Emotional Story: वॉट्सएप पर मेसेज का स्वर उभरा तो,संदीपन शेव बीच में ही छोड़कर फ़ोन की तरफ़ लपका जैसे,प्रतीक्षा ही कर रहा हो.मेसेज उसकी बहन शालू का था,
“कीया के जन्म दिन की याद दिला रही हूँ. तुम्हें आना है”
संदीपन के चेहरे पर मुस्कान बिछ गई… उसकी प्यारी बहन थी शालू और कीया?शालू को दिया हुआ उसका अनमोल उपहार.
भुज भूकम्प त्रासदी में जहाँ कई लोग बेघर हुए थे वहीं एक घर आबाद भी हुआ था.सैकड़ों बालक अनाथ हुए थे वहीं एक बच्ची को माता-पिता की गोद भी मिली थी. संदीपन ने अपनी प्यारी बहन की इच्छापूर्ति की थी.
शालू और दिनेश के स्वभाव में धरती आसमान का अंतर था.. फिर भी दाम्पत्य की गाड़ी खींचे जा रहे थे.शालिनी अद्वितीय सुंदर तो ही थी कोमलांगी,मृदु स्वभावी और मितभाषी भी थी,तो,दिनेश कुरूपता की सीमा तक साधारण,कठोरमाना और क्रोधी स्वभाव का. उसने कुछ नियम बना रखे थे जिनका उल्लंघन वो पसंद नहीं करता था.दोनों के विवाह को दस वर्ष हो गए थे,पर संतान सुख से वंचित थे.दिनेश इस ओर से उदासीन था जब कि शालू ने इस अभाव को जीवन का रोग बना लिया था.वो बच्चा गोद लेना चाहती थी,लेकिन,दिनेशको मात्र अपने कुल,अपने खून पर विश्वास था.वो बच्चों के पालनपोषण और विकास में वातावरण से ज़्यादा अनुवांशिकी को महत्व देता था.रुआब से कहता
“मेरे पिता आई ए एस थे,और मैं पुलिस अधीक्षक हूँ.मेरी अपनी संतान होगी तो वंशानुगित गौरव परंपरा चलती रहेगी. ग़ैर की संतान पर मुझे भरोसा नहीं है”
शालू मन ही मन सोचती,
” तुम्हारे कुल में डाइबिटीज़ रोग भी तो अनुवांशिक है. तुम्हारे दादा,परदादा,डाइबिटीज़ से पीड़ित थे. तुम्हारे पिता का भी दुर्घटना में निधन न हुआ होता तो,वो भी शायद डाइबिटीज़ से ही मरे होते..” पर शब्द होंठों पर ही अटक जाते थे.
शालू तीन भाईयों की अकेली बहन थी.बड़े तीन भाईयों के दो दो संतानें थीं,किसी से एक बच्चा माँग लेने का प्रश्न ही नहीं उठता था. इधर दिनेश भी अकेली संतान था.
संदीपन ,शालू से बहुत छोटा था.उसे चाहता भी बहुत था. बहन की हिमायत में उसने कई बार दिनेश से याचना की थी कि,अनाथालय से एक बच्चा लेकर शालू की गोद में डाल दे. विश्वास भी दिलाया था कि
“बच्चे की पहले डॉक्टरी जाँच करा लेंगे कि वो पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं,फिर आप जिस प्रकार उसका पालन पोषण करेंगे बच्चा ,वैसा ही बनेगा.”
लेकिन दिनेश अपनी ही बात पर अड़ा रहता,
“ पूछते क्यों हो मुझ से. जाकर ले आओ किसी गंदी नाली का कीड़ा. खिला पिला कर बड़ा करना.. पर बनेगा वो अपराधी ही.फिर सिर पटक कर रोना..वर्षों से हमारी कुल की बनी बनायी मर्यादा के नाम को मिट्टी में मिलाकर ख़ुश होना”
शालू तो क्या,संदीपन भी ऐसी कड़वी बातें सुनकर चुप्पी साध लेता था.
उन्हीं दिनों भुज ,भूकंप की विभीषिका से हिल उठा था.चारों और चीख पुकार मची थी.एक वार्ड में वो बच्चे बिलख रहे थे जिन्हें, चुप कराने वाले स्वयं मौन के अंधेरों में खो गए थे.संदीपन की ड्यूटी उसी वार्ड में थी. बरबस ही उसके मन में विचार आया ,अगर इन बच्चों में से एक शालू की गोद में पहुँच जाय तो?””
पर ये इतना सहज नहीं था. वो जानता था गैस त्रासदी के समय जन्मे बच्चे को,दिनेश कभी स्वीकार नहीं करेगा.अगर सहमत हो भी जाय और ईश्वर न करे भविष्य में बच्चे पर इस गैस त्रासदी का कोई लक्षण प्रगट हो जायँ तो क्या दिनेश शालू को चैन से जीने देगा?
बहन के अपमान और उपेक्षा के विषय में सोच कर संदीपन ने एक बार तो पीछे हट जाने का मन बना लिया ,लेकिन दूसरे ही पल उसे शालू की खोई खोई आँखें प्रेरित करने लगीं थीं.
रात का अंधेरा गहराते ही,सबकी दृष्टि से बचता बचाता,संदीपन अस्पताल के वार्ड में पहुँच गया.उसने झुक कर एक लाइन में पालने में लेटे बच्चों को देखा फिर, एक प्यारी सी बच्ची को उठाकर अपने ओवरकोट में छिपाता हुआ अपने कमरे में पहुँच गया.उसने बच्ची को नया फ्रॉक पहनाया फिर अपने गले से चेन उतारकर बच्ची के गले में पहनायी और,तेजी से अपनी कार चलाता हुआ सतना पहुंच गया..

संदीपन जब शालू के बंगले का गेट खोल रहा था,ऊषा की रश्मियाँ प्रगट हो रही थीं. रात की ड्यूटी वाला चौकीदार अपने क्वार्टर में जा चुका था.अचानक बच्ची जाग कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी तो,संदीपन बुरी तरह घबरा गया. उसने बच्ची को सीढी पर रखा और भागता हुआ कार में जाकर बैठ गया.
शोर सुनकर शालू और दिनेश बाहर आ गए. बच्ची पर दृष्टि पड़ते ही कुछ देर तक दोनों पति पत्नी बहस करते रहे,तब तक संदीपन ने कार स्टार्ट कर दी और वापस अस्पताल के उसी वार्ड में लौट आया जहाँ,अबोध बालक अपनी मौन भाषा में फरियाद करते चुपचाप पड़े थे.दिनरात सबकी सेवा करते हुए संदीपन वैसे तो ख़ुद को काफ़ी हल्का महसूस करता था लेकिन, शालू और बच्ची के विषय में सोचते ही मन दुविधाग्रस्त हो उठता था क्योंकि वो,दिनेश की तरफ़ से पूरी तरह निश्चिंत नहीं था.
समय धीरे धीरे बीतता गया.संदीपन जब भी शालू से मिलता उसे कीया में मगन पाता.आज भी बेटी के जन्मदिन की पार्टी की तैयारी में, सिर से पाँव तक आनन्द मूर्ति बनी हुई बहन को देख कर उसने राहत की साँस ली थी.
“कीया के लिए उपहार लेने मुझे भी बाज़ार जाना है”
मित्रों परिजनों की भीड़ से घिरी शालू से संदीपन ने कहा तो सहसा,शालू गंभीर हो गई थी.उसकी आँखे नम हो गयीं,स्वर भर्रा गया,
“ कीया जैसे उपहार के बाद किसी दूसरे उपहार का मतलब ही क्या रह जाता है भैया”
“ तुम्हें कैसे पता चला”
“ मैंने ,कीया के गले में पहनी चेन पहचान ली थी”
कुछ रुक कर संदीपन ने कहा,
”एक वचन दोगी?. अपनी पारिवारिक शांति बनाये रखने के लिए फिर कभी इस बात का ज़िक्र तुम किसी से नहीं करोगी”
“वादा रहा”दोनों ने आश्वस्त दृष्टि से एक दूसरे को देखा फिर, मेहमानों के स्वागत के लिए बाहर लॉन की तरफ़ चल दिए..
पुष्प भाटिया
