vikram aur betaal ki hindi story
vikram aur betaal

Vikram or Betaal Story in Hindi : राजा विक्रम ने हमेशा की तरह, पेड़ से लटकते शव को उतारकर कंधे पर लादा व चल दिया जब वह चुपचाप चल रहा था, तो बेताल एक और कहानी सुनाने लगा।

एक बहुत ही भला व दयालु राजा था। वह व्यक्तिगत रूप से प्रजा का दुःख-दर्द सुनता व उनकी शिकायतें दूर करता।

एक दिन, एक वृद्ध अपने दो अंधे पुत्रों के साथ राजा के पास आया। उसने राजा को सादर प्रणाम किया व बोला :- “महाराज! व्यापार में अचानक हानि होने से मैं काफी निर्धनता में जीवन बिता रहा हूं। मुझे अपने ऋण चुकाने तथा नया व्यवसाय आरंभ करने के लिए एक हजार स्वर्णमुद्राओं की जरूरत है। उसने राजा से विनती की कि वे उसे यह धनराशि उधार दे दें, वह छः माह में ऋण अदा कर देगा। उसने ऋण की जमानत के तौर पर अपने दो नेत्रहीन पुत्रों को महल में छोड़ने का प्रस्ताव रखा।

राजा धनराशि देने के लिए मान गए, किंतु अविश्वास से पूछा :- “तुम्हारे अंधे पुत्र मेरी क्या सेवा कर पाएंगे?”

बूढ़े ने उत्तर दिया :- “महाराज! मेरा बड़ा पुत्र घोड़ों का पारखी है तथा छोटा हर प्रकार के रत्नों की परख कर सकता है।”

“ये तो बड़ी रोचक बात है। राजा ने कहा।”

फिर उत्सुकता से पूछा :- “किंतु वे यह सब कैसे कर सकते हैं?” वृद्ध ने गर्व से कहा :- “मेरे दोनों पुत्रों के पास सूंघने व छूने की अद्भुत शक्ति है। यदि आपको उनकी परख में कहीं भी कमी दिखे तो आप उनका सिर कटवा सकते हैं या मेरे लौटने पर, मुझे सजा दे सकते हैं।”

राजा ने हामी भर दी व उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राए दिलवा दीं। दोनों युवक राजा की सेवा में रहने लगे।

कुछ दिन बाद दरबार में घोड़ों का एक व्यापारी, घोड़े बेचने आया। उसके पास अरबी नस्ल का ऊंचा-तगड़ा घोड़ा था। “यह घोड़ा बड़ा वफादार है और हवा से बातें करता है।” उस व्यापारी ने राजा के सामने दावा किया व उन्हें घोड़ा खरीदने के लिए उकसाने लगा।

राजा ने तत्काल घोड़ों के पारखी अंधे युवक को बुलवा भेजा। उन्होंने कहा :- “जरा बताओ कि क्या इस घोड़े पर पैसा लगाना फायदेमंद रहेगा?”

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अंधे लड़के ने घोड़े को छूकर व सूंघकर परख की। वहां उपस्थित सभी व्यक्ति आश्चर्यचकित थे। घोड़े का व्यापारी क्रोध में आकर बोला, “ये क्या मज़ाक है। एक अंधा मेरे घोड़े की परख कर रहा है। बेहतर होगा कि आप मेरा समय नष्ट न करें।”

अंधा युवक राजा से बोला – “महाराज! मेरे हिसाब से आपको यह घोड़ा नहीं खरीदना चाहिए। यदि आप इसकी सवारी करेंगे, तो यह आपको चोट पहुंचा सकता है।”

“क्या बकवास है।” घोड़े के व्यापारी ने अपना आपा खो दिया।

बुद्धिमान राजा ने अपने एक सेनापति को घोड़े की सवारी करने का आदेश दिया।

ज्यों ही वह सेनापति घोड़े पर चढ़ा। घोड़े ने उसे पलट कर जमीन पर गिरा दिया। सेनापति बुरी तरह घायल हो गया।

व्यापारी अपने घोड़े के बर्ताव से शर्मिंदा था। वह एक भी शब्द कहे बिना, घोड़े को लेकर, दरबार से निकल गया।

राजा व दरबारी उस अंधे युवक की परख देखकर दंग रह गए।

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दो दिन बाद, रत्नों का एक व्यापारी, कीमती रत्न-जवाहरात की थैली के साथ राजा के पास आया। राजा ने एक चमचमाता हीरे का टुकड़ा उठा लिया व दूसरे अंधे युवक को देकर बोले :- “जरा परखकर बताओ कि क्या इसे खरीदना फायदेमंद होगा?”

उस लड़के ने हीरे को हाथों से थामा। उसे कई बार रगड़ कर राजा से बोला :- “महाराज! यह एक बेशकीमती हीरा है, किंतु यह पहनने वाले पर दुर्भाग्य का साया ले आता है। यह अपशकुनी हीरा है।”

राजा ने हैरानी से पूछा। :- “अच्छा क्या ऐसा है ?”

“जी महाराज, यह पहले ही जौहरी के परिवार के दो सदस्यों के प्राण ले चुका है।”

जौहरी तो जैसे वहीं जड़ हो गया। वह राजा से प्राणों की भीख मांगने लगा। राजा ने उस अंधे युवक को, इतनी अच्छी परख के लिए धन्यवाद दिया।

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इस घटना के बाद कुछ माह बीत गए। एक दिन, उन दोनों भाइयों का पिता लौट आया। उसे अपने पुत्रों से मिलकर बेहद प्रसन्नता हुई। उसने राजा को, उसके पुत्रों की देखभाल करने के लिए धन्यवाद दिया। वादे के अनुसार, उसने एक हजार स्वर्ण मुद्राएं भी लौटा दीं। फिर उसने राजा से, पुत्रों को वापिस ले जाने की अनुमति मांगी।

जब जाने का समय आया, तो राजा ने वृद्ध व्यक्ति से पूछा :- “तुम इन दो हुनरमंद लड़कों के पिता हो। क्या तुम्हारे पास भी कोई ऐसा हुनर है?”

बूढ़े व्यक्ति ने कहा :- महाराज! मैं किसी व्यक्ति का अतीत बता सकता हूँ। “अच्छा, तो मेरा अतीत बताओ।” राजा ने बच्चों की-सी उत्सुकता से कहा। बूढ़े ने बिना किसी संकोच के कहा :- “महाराज! आप एक चोर के पुत्र हैं।”

राजा तो यह सुनकर सकते में आ गया। फिर उसने क्रोधित हो कर सैनिकों को आदेश दिया :- “इस बूढ़े आदमी व इसके बेटों को यहां से ले जाओ और फांसी पर चढ़ा दो।”

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बेताल ने कहानी समाप्त कर विक्रमादित्य से पूछा :- “अपनी बुद्धिमत्ता व दयालुता के लिए प्रसिद्ध राजा ने, बूढ़े व उसके बेटों को फांसी की सजा क्यों दी? जल्दी बोल, वरना तेरे सिर के टुकड़े कर दूंगा।”

राजा विक्रम ने पल-भर के लिए सोचा व उत्तर दिया :- “बेताल! वह राजा बेशक न्यायी व दयालु था, किंतु वास्तव में एक चोर का ही पुत्र था, तभी तो वह इस कड़वी सच्चाई को सह नहीं पाया। हालांकि, यहां उस वृद्ध की भी गलती है, इंसान को बोलने से पहले हमेशा सोच लेना चाहिए। किसी को इतना मुंहफट भी नहीं होना चाहिए कि किसी की भावनाएं आहत हों।”

बेताल बोला :- “राजा! तेरी परख तो बहुत अच्छी है, पर मैं वापस अपने घर चला, क्योंकि तूने चुप्पी तोड़ दी।” यह कह कर बेताल पुनः पेड़ की ओर उड़ चला।

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