। अनेक प्रकार की धूप, दीप, नैवेद्य पुए का हो, शाक भी साफ हो, फिर कपूर की आरती करें।
भोजन का संकल्प करें
अर्घ्य में अनार चढ़ावें, फिर पहले की अपेक्षा दोगुना जाप करें, दक्षिणा सहित यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें। प्रहर समाप्त होने पर पूजन फल शिवार्पण करके विसर्जन करें उसके बाद चौथा प्रहर लगने पर शिव आहवान करके उड़द, कंगनी, मूंग, सातों धातु अथवा शंख, फूल एवम् बिल्वपत्रादि से मंत्रों को बोलकर विधिपूर्वक पूजन करें। उसके बाद उड़द के बनाये गये पदार्थ, स्वादिष्ट मिष्ठान व विविध प्रकार के फल शिव को चढ़ावें। सुन्दर पके हुए केले के फल और ऋतु के अनुकूल अन्न, फल प्रेम के साथ शिव के आगे समर्पित करें। फिर जितना जाप पहले किया हो इससे दोगुना जप करें। यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें।
ब्राह्मïणें को भोजन कराएं
इसी प्रकार सूर्य के उदय होने तक उत्सव करते हुए प्रेम में मग्न रहें। उसके बाद स्नान करके शिव पूजन करें। अनेक पूजन सामग्रियों से अभिषेक करें। उसके बाद रात्रि समय में जितने ब्राह्मïणें का संकल्प किया हो उतने ब्राह्माणों तथा यतिजनों को बुलाकर भक्तिपूर्वक उन्हें भोजन करावें फिर शिव शंकर को नमस्कार करके हाथ में पुष्प लेकर नम्रता के साथ प्रार्थना करें। हे दयानिधान। मुझे आप अपनी भक्ति का वरदान दीजिये कि सर्वदा मैं आपकी भक्ति में तत्पर रहूं। जो कुछ भी जाने-अनजाने, योग्य-अयोग्य मैंने आपका व्रत व पूजन किया है उसे आप कृपा करके अंगीकार करें। हे शम्भो। जहां पर भी मेरा जन्म हो वहां सभी आपके पूर्ण भक्त हों, उनमें आपका वास हो। यह कहकर शिव जी पर पुष्पांजलि समर्पित करें। फिर ब्राह्मणों द्वारा तिलक करावें। उनका आशीर्वाद पाकर भगवान शंकर का विसर्जन करें। इस व्रत के करने वाले को शिव सान्निध्य प्राप्त होता है।
पारदेश्वर शिवलिंग की पूजा, अर्चना, ध्यान करें
शिव पार्थिव भी हैं और साकार भी। पार्थिव में शिवलिंग रूप में पूजित होते हैं, और साकार के रूप में मूर्ति, चित्र, यंत्र स्वरूप में पूजित होते हैं। शिव के साधक को न तो अपमृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न ही शोक का, क्योंकि जहां शिव हैं वहां यमराज भी नहीं आ सकते, शिवतत्त्व तो एक रक्षा चक्र है, शक्ति चक्र है, ब्रह्मा चक्र है, जो साधक को हर प्रकार से सुरक्षित कर देता है।
शिव साधना के नियम- शिव की साधना के नियम अत्यंत सरल हैं, साधक भय-रहित होकर, उन्हें अपना इष्ट मानते हुए ‘पारदेश्वर शिवलिंग’ की पूजा, अर्चना, ध्यान करें।
- शिव के पूजन में साधक ललाट पर लाल चंदन का त्रिपुण्ड और बांहों पर भस्म अवश्य लगाएं।
- शिव साधना में संस्कारित, शोधित रुद्राक्ष माला से ही मंत्र जाप करना आवश्यक है।
- शिव पूजा में श्वेत पुष्प, धतूरे का पुष्प तथा औंधा अर्थात् उल्टा (तीन पत्तियों से युक्त) बिल्व पत्र और दुग्ध मिश्रित जल धारा अर्पित करनी चाहिए।
- शिव की स्तुतियां अभिषेक तो हजारों हैं, लेकिन पंचाक्षरी मंत्र ‘ऊं नम: शिवाय’ का जाप अवश्य ही करना चाहिए।