Ujala
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Motivational Story: “आजकल के लोगों में  एहसान मानने की तो आदत ही ख़त्म हो चली है ,लोग सब कुछ लौटा सकते हैं पर वो समय कहाँ  से लौटायेंगे जो उन पर खर्च किया जाता है”,ह्रदय से बहुत ही संवेदनशील माधवी बड़बड़ाते हुए कह रही थी।
इतना करने के बाद भी  हाथ क्या लगता है बस बुराई भलाई किसी की परेशानी न समझने वाले लोग तो जानवर से भी गये गुजरे होते हैं ,उसने दुःख और क्रोध में पति की ओर देखा…
और आनन्द  वो तो वर्तमान से बेख़बर बस  चुपचाप खाने में मग्न था,बस होंठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान ज़रूर छाई थी ,जिस पर नज़र पड़ते ही वह और चिढ़ गयी।
वाह आज तो कचौड़ियों के साथ  बूँदी का रायता और  हलवा मज़ा आ गया अचार की कमी  तुम्हारी बड़बड़ पूरी कर रही है,” तृप्ति भरी डकार लेते हुए आनन्द ने  कहा।
क्या …अब तुम्हें मेरी तकलीफ़ में भी मज़ा आने लगा है ,कहते हुए  भरी हुई  माधवी दुःख से  लगभग रो ही पड़ी।
हक्का बक्का आनन्द उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा ,मगर उनके बीच में तीसरे की साधिकार दखलअंदाज़ी कर दी…
ये उपस्थिति थी ब्रूनो की जिसने माधवी को रोते हुए देख अपने आगे के पँजे उसके सीने पर टिका दिये और गुर्राहट के साथ भौंकते हुए आनन्द को उसके पास से ही हटने पर मजबूर कर दिया।
माधवी भी ब्रूनो के अधिकारबोध पर मुग्ध होकर उसे प्रेम से सहलाने लगी।
और थोड़ी देर में उसका भरा हुआ मन और खाली आँखे जैसे बीते वक्त की कहानी हो गयी।
देखा मैंने कहा था न …कि पालतू जानवर हमें ख़ुश रहना सिखा देते हैं ,बुढ़ापे में बच्चा बना देते हैं अपनी शरारतों से ,आनन्द ने फिर पत्नी को चिढ़ाया।
“आप ही ख़िलाफ़ थे पालने के पहले और अब आप ही का ये सबसे लाड़ला बन गया है”,माधवी ने नहले पर दहला लगाया…तब तक ब्रूनो ने मासूम चेहरा बनाते हुए आनन्द से हलवे की फरमाइश को धीरे धीरे मनाना शुरू किया….
आनन्द उसे एक चम्मच हलवा देना ही चाहते थे कि रोहन ने जोर से मना करते हुए कहा..
न पापा जानते हैं न आप कि मीठा इनका दुश्मन होता होता है,फिर  ख़ुद भी भावुक होकर सवाल करने लगा।
भगवान को जब इन्हें कुछ खाने ही नहीं देना होता है ,तो इन्हें बनाते क्यों  हैं ,एक तो इतनी कम जिन्दगी देते है ,इन्हें कि लगता है कुछ हो गया तो रहेंगे कैसे?
रोहन ऐसी बात मत कहो ,उसके  लिये अच्छी अच्छी बातें करो,आनन्द ने उसे टोकते हुए कहा ..
देखा पापा आखिर ब्रूनो ने अपने सबसे बड़े विरोधी को अपने दल में शामिल कर ही लिया…
और आनन्द इस बात पर मुस्कुराहट लिए ब्रूनो के साथ नीचे उतरने लगे।
थोड़ी देर में “मम्मी-मम्मी ! ज़रा ब्रूनो  को  देखिये ”  रोहन की आवाज़ आई…
क्यों ?
“क्या हुआ उसे…” माधवी ने ,चिंतित स्वर में हड़बड़ा कर कहा…
“कुछ हुआ नहीं है ,बस आप उसकी 
ख़ुशी देखिये दूर से,वो  ज़िद्दी  बच्चे  सा उसका दुपट्टा घसीटते हुए बोला।
हाँ बाबा !
हाथ तो धो लेने दे उसने पीछा छुड़ाने की गरज़ से कहा…
यूँ तो शाम का रँग  धीरे धीरे सुरमई से स्याही की तरफ़ बढ़ रहा  था,और  लैम्प पोस्ट की रोशनी बिना प्रयास और रोशन होती जा रही थी अँधेरो के साये पाकर ।
सामने खड़ा ऊपर से रोशनी से नहाया  घनेरा गूलर  पेड़ के पत्तों का हरा रँग भी अजीब ही कैफ़ियत लिए था ।
नीचे खड़े मासूम से वजूद को  उसकी आँखें अँधेरे में भी पहचानने का दम रखतीं थीं।
वह  रोहन के जल्दी मचाने की ज़िद पर नल के नीचे तेजी से  हाथों को धोकर थोड़ा तनाव में आते हुए तौलिया से पोंछने लगी
पर रोहन के जल्दबाजी मचाने से यूँ ही आकर देखने लगी, खिड़की से नीचे झाँकते ही उसका  दिल धक्क से रह गया ..
ब्रूनो,जो  थोड़ी गेट पर ऐसे बैठा था ,जैसे वो उसके पति आनन्द के रोज़ घर आने पर बैठा करता था।
अचानक   उसके पति के हाथ से  अपना लीश  छुड़ाकर, मुख्यद्वार से निकलकर अपने सामने खड़े  युवा लड़के साहिल  के पास जा कर खड़ा हो गया।

स्कूटी से उतरकर वह भी उसे  पुचकारने लगा,उस को  वह अपने पूरे समर्पण से प्रेम कर रहा था।
पूँछ झुकी हुई कान नीचे और शरीर में अतिरिक्त लचीलेपन के साथ ,आवाज़  को कई प्रकार से बदल  बदलकर  ख़ुशी का इज़हार किया जा रहा था।
आपको पता है मम्मी ,जब कुत्ते किसी से प्रेम चाहते हैं तो अपनी आंखों के सफ़ेद हिस्से को दिखाते हैं,रोहन ने फुसफुसाहट भरे  स्वर में  रहस्योद्घाटन किया
माधवी का ह्रदय ईर्ष्या से भर उठा ,न जाने क्यों उसे दो साल पहले की वह गरमियों की शाम याद आ गयी ।
जब यह सुनहरे  और भूरे फ़र वाला जीव बिना आनन्द की मर्ज़ी के रोहन की ज़िद पर उनके घर का हिस्सा बन गया था।
उसका सुनहरा शहद सा रँग ,हल्का  भूरा फ़र और गोमेद सी  चमकीली आँखे देखकर जाना कि वो कुछ अलग सा है।
छोटा सा पामेरियन जाति का यह जीव जो अनजान को भी मोह ले अचानक सबकी नजरों का केन्द्रबिन्दु बन गया था।
क्योंकि ब्रूनो ने एक वर्ष से भी कम उम्र में दो बार विस्थापन का दर्द झेला था।कई हफ़्ते वह स्कूटी वाले युवक को देख उदास होता रहा।
फिर उसका मन  तबसे धीरे धीरे रोहन को अपनाने लगा,जब उसने गली को आवारा कुत्तों से उसे बचाया था।
किसी के घर आने पर ख़ूब प्यार करना,इन्तज़ार के लम्हों को घर आने पर उछलकूद से खर्च करना और  अधिकार पूर्वक गोद में सिर रख देना ,मानों उसी का एकाधिकार हो सबपर…उसे पूरा विश्वास था कि वो अपने पूर्व मालिक को  जल्दी ही भूल जाएगा
पर  उसे कभी कभी भी  साहिल के आने पर असुरक्षित महसूस होने लगा…
रोहन! दरवाज़े पर खड़े होकरउसने आदेशात्मक स्वर में कहा…अपने  दोस्त को मना कर दो यहाँ आने से
क्यों मम्मी जलन हो रही है,उसने हँसते हुए कहा और माधवी का चेहरा अपनी ओर किया तो फिर आँखों को भरा हुआ पाया.
डोन्ट वरी …मम्मी ये कहीं नहीं जायेगा आप देखना घर ही आयेगा सीधे…
क्या ये  अपना पहला मालिक भूल नहीं सकता ,उसने ईर्ष्यालु स्वर में कहा…
“मालिक नहीं माधवी साथी  कहो,और मेरी न मानो तो उसी से कुछ सीखो..”आनन्द ने दबे स्वर में कहा.
ये नया मालिक ,पुराना मालिक हमारी तुम्हारी सोच का फेर है,
ये प्रेम बस देना जानता है ,इसे साहिल  का साथ उसका प्रेम याद है और उसका यहाँ छोड़कर जाना भूल चुका है ,बस उन्मुक्त  प्रेम दे रहा है ,बेफ़िक्री से देखो लौट आयेगा अभी।
साहिल के वापस  जाते ही ब्रूनो अपनी लीश के साथ गेट पर खड़ा था,और माधवी के मन मे चल रहे मन्थन को विराम लग चुका था।
क्रोध का विष  छँट चुका था ,और शांति  का अमृत उसके जले हुए मन पर मानो रुई के फाहे रख रहा था।
ये मूक जीव कितनी जल्दी ,माफ़ करना सीख लेते हैं ,शायद इनकी जगह मनुष्य जीवन का    कोई और  रिश्ता होता तो शिक़वा शिक़ायत ,आलोचना का दौर बह निकलता.
इन्हें वापसी नहीं चाहिये किसी से भी और कोई इनके लिये कुछ करे तो कृतज्ञता की भाषा सुस्पष्टता से बोलते हैं ।
मम्मी अब क्या उसे पनिशमेंट में रखे हैं ,अंदर नहीं आने देंगी रोहन के शब्दों ने उसकी तन्द्रा भँग की तो उसने
“आओ ब्रूनो चलो अन्दर चलें उसने तसल्ली से कहा “
लो बेटा तुम्हारी मम्मी के दिल पर तो ब्रूनो का कब्ज़ा हो गया अब हम लोग किधर जायेंगे ,आनन्द ने चिढ़ाते हुए कहा…
आप भी न ..वो खीझे  स्वर में बोली और पूरे घर में हँसी की आवाज़ तेज़ हो गयी।
अब ब्रूनो पर तुम्हारा महीनों का एकाधिकार पक्का ,तुम   भी न जलन की  मारी लगती हो कभी कभी ,आनन्द ने फिर चुटकी ली।
नहीं जी मैं बस ये सोचती हूँ कि  ये अभी तक उन लोगों को भुला क्यों  नहीं पाया ऐसा क्या दिया उन्होंने जो हमनें नहीं  दिया छोड़कर ऊपर से चले गये इधर,इसीलिये कुत्ते शब्द को गाली कहा गया  होगा।
गलत  बात ,माधवी….  आज जब मैं सुबह और शाम की बातों के सिरे जोड़ रहा था ,तो लग रहा था कि  कुत्तों का  छोटा जीवन बड़ा शानदार होता है।
उन्हें हमारे जैसे बड़े और दुःखी जीवन की कोई ज़रूरत नहीं,जो पूरे समर्पण भाव से प्रेम करता है ,उसके हिस्से दुःख और दुत्कार आती है,पर वह सबसे ऊपर प्रेम को रखता है।
देखो ,साहिल के द्वारा, उसे  छोड़े जाने को भूल उसने सिर्फ़ देखभाल और प्रेम  की बात याद रखी ।
कुत्ता होना वफ़ादार होना भी है ,ये अपने वर्तमान में कितना ख़ुश रहता है,छोटी छोटी खुशियों में जीना ,छोटी यात्राओं में भी खुशी से भर जाना  कोई इनसे सीखे…
इनके हिस्से में  छोड़ दिये जाने के दर्द लिखे होते हैं,प्रेम का बर्तन भले इनके हिस्से छोटा सा आये  फिर भी ये ,कृतज्ञ  रहना,प्रेम   को लौटाना नहीं छोड़ते।
अचानक माधवी का उदास मन जैसे शांति की सफ़ेद रोशनी से भर उठा …
मालिक होने का दंभ,कुछ करने के बाद कर्ता भाव का दुःख कहीं पीछे छूट गया।
उसने अपने  हाथों में कुछ बिस्किट लेकर ब्रूनो को दुलराया ,उसकी स्थिति पर ख़ुद को रखकर देखा ।बीता वक़्त,ब्रूनो और अन्य बातों के घेरे एक चक्र सा बनाने लगे।
और धीरे धीरे काले धुएँ का घेरा कब खत्म हो गया,सामने था तो ब्रूनो की मासूम आँखे ,