Hindi Katha: एक समय की बात है, महान् तेजस्वी मुनिवर पराशर तीर्थ यात्रा पर निकले हुए थे। घूमते हुए वे यमुना के पावन तट पर आए और एक मछुए से नदी के उस पार पहुँचाने के लिए कहा। मछुआ उस समय भोजन कर रहा था। उसने अपनी पुत्री मत्स्यगंधा को मुनि को नदी पार पहुँचाने की आज्ञा दी।
मत्स्यगंधा मुनि को नौका से नदी पार कराने लगी। तभी एकाएक मुनि पराशर की दृष्टि मत्स्यगंधा के सुंदर मुख पर पड़ी तो दैववश उनके मन में काम जाग उठा। मुनि ने मत्स्यगंधा का हाथ पकड़ लिया। मत्स्यगंधा ने विचार किया – ‘यदि मैंने मुनि की इच्छा के विरुद्ध कुछ कार्य किया तो ये मुझे शाप दे सकते हैं।’
अतः उसने चतुराई से कहा – ” हे मुनि ! मेरे शरीर से तो मछली की दुर्गन्ध निकला करती है। मुझे देखकर आपके मन में यह काम – भाव कैसे उत्पन्न हो गया ?”
“मुनि चुप रहे। तब मत्स्यगंधा ने कहा ‘मुनिवर ! मैं दुर्गन्धा हूँ। दोनों समान रूप वाले हों, तभी संयोग होने पर सुख मिलता है । “
पराशर जी ने अपने तपोबल से मत्स्यगंधा को कस्तूरी की सुगंधवाली बना दिया और उसका नाम सत्यवती रख दिया। जब सत्यवती ने यह कहकर बचना चाहा कि ‘ अभी दिन है’ तो मुनि ने अपने पुण्य के प्रभाव से वहाँ कोहरा उत्पन्न कर दिया, जिससे तट पर अँधेरा छा गया।
तब सत्यवती ने कोमल वाणी में प्रार्थना की ‘विप्रवर! मैं कुँवारी कन्या”हूँ। यदि आपके सम्पर्क से मैं माँ बन गई तो मेरा जीवन नष्ट हो जाएगा।
पराशर जी बोले – “ प्रिय ! मेरा प्रिय कार्य करने पर भी तुम कन्या ही बनी आप रहोगी। तुम्हें और भी जो इच्छा हो, वह वर माँग लो।” सत्यवती बोली ऐसी कृपा कीजिए, जिससे जगत् में मेरे माता-पिता इस रहस्य को न जान सकें। मेरा कौमार्य भंग न होने पाए। मेरी यह सुगंध सदा बनी रहे। मैं सदा नवयुवती बनी रहूँ और आप ही के समान मेरे एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हो । ‘
पराशर जी ने उसकी सभी इच्छाएँ पूरी कर दीं। फिर वे अपनी इच्छा पूरी करके चले गए। समयानुसार सत्यवती ने यमुना में विकसित हुए एक छोटे-से द्वीप पर वेद व्यास को जन्म दिया। श्याम वर्ण होने के कारण उनका नाम कृष्ण रखा गया तथा द्वीप पर जन्म लेने के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा।
जन्म लेते ही व्यासजी बड़े हो गए और सत्यवती से बोले ” माता ! मैं अपने जन्म के उद्देश्य को सार्थक करने के लिए तपस्या करने जाता हूँ। आप कठिन परिस्थिति में जब भी मेरा स्मरण करेंगी, मैं उसी क्षण आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा।”
व्यास जी उत्तम तपस्या में लग गए और द्वापर युग के अंतिम चरण में वेदों का सम्पादन करने में जुट गए । वेदों का विस्तार करने से उनका एक प्रसिद्ध नाम ‘वेद व्यास’ पड़ गया।
