ये बहुत ही जाना-पहचाना सच है कि किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों पर हमारे चरित्र का निर्माण दोनों ही सतरों पर होता है, मानसिक भी और शारीरिक भी। बड़े पैमाने पर इन बदलावों के चलते किशोरावस्था का यह पड़ाव बच्चों के लिए तो संवेदनशील साबित होता ही है, पेरेंट्स भी इस समय एक बहुत ही संवेदनशील अवस्था से गुज़र रहे होते हैं। आशंकाओं और चिंताओं से भरा ये समय उनके लिए भी बहुत कठिन साबित होता है। ऐसे में यह बड़ी ही सामान्य सी बात है कि सभी अभिभावकों के ज़ेहन में बहुत सारे प्रश्न उठ रहे होते हैं। वे कई आशंकाओं से जूझते रहते हैं।
 

 

बढ़ते बच्चों के साथ जुड़ी इन चिंताओं का सीधा संबंध उनके आपसी संबंधों पर भी पड़ता है। यहां तक कि अधिकांश माता-पिता अपने युवा होते बच्चों को अपनी पूरी जि़ंदगी का सबसे संवेदनशील और कठिन समय मानते हैं। बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करना, उनकी चिंताओं और उत्सुकताओं को समझना इस समय पर मिलने वाली सबसे आम सलाह है। इसके उलट असल में इस स्थिति का सामना करने के लिए कोई सटीक नियम या गाइड है ही नहीं। यहां हम सिर्फ कुछ बातों का ध्यान भर ही रख सकते हैं। 

 

 
 
किशोर बच्चों से संवाद बनाए रखिए
 
एक किशोर होते बच्चे के साथ संबंधों में सही संतुलन बनाए रखने के लिए ये बहुत आवश्यक है कि आप बजाय उन पर अपने नियम थोपने या उन पर पूरी तरह से अपना कंट्रोल बनाए रखने के उनके साथ हर विषय पर संवाद बनाए रखिए। इसमें किसी भी स्तर पर दूरी न आने दें। आपकी इस दिशा में की गई कोशिश ही आगे चलकर आप दोनों के संबंधों का आधार बनेगी। ज़ाहिर है, सभी चाहेंगे कि ये संबंध आपसी समझदारी पर बनें।
 
सहयोगी का विश्वास बनाए रखिए
 
हम हर जगह सामान्य रूप से इस बात को देखते ही हैं कि किशोर होते बच्चे अपने माता-पिता से हर बात शेयर नहीं करते, बल्कि ज़्यादातर बातें छिपा ही लेते हैं। यह बहुत ही ज़रूरी है कि आप उनके व्यवहार या हर गलती के प्रति कठोर या तानाशाह होने या अनुशासन के नाम पर बार-बार दंड देने की गलती न करें। उनमें ये विश्वास पैदा होना ज़्यादा जरूरी है कि वे आप पर विश्वास कर सकते हैं और आप उनकी बातें सुनेंगे-समझेंगे। इसी विश्वास के आधार पर यह स्थिति बन पाती है कि वे आपसे परेशान होने या चिढऩे की बजाय इस बात पर भरोसा कर पाएं कि स्थिति चाहे कुछ भी हो, आप उनका साथ निभाएंगे।
 
समझदारी भरी साझेदारी करें
यह बात तो बहुत ही अच्छी साबित हो सकती है कि उन्हें हर कदम पर सलाह देने की बजाय खुद उन्हें ही फैसला लेने में भागीदारी करने दें। इससे वे स्थिति को और ज्यादा बेहतर ढंग से समझेंगे ही, उनमें अपने हर काम और फैसले के प्रति जवाबदेही की भावना पैदा होगी।
 
 
उपदेशक नहीं, उदाहरण बनिए
इस मामले में टीनएजर्स बहुत ही संवेदनशील होते हैं कि उनके आस-पास घट क्या रहा है। उन्हें हर अनुशासन के लिए सिर्फ उपदेश दिया जाता है या आप स्वयं भी उन बातों व नियमों का पालन करते हैं। ज्यादातर वे आपके उन्हीं पदचिन्हों पर चलते हैं, जैसा आप अपने सामान्य जीवन में करते हैं। अपने जीवनसाथी,सहयोगियों, नौकरों या अपने से बड़ों के साथ आपका व्यवहार जैसा भी होता है, उसी की झलक अपने बच्चे में देखने में को तैयार रहिए।
 
हालात को समझिए-स्वीकारिए
बतौर अभिभावक आपके लिए ये बहुत जरूरी हो जाता है कि आप बच्चों को फैसला लेने, गलती करने और उन गलतियों से सीखने के लिए पर्याप्त समय दें। उन्हें एक ही झटके में सब-कुछ सिखाने की कोशिश न करें। टीनएज बच्चों को अपनी गलतियों से ही सीखने दें, ताकि वे जानें कि जीवन में सब-कुछ मनचाहा नहीं होता, बल्कि बहुत सारी परिस्थितियों में समझौते भी करने पड़ते हैं।
 
बच्चों की भी सुनें
ये एक बहुत बड़ी गलती होती है, जो ज़्यादातर अभिभावक करते हैं कि बच्चों के साथ उनके संवाद एकतरफा होते हैं। वे बच्चों का नज़रिया या उनकी बात समझने की बजाय सिर्फ अपनी बात कहकर पूरा संवाद ही समाप्त कर देते हैं। बच्चों के साथ हंसी-खुशी भरे पलों को बार-बार दोहराइए। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि हर बार ज़रूरी नहीं कि आप ही बच्चों को सब-कुछ सीखाते रहें। आप भी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।