Mars and Astrology: मंगल सूर्य के बाद चौथा व सातवां बड़ा ग्रह माना जाता है इसकी सूर्य से लगभग दूरी 22 करोड़ 79 लाख किलोमीटर है। इस ग्रह का व्यास लगभग तकरीबन 6794 किलोमीटर है।
मंगल ग्रह से जुड़ी रोचक बातें
1.यूनान के लोग मंगल ग्रह को ऐरस कहते हैं और इसको युद्ध का देवता मानते हैं मंगल के लाल रंग के कारण उसको ये नाम दिया गया है।
2.मंगल ग्रह की मिट्टी में लौह खनिज में जंग लग जाने के कारण यह लाल दिखता है।
3.मंगल ग्रह की सूर्य के चारों ओर की कक्षा अण्ड़ाकार है इसके कारण ही मंगल के तापमान में अधिकता रहती है।
4.मंगल पर भेजे गये यानों के अनुसार मंगल की सतह काफी पुरानी व फ्रेटरों से भरी है परंतु इसमें कुछ नई धारी, पठार, पहाड़ी भी बन रहे हैं।
5.यानों के अनुसार यहां नदी व सागर भी मिल सकते हैं।
6.सौर मंगल का सबसे बड़ा पर्वत मंगल पर ही है जिसको ओलिप मोन्स कहते हैं ये 24 किलोमीटर ऊंचा है।
7.मंगल ग्रह का औसत तापमान 55 डिग्री सेल्सियस व इसकी सतह का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से 133 डिग्री सेल्सियस तक बदल सकता है।
8.मंगल ग्रह का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है मंगल पर उपलब्ध भूमि पृथ्वी की भूमि के बराबर है।
9.मंगल का एक दिन 24 घंटे से कुछ ज्यादा समय का होता है। मंगल का एक साल पृथ्वी के 687 दिन के बराबर है। लगभग 27 माह।
10.मंगल की सतह पर पानी व कार्बन डाईऑक्साइड की परत है मंगल के कई स्थानों पर बर्फ भी है।
11. पृथ्वी के उपग्रह चांद की तरह मंगल के भी दो उपग्रह हैं-
1.फोबेस
2.डीमोस
12.यदि किसी व्यक्ति का धरती पर 100 किली वजन है तो मंगल पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होने के कारण मात्र 37 किलो ही होगा।
13.यूनानी लोग फोबेस को शुक्र का बेल मानते हैं। फोबोस यानी भय का देवता।
14.फोबोस मंगल के आकार में दिन में दो बार उदय और अस्त होता है।
15.मंगल के दोनों उपग्रह फोबोस व डिमोस उपग्रह का प्रयोग मंगल यात्रा के दौरान अन्तरिक्ष केन्द्र के रूप में किया जायेगा।
16.मंगल ग्रह की ऊपर 8 अभियान चल रहे हैं इनमें से 7 रिसर्च अमेरिका की तरफ से व एक भारत की तरफ से चली रही है। मंगल यद्यपि मंगल करने वाला ग्रह है
परंतु इसको इसकी क्रूरता के कारण भी माना जाता है। मंगल की जन्म कथा के बारे में एक कथा प्रचलित है देवी भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस को मारने के लिये जब वराह अवतार लिया और राक्षस का वध करके वापस लौटने लगे तो तब धरती माता ने उनके रूप पर आकर्षित होकर उनसे पुत्र प्रदान करने की अपनी इच्छा कहीं धरती की मनोकामना पूरी करने के लिये वराह कुछ दिन धरती पर रहे। धरती ने जब मंगल को जन्म दिया उसके बाद वराह वैकुंठ चले गये। मंगल जब बड़े हुए तो उनको पिता के ऊपर क्रोध आया की वराह ने क्यों उनकी माता को त्यागा इसलिए मंगल वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न करते हैं रक्तपात, दुर्घटना, जैसी स्थिति बना देते हैं। इसलिये मंगल क्रूरता से भरे रहते हैं।
मंगल का विभिन्न भागों में प्रभाव
1.प्रथम भाव- प्रथम भाव में मंगल जातक को मांगलिक बनाता है जिससे वैवाहिक जीवन में लड़ाई-झगड़ा पैदा करता है परंतु अगर जीवनसाथी भी मांगलिक हो तो दोष थोड़ा कम हो जाता है।
2.द्वितीय भाव- द्वितीय भाव का मंगल जातक को क्रूर स्वभाव का बनाता है। जिसके कारण उसकी बोली कड़वी होती है जो उसके सम्मान को कम कराती है।
3.तृतीय भाव- तृतीय भाव का मंगल जातक को बहादुर बनाता है ऐसे लोग वीरता से भरे होते हैं आत्मविश्वासी होते हैं। ये कठिनाइयों से नहीं डरते और अधिकक्तर देश सेवी बनते हैं।
4.चतुर्थ भाव- चतुर्थ भाव का मंगल जातक को कटुषाषी बनाता है, छोटे भाई से अलगाव करता है व जातक को मांगलिक बनाता है।
5.पंचम भाव- पंचम भाव का मंगल जातक को सरल शुद्ध व सच्चाई से भरा व शक्तिशाली बनाता है। स्वस्थ व लम्बी आयु वाला भी होता है। वह जो कहता है वही करता है।
6.छठा भाव- छठे भाव का मंगल जातक को मजबूत व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है ये कठिन परिश्रम करने वाला व सूजबूझ से हर समस्या को सुलझाने वाला होता है ये इंसान पूरी तरह से नियमबद्ध होते हैं और हर कार्य को सावधानी से पूरा करते हैं।
7.सातवां भाव- सातवां भाव का मंगल जातक को मांगलिक बनाता है इससे जातक का विवाह देर से होता है। पति-पत्नी के बीच अलगाव व तलाक की स्थिति बन जाती है परंतु अगर मांगलिक का विवाह मांगलिक से हो तो वैवाहिक जीवन सही रहता है।
8.आठवा भाव- आठवें भाव का मंगल जातक को थोड़ा भाग्यहीन बनाता है पति-पत्नी में प्राय: विश्वास की कमी रहती है हर कार्य जातक के कठिन परिश्रम के बाद ही पूरा हो पाता है।
9.नवा भाव- नवे भाव का मंगल जातक को सुंदर व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है ये उच्च अधिकारी का पद दिलाने में पूर्ण सहयोग देता है।
10.दशम भाव- दशम भाव का मंगल जातक को कठिन परिश्रमी बनाता है इसमें जातक रंक से राजा बन जाता है और जीवन में गरीबी के बाद स्वयं अपनी मेहनत से अमीरी का स्वाद चखता है और अपने कार्यक्षेत्र पर उच्च स्थान पाता है।
11.ग्यारहवां भाव- ग्यारहवां भाव का मंगल जातक को जीवन में सफल बनाता है, मित्रों से सहयोग मिलता है, शत्रु शांत रहता है। ऐसा जातक अपने नहीं दूसरों के सहयोग से हर सफलता पाता है।
12.बारहवां भाव- बारहवां भाव का मंगल जातक को कुख्यात बनाता है अचानक ही परेशानी आती रहती है जीवन में कई बार झूठे इलजाम भी लगते रहते हैं जातक को।
मंगल की महादशा व अन्तरदशा
मंगल की महादशा आठ साल की होती है यदि मंगल की महादशा की बात करें तो मंगल की महादशा जातक के जीवन के लिये बहुत महत्त्व रखती है ये शुभ होगी या अशुभ ये तो जातक की कुंडली के हिसाब से ही तय होता है।
मंगल में मंगल
शुभ व उच्च राशि मंगल जातक के लिये शुभ फल प्रदान करता है। बलवान मंगल राज योग, सैन्य योग बनाता है, व्यापार में उन्नति होती है, लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है अशुभ मंगल हो तो व्यक्ति क्रूर स्वभाव का बन जाता है।
खून में गर्मी बढ़ जाती है, क्रोध अधिक आता है, रक्त विकार होते हंै, बुद्धि भ्रमित होती है, परिवार में लड़ाई होती है, शिरोवेदना, नेत्र रोग, खुजली, चकत्ते जैसे रोग हो जाते हैं, आमदनी कम हो जाती है।
मंगल में राहु
शुभ राहु हो तो शुभ फल मिलते हैं मकान,भूमि, धन प्राप्त होता है। शत्रु से विजय, कृषि में लाभ मिलता है परंतु अशुभ राहु में विदेश प्रवास करने पड़ते हैं, शत्रु बढ़ जाते हैं, दुर्घटना का भय होता है, झूठे आरोप लगते हैं, उदर विकार, वायुविकार, रक्तचाप, श्वास जैसे रोगों में वृद्धि होती है कार्यों में रुकावटें आती हैं।
मंगल में गुरु
शुभ गुरु से जातक का यश बढ़ता है नौकरी में वृद्धि, वेतन वृद्धि होती है, संतान से यश मिलता है, सम्मान में वृद्धि होती है, धन लाभ होता है। अशुभ गुरु से मान हानि, धन हानि होती है, स्त्री सुख व संतान सुख में कमी आती है, परिवार से अनबन, ज्वर, कर्ण पीड़ा कफ आदि रोगों से हानि होती है। अपमृत्यु की आशंका रहती है।
मंगल में शनि
यदि जातक का शनि शुभ हो तो इस काल में जातक को मिश्रित फल मिलते हैं सम्मान मिलता है, पशुओं से लाभ मिलता है, कृषि व पशुधन बढ़ता है, सरकार से पुरस्कार मिलता है, अशुभ शनि में जातक भ्रमित रहता है, स्वजनों का नाश होता है, पुत्र सुख में कमी आती है दुखों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि जातक या तो ईश्वर भक्ति करने लगता है या फिर आत्महत्या का प्रयास भी करता है।
मंगल में बुद्ध

यदि जातक का बुद्ध उच्च व सही राशि का हो तो जातक को बुद्धि का लाभ होता है। स्वभाव हंसमुख हो जाता है, जातक को बहुमूल्य तोहफे मिलते हैं, कन्या की प्राप्ति होती है परंतु निर्बल व अशुभ बुद्ध से बुद्धि कुंठित हो जाती है, अपयश बढ़ता है, कठिन श्रय बेकार जाता है, हर कार्य से हानि मिलती है, मन संतापी रहता है।
मंगल में केतु
मंगल में केतु की अंतर्दशा जातक की अशुभ ही होती है। मन में भय व पाप बढ़ जाते हैं पर मिश्रित फल मिलते रहते हैं, कभी लाभ कभी हानि का योग बना रहता है। बिजली, बारिश, अग्नि का भय बना रहता है, जेल जाने की नौबत भी आ जाती है, उदरशूल, पथरी नासूर, भगंदर जैसे रोग हो जाते हैं केतु हर तरह के कष्टï देती है।
मंगल में शुक्र
जातक का शुक्र अगर शुभ होता है तो जातक को काफी लाभ की प्राप्ति होती है। इस वक्त सुख सुविधाओं से जीवन भर जाता है, सुख सम्मान की प्राप्ति होती है, स्त्री सुख में वृद्धि होती है, सुख सुविधा की चीजों पर धन व्यय होता है।
मकान, वाहन का सुख बढ़ता है भोग विलासी या शाही जीवन जीने को मिलता है।
यानी सुख में वृद्धि होती है अशुभ शुक्र की स्थिति में सब उल्टा हो जाता है। सुख सुविधा समाप्त हो जाती हैं। धन हानि बनी रहती है। कफ, श्वसन, संबंधी रोग होते हैं। स्वास्थ्य ज्यादा सही होता है परिवार के सुख में कमी आती है।
मंगल में सूर्य
सूर्य अगर उच्च का हो तो जातक को इस काल में धन, यश, सम्पत्ति, आयु, वैभव की भरपूर प्राप्ति होती है। पिता से संबंध अच्छे होते हैं, स्वास्थ्य उत्तम रहता है, ईश्वर भक्ति में मन लगता है। इसके विपरीत अगर सूर्य खराब हो तो जातक के अपमान की स्थिति पैदा होती है। सिर दर्द, माइग्रेन, ज्वर पीड़ा से कष्टï पैदा होता है, पिता के साथ संबंध बिगड़ जाते हंै, जेल जाने या किसी अवैध रिश्तों में पड़कर मान हानि होने का भय बना रहता है। चोरी के झूठे आरोप में फंस सकते हैं चरित्र की गिरावट बढ़ सकती है तो सचेत रहें।
मंगल में चंद्र
मंगल में चंद्र अगर शुभ स्थिति में हो तो चन्द्र काफी अच्छे फल पाता है, मन शान्त रहता है, स्वास्थ्य भी उत्तम रहते हैं, माता को सुख मिलता है, सौन्दर्य व सम्मान की प्राप्ति होती है, तरक्की के योग बनते हैं, रोजगार में वृद्धि होती है, अशुभ चन्द्र की स्थिति में जातक की माता अस्वस्थ रहती है, ज्वर, शीत, कफ जनित रोग प्रभावी हो जाते हैं, मन में अस्थिरता बनी रहती है। जिसके कारण दिमाग विचलित ही रहता है बेवजह शक के कारण रिश्तों में दरार आ जाती है अज्ञात भय मन को डराये रखता है। यानी हानि ही हानि होती है।
अगर खराब हो मंगल तो
मंगल एक अत्यधिक क्रूर व मारक ग्रह माना जाता है यद्यपि कई बार ये खराब परिणाम देता है परंतु अगर उच्च का मंगल हो तो ये कई सुखद परिणाम भी देता है। जीवन में आइए जाने की कैसे आप खराब मंगल को अच्छा और शुभ बना सकते हैं। जहां मंगल की दशा बेहद सफल बनाती है वहीं पर मंगल खराब हो तो सब कुछ छीन भी लेती है मंगल के बहुत से शुभ व अशुभ योग हैं जो इस प्रकार हैं।
मंगल का प्रथम अशुभ योग
किसी भी कुंडली में मंगल व राहु एक साथ हो तो अंगारक योग बनता है। अक्सर ये योग बड़ी दुर्घटना का कारण भी बनता है।
इसके कारण लोगों की सर्जरी व रक्त की बीमारी भी हो जाती है।
अंगारक योग से इंसान क्रूर व निराशावादी बन जाता है।
इस योग के कारण परिवार में लड़ाई रहती है।
बचने के उपाय अंगारक योग के दुष्परिणामों से
मंगलवार का व्रत रखें।
भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा करें।
मंगल का दूसरा अशुभ योग
इसका अशुभ योग है मंगल दोष ये इंसान का व्यक्तित्त्व व रिश्तों को नाजुक बना देता है। कुंडली के चौथे, सातवें, आठवें, बारवें स्थान में मंगल हो तो मांगलिक दोष बनता है ये दोष विवाह के लिये काफी खतरनाक भी होता है।
उपाय मंगल दोष से बचने के
हनुमान जी को चोला चढ़ाएं। रात को जमीन पर ही सोयें।
तीसरा मंगल अशुभ योग
नीचस्थ मंगल दोष तीसरा अशुभ योग है जिसकी कुंडली में ये योग बनता है उनको जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
इस योग में कर्क राशि में मंगल नीच का यानी कमजोर हो जाता है। ऐसे लोगों में आत्मविश्वास और साहस की कमी होती है, इससे खून की कमी होती है, कभी-कभी कर्क राशि का नीच मंगल इंसान को डॉक्टर या सर्जन बनाता है।
नीचस्थ मंगल के उपाय
मंगल के अशुभ योग से बचने के लिये तांबा पहनना शुभ है। इस योग में गुड़ व काली मिर्च रोज खाएं।
मंगल का चौथा अशुभ योग
मंगल का सबसे खतरनाक योग है शनि-मंगल यानी अग्नि योग इस योग से जातक के जीवन में जानलेवा घटनाएं घटती हैं।
ज्योतिष में शनि को हवा और मंगल को अग्नि कहा गया है। जिनकी कुंडली में शनि मंगल (अग्नि योग) होता है उन्हें हथियार, हवाई हादसों व बड़ी दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए। हालांकि ये योग कभी-कभी बड़ी कामयाबी भी देता है।
शनि मंगल (अग्नि योग) से बचने के उपाय
शनि मंगल (अग्नि योग) दोष के प्रभाव को कम करने के लिये रोज सुबह माता-पिता के पैर छुएं।
हर मंगलवार व शनिवार को सुंदर कांड का पाठ करें।
मंगल के शुभ योग भी होते हैं
मंगल का पहला शुभ योग है
मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है। लक्ष्मी योग पहला शुभ योग है। चन्द्रमा व मंगल के संयोग से लक्ष्मी योग बनता है। यह योग इंसान को धनवान बनाता है जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग है उनको नियमित दान करना चाहिए।
मंगल का दूसरा शुभ योग
मंगल से बनने वाले पंच महापुरुष योग को रुचक योग कहते हैं। जब मंगल मजबूत स्थिति से मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो रुचक योग बनता है।
यह योग इंसान को राज, भू, स्वामी, सेनाध्यक्ष प्रशासक जैसे बड़े पद दिलाता है।
इस योग के लोगों को गरीबों की मदद करनी चाहिए।
मंगल के मंत्र व दान
अशुभ ग्रह हो या शुभ उपचार एक ही है मंत्र जाप करना मंगल को खुश व शान्त करने के प्रमुख मंत्र हैं।
मंगल वैदिक मंत्र
‘ऊं अग्निमूर्घादिव: ककुत्पति: पृथित्यअयम। अपा रेता सिजिन्नत्रवति’
मंगल के तांत्रिक मंत्र
ऊं हां हस: खं ख:
ऊं हूं श्रीं मंगलाय नम:
ऊं क्रां क्रीं क्रौ स: भोमाय नम:
मंगल नाम मंत्र
ऊं अं अंगारकाय नम:
ऊं भौं भौमाय नम:
मंगल गायत्री मंत्र
‘ऊं श्रिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि तन्नो भौम: प्रचोदयात्ï।’
मंगल का दान
लाल रंग की चीजें जैसे लाल कपड़ा, लाल दाल, लाल चंदन, शहद, केसर, गुड़ लाल मिठाई, का दान मंगल के दिन किसी ब्राह्मïण को या मंगल की मूर्ति के सामने दान करें मंगल का व्रत करें हर मंगलवार को।
