Vedavati
Vedavati

Hindi Katha: सत्युग में कुशध्वज नामक एक प्रतापी राजा हुए। कुशध्वज की पत्नी का नाम मालावती था। समयानुसार उसके एक कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या महालक्ष्मी का अंश थी। उस कन्या ने जन्म लेते ही स्पष्ट स्वर में वेद मंत्रों का उच्चारण किया और स्वयं उठकर सूतिकागृह से बाहर निकल आई, इसलिए विद्वानों ने उसे वेदवती नाम दिया।

उत्पन्न होते ही वेदवती तपस्या करने के विचार से वन की ओर चल दी। वेदवती सैकड़ों वर्षों तक पुष्कर क्षेत्र में कठोर तप करती रही। लम्बे तप के बाद भी उसमें दुर्बलता नहीं आ सकी।

एक दिन उसके तप के प्रभाव से एक दिव्य आकाशवाणी हुई – “देवी ! अगले जन्म में भगवान् विष्णु तुम्हारे पति होंगे। ब्रह्मादि देवता भी जिनके दर्शन कठिनता से प्राप्त कर पाते हैं, तुम्हें उन्हीं परम प्रभु की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा।” आकाशवाणी सुनने के बाद वेदवती हिमालय पर्वत पर गई और वहाँ उसने पहले से भी अधिक कठिन तपस्या करनी आरम्भ कर दी।

एक दिन भ्रमण करते हुए दैत्यराज रावण उस स्थान पर आ पहुँचा। वेदवती ने अतिथि-धर्म के अनुसार परम स्वादिष्ट फल और शीतल जल से उसका स्वागत किया। किंतु दैत्यराज रावण स्वभाव से ही नीच था । वेदवती को देखकर वह कामयुक्त शब्दों में बोला – ” हे सुंदरी ! कौन हो तुम? इस निर्जन स्थान पर क्यों अपना यौवन बर्बाद कर रही हो? तुम्हारा रूप सूर्य के तेज को भी चुनौती दे रहा है। अवश्य ही तुम देवलोक की कोई अप्सरा हो । सुंदरी ! तुम्हें देखते ही मेरे हृदय में प्रेम का अंकुर फूट गया है। मैं तुमसे विवाह करके तुम्हें अपनी पटरानी बनाना चाहता हूँ । मेरे प्रेम को स्वीकार करो, सुंदरी । “

यह कहकर जब रावण ने वेदवती को स्पर्श किया तो वह क्रोधित होते हुए बोली – ” दुष्ट ! तूने स्पर्श करके मुझे अपवित्र कर दिया। एक साध्वी स्त्री के प्रति कामयुक्त शब्दों का प्रयोग करके तूने स्वयं ही अपने नाश का प्रबंध कर लिया है। मैं तुझे शाप देती हूँ रावण कि अगले जन्म में मैं ही तेरे नाश का कारण बनूँ।’

तत्पश्चात् वेदवती ने योग द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया। वही देवी वेदवती अगले जन्म में जनक की कन्या हुई और उस देवी का नाम सीता पड़ा। वेदवती महान् तपस्विनी थी । पूर्वजन्म की तपस्या के प्रभाव से भगवान् विष्णु के अंशावतार श्रीराम उनके पति हुए ।

वनवास के समय श्रीराम की आज्ञा से अग्निदेव सीता को अपने साथ ले गए और उनकी छाया को उनके पास छोड़ गए। रावण ने सीता की इसी छाया का हरण किया था। रावण की मृत्यु के बाद सीता श्रीराम के पास लौट आईं और उनकी छाया सीता पुष्कर में कठोर तपस्या करने लगी । छाया सीता ही द्वापर काल में द्रुपद के घर द्रौपदी के नाम से उत्पन्न हुई। लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न वेदवती मृत्यु के बाद लक्ष्मी के विग्रह में विलीन हो गई थी।