Amarnath Dham : संसार में जो कुछ है… जो कुछ था… और जो कुछ होना है, उन सब के संधिसूत्र शिव हैं। अतीत, वर्तमान और भविष्य उनकी ताल और लय पर बनते मिटते हैं। ऐसे सदाशिव जिन्हें बर्फानी बाबा, अमरनाथ, आशुतोष, अर्धनारीश्वर महादेव, नीलकंठ, मृत्यंजय आदि नामों से पुकारा जाता है, एक ओर उदार और कल्याणकारी हैं, वहीं उनका रौद्र रूप व प्रलयंकारी नटराज का भी स्वरूप है। उनके इस नटराज स्वरूप में देश की सीमाओं की रक्षा का ही भाव निहित है।
लोक मंगल के लिए तांडव करना और देवताओं को मृत्यु के भय से मुक्त करने के लिए द्रवीभूत होकर पुन: हिमलिंग के रूप में अमरनाथ गुफा में स्थित होना, इन्हीं विशेषताओं के कारण शिव भारतवर्ष के राष्ट्रव्यापी देव कहलाए।
अमरनाथ की गुफा, हमारे राष्ट्र की संस्कृति, एकता एवं अखंडता का प्रतीक है। यहीं पर भगवान शंकर ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। युगों पूर्व की अमरनाथ कथा सुनाने की गाथा की किंवदंतियों से जुड़ी यह यात्रा इतनी अधिक रोमांचक है कि यहां आने वाला हर प्राणी प्रकृति के इस करिश्मे को देख कर दंग रह जाता है।
Amarnath Dham : यात्रा का प्रथम पड़ाव पहलगांव
देवदार के ऊंचे पेड़ों के साथ-साथ लिद्दर नदी की कल-कल करती आवाज धरती का स्वर्ग कहे जाते कश्मीर में, अमरनाथ यात्रा के प्रवेश द्वार पहलगांव में यात्रियों का अभिनन्दन करती प्रतीत होती है। पहलगांव में प्रवेश का दृश्य इतना सुंदर है कि वहां पहुंच कर यूं प्रतीत होता है मानो यहीं जन्नत है।

कहते हैं कि जब भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए चले तो सबसे पहले उन्होंने यहां अपनी सवारी नंदी बैल को छोड़ा था। पहलगांव को पहले बैलगांव कहा जाता था, जो बाद में धीरे-धीरे पहलगावं कहलाने लगा। समुद्रतल से 7200 फीट की ऊंचाई पर बसा यह सुरम्य नगर चारों ओर गगनचुंबी पर्वत मालाओं से घिरा है और इन पर्वत मालाओं पर जमी हुई दूधिया बर्फ मानव हृदय में रोमांच भर देती है।
चन्दनवाड़ी

समुद्रतल से 95 सौ फीट की ऊंचाई और पहाड़ी नदियों के संगम की घाटी को चन्दनवाड़ी कहते हैं। पहलगांव से 16 किमी. दूर स्थित इस तल से यात्रा पर जाने वाले शिव भक्तों के लिए पैदल मार्ग प्रारंभ होता है। यहां तक यात्री सरकारी या निजी वाहनों में आते हैं और आगे की पर्वतीय यात्रा पैदल या घोड़ों पर करते हैं। चन्दनवाड़ी के बारे में कहा जाता है कि अमरनाथ गुफा को जाते समय भोलेनाथ ने अपने मस्तक का चंदन उतार कर छोड़ा था। पर्वतों से आती जलधारा यहां आकर छोटी नदी का रूप धारण कर लेती है, जिसे पार कर आगे बढ़ना होता है, मगर कुदरत ने यहां पर जो करिश्मा दिखाया है, उसे नंगी आंखों से देख कर हर कोई दंग रह जाता है। इस नदी को पार करने के लिए प्रकृति ने लगभग सौ फीट लंबा बर्फ का पुल बना रखा है, जिसे पार करके आगे बढ़ा जाता है।
पिस्सू घाटी

अमरनाथ यात्रा के इस पड़ाव पर पहुंचते ही यात्रियों की चाल पिस्सू जैसी हो जाती है, इसीलिए इसे पिस्सू घाटी के नाम से पुकारा जाता है। कहते हैं कि एक बार देव और राक्षस भोलेनाथ के दर्शनार्थ आए तथा पहले आगे बढ़ने की ईर्ष्या में युद्ध में उलझ गए। तब देवताओं ने युद्ध से हटकर भोलेनाथ से आग्रह किया और उनकी कृपा से देवताओं ने राक्षसों को मार-मार कर उनका चूर्ण बना दिया और वहां उनकी अस्थियों का ढेर लग गया। यही पर्वत श्रृंग (चोटी) शिव-भक्तों के कष्ट का हरण करती है। कहते हैं कि इस कठिन मार्ग को शिव-शिव जपते हुए पार करें तो ब्रह्मïलोक की प्राप्ति होती है।
स्वर्ग की कल्पना जैसी शेषनाग झील

पहलगांव से 30 कि.मी. दूर शेषनाग नामक पड़ाव पर पहुंचते ही एक सुखद एहसास की अनुभूति होती है। प्रथम दृश्य में ही पर्वतों के मध्य दिखाई देती गहरे हरे-नीले रंग की जलधारा से एहसास होता है कि कोई नदी होगी, मगर पर्वत की ओट से निकलते ही जो शेषनाग झील दिखाई पड़ती है, उसे देखकर यूं लगता है मानों जागती आंखों ने कोई स्वर्ग का दृश्य देखा हो। यह स्थान, जिसे शेषनाग सरोवर भी कहते हैं, जो झेलम नदी का उद्ïगम स्थल है। ब्रह्मï, विष्णु और महेश नाम के तीन पर्वतों के मध्य बनीं झील के बारे में कहा जाता है कि यहां भोलेनाथ ने अमरनाथ गुफा को जाते समय गले में पहने शेषनाग को गले से उतार कर छोड़ दिया था। एक कथा के अनुसार शेषनाग ने एक बलशाली राक्षस जो देवताओं की मुसीबत बन गया था उसे अपना ग्रास बना लिया था। तभी से इस पर्वत का नाम शेषनाग पर्वत हो गया।
महागुनस पर्वत

महागुणस पर्वत, शेषनाग पड़ाव से आगे आता है, जिसकी सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। समुद्रतल से 14,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पर्वत को पार करने के लिए सिर्फ हौसला चाहिए। इस विशालकाय पर्वत, जो हरे और भूरे रंग का है, का आकार भी आश्चर्यजनक है। इसे पार करते ही अनेक छोटे-बड़े नाले और झरने बड़े ही आनंद की अनुभूति देते हैं। कहा जाता है कि भोलेनाथ ने यहां पर पुत्र गणेश को बिठा दिया था, जिसे पूर्व में महागणेश पर्वत या गणेश टॉप भी कहा जाता था।
पंचतरणी

यात्रा का तीसरा पड़ाव पंचतरणी है, जो शेषनाग से 12 कि.मी. यात्रा तय करने के बाद आता है। मैदानी दिखाई देने वाला खुला क्षेत्र पंचतरणी है, जहां पांच अलग-अलग धाराओं में बहती हुई पांच नदियां बहती हैं, जिन्हें पार करके यात्री आगे बढ़ते हैं। कहते हैं कि यहां पर भोलेनाथ ने गुफा को जाते समय नटराज स्वरूप धारण किया था। जब वह इस स्वरूप में नृत्य करने लगे तो उनकी जटाएं खुल गईं और गंगा पांच धाराओं में धरा पर बहने लगी। ऐसी भी मान्यता है कि यहां भोले बाबा ने पंच तत्त्वों का त्याग किया था। यहां से छ: कि.मी. आगे पावन गुफा है, जो मार्ग में पड़ती भैरव घाटी को पार करके आती है। मगर तीन कि.मी. दूर संगम नाम का स्थान है, जहां बालटाल से आता पर्वतीय मार्ग मिलता है।
बालटाल मार्ग

श्री अमरनाथ की यात्रा को जाने के लिए श्रीनगर से सोनमार्ग होते हुए बालटाल से लगभग 14 कि.मी. का अपेक्षाकृत आसान पैदल मार्ग तय करके संगम होते हुए गुफा तक जाते हैं। इस मार्ग का कोई ऐतिहासिक या पौराणिक प्रमाण नहीं है, मगर अधिकतर यात्री अब इसी मार्ग से जाने लगे हैं।
श्री अमरनाथ की पावन गुफा

संगम से आगे तीन कि.मी. का मार्ग एक बर्फीला मार्ग है, जहां न सिर्फ पर्वत हिमाच्छादित हैं, मगर पैदल चलने का मार्ग भी बर्फ के पुल से होकर जाता है। नीचे अमरावती नदी बहती है तो ऊपर बर्फ जमी हुई है, जिसके ऊपर से चलकर जाना होता है। दूर से नजर आती श्री अमरनाथ गुफा को देख प्रकृति के इस अद्ïभुत करिश्मे के आगे न सिर्फ इन्सान की सोच खत्म होने लगती है, अपितु वह भोले बाबा के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रहता। 12729 फुट की ऊंचाई पर हिमाच्छादित पर्वतों के बीच स्थित अमरनाथ स्वामी की गुफा के अन्दर हिमलिंग के स्वयं बनने को एक ऐसा रहस्य कहा जाता है, जिसे युगों से कोई भी सुलझा नहीं पाया।
बर्फानी शिवलिंग के दर्शन

बिना किसी द्वार या प्रतिबंधों के, पर्वत के बीच बनी 60 फीट लंबी, तीस फीट चौड़ी और लगभग 15 फीट ऊंची ऊबड़-खाबड़ गुफा के अन्दर भगवान का प्रकृति द्वारा रचित हिमलिंग में प्रकट होना आश्चर्यजनक तो है ही, इससे भी बड़ा आश्चर्य है कि भगवान शिव का स्वरूप हिमलिंग और प्राकृतिक पीठ (हिम चबूतरा) पक्की बर्फ के हैं, जबकि गुफा के बाहर मीलों तक चारों ओर कच्ची बर्फ दिखाई देती है। इसी गुफा में बर्फ द्वारा निर्मित गणेश-पीठ पक्की बर्फ के हैं। इस गुफा में जहां-तहां बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो यहां आने वालों को असीम आनन्द…असीम संतुष्टिï…असीम शांति और अनन्त प्रसन्नता की अनुभूति देता है।
बूटा मालिक ने खोजी थी गुफा
कहते हैं कि इस गुफा की खोज बूटा मालिक नाम के मुसलमान ने की थी, जो बकरियां चराते हुए यहां पहुंच गया था। उसी बूटा मलिक के वंशज आज भी यहां चढ़ने वाले चढ़ावे का हिस्सा प्राप्त करते हैं।
धर्मनिरपेक्षता
अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले लोग विशेष वर्ग या समुदाय से नहीं होते। राष्ट्र की चारों दिशाओं से यहां आने वाले लोग एक नई संस्कृति व परिवेश के साथ आते हैं और यहां पर एक नई संस्कृति जन्म ले लेती है। राष्ट्रीय एकता की इस परिपाटी को शिव भक्तों ने राष्ट्र में श्री शिव के प्रति बढ़ती आस्था के रूप में प्रस्तुत किया है। यूं भी शिवमय भारतीय संस्कृति की कामना सदैव ही सृष्टिï के कल्याण की रही है। शिव भक्त सदैव सभी का कल्याण चाहता है और इसी कारण से शिव की पहचान भारतीय दर्शन में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता, अखंडता व कल्याण की है। श्री अमरनाथ यात्रा भी इसी सोच के साथ शिव भक्त करते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
श्रीनगर के आस-पास प्रसिद्ध स्थानों में श्री शंकराचार्य मंदिर, मां क्षीर भवानी मंदिर, श्री अनन्तनाग मंदिर, मटन का सूर्य मंदिर व कुंंड, छोटे अमरनाथ का मंदिर के अतिरिक्त हजरत बल तथा अनेक पर्यटन स्थल भी हैं, जिन्हें देखने दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं।
कब जाएं?
श्री अमरनाथ की यात्रा हर साल श्रावण पूर्णिमा से एक मास पहले जम्मू-कश्मीर सरकार की देखरेख में प्रारम्भ होती है (सन्ï 2007 से 2 माह पहले प्रारंभ होने लगी है) और इस अवसर पर सरकार व स्वयंसेवी संस्थाएं हर प्रकार का प्रबंध करती हैं। सर्दियों में सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।
कैसे जाएं?
जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रमुख नगर जम्मू तक रेल से या निजी वाहनों से आया जा सकता है। जम्मू से श्रीनगर तक सिर्फ सड़क मार्ग से ही जाया जाता है। जम्मू तक ट्रेन, देश के हर बड़े नगर से आती है। निकटतम हवाई अड्ïडा श्रीनगर है। श्रीनगर से पंचतरणी-हैलीपैड तक हैलीकॉप्टर सेवा भी मिलती है।

कहां ठहरें?
श्रीनगर या पहलगांव में ठहरने के लिए हर स्तर के होटल हैं, जबकि बालटाल या शेषनाग, पंचतारणी और गुफा के पूरे मार्ग में ठहरने के लिए टेंट मिल जाते हैं।
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