Story in Hindi: हमारा मन भी अजीब है एक जगह स्थिर रहता ही नहीं है। इसके अंदर उठने वाली तरंगें भी समंदर की ढेर सारे लहरों में उतार चढ़ाव करते रहती है।इस चंचल मन के अंदर अगर कोई गांठ लग जाए, जब तक ना खुले तब तक सामने वाले को गलतफहमी ही लगती है ।यही सोच कर सुनंदा हैरान परेशान उम्र के इस पराव में, उसका मन कर रहा था कब सुनैना के ससुराल जाए और अपने अंदर बरसों से दवाई इस गांठ को खोलकर रख दे।यही सब सोच रही थी बिना अपने बच्चों को बताएं निकल जाऊँ। लेकिन दिल गबाह नहीं दे रहा परिवार में बच्चा के सिवा है ही मेरा कौन ।यही वो वजह है जिसके वजह से मैं जी गयी…….।
मैंने अपने बच्चों को आवाज लगाया अनिका सोनू यहां आओ। दोनों बच्चे हां मां बताओ क्या बात है मैंने संक्षेप में समझाया कि दो-चार दिनों के लिए मैं अपनी सहेली और तुम्हारी मौसी के घर जा रही हूँ। दोनों जिद करने लगे मुझे भी चलना है हम दोनों यहां अकेले नहीं रह पाएंगे??????
मैं एक बार बोली अब तो इतने बड़े हो गए हो फिर भी साथ चलने की जिद करने लगे।मैं भी सोची चलो अच्छा है इसका भी मन बहल जाएगा लेकिन सुनैना की नाराजगी याद आ गई । जिस तरह से उसकी नाराजगी मेरे प्रति बरसों से उसने बात भी नहीं की है।ऐसे में बच्चों को ले जाना उचित नहीं??????? यही सोच कर मैं मना कर दी।
कल की ट्रेन से मैं जाऊंगी तुम दोनों आराम से रहना कोई परेशानी नहीं होगी?????निश्चित समय पर मैं हल्के – फुल्के सामान के साथ के सुनैना के यहां जाने के लिए तैयार हो निकल गयी। स्टेशन पहुंच ट्रेन का इंतजार करने लगी, पहली बार अपने बच्चों से दूर जा रही थी सो मन विचलित भी हो रहा था ।कुशल मंगल ट्रेन में बैठ गई ,स समय ट्रेन अपनी रफ्तार के साथ खुल भी गई। और मैं, इस रफ्तार में अपने बीते समय की गति को भी रफ्तार देने लगी किस तरह से मेरा बचपन खेला था बड़े साहब के घर में। बड़े साहब यानी हमारे पिता लेकिन दुनिया की नजर में नहीं क्योंकि बड़े साहब ,,, कि मैं नाजायज संतान थी। फिर भी उन्होंने कभी मेरे मान सम्मान में कोई कमी नहीं रखी।अपने घर में पनाह दी दुनिया की नजर में, मैं उनके दोस्त की बेटी बन कर रह गई।
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हुआ कुछ ऐसे की जिस दफ्तर में बड़े साहब काम करते थे। वहीं पर मेरी मां अपने परिवार की गरीबी का दंश हटाने के लिए दिन-रात एक करके उसी दफ्तर में कुछ छोटे-मोटे काम करती थी ।जिसके एवज में कुछ रुपये मिल जाती थी।जिससे उनके मां बाबूजी को थोड़ी सी मदद मिल जाती थी।लेकिन सांवली सलोनी खूबसूरत सी मेरी मां मृणालिनी के इस सूरत पर बड़े साहब ने दिल हार बैठा । एक दिन मृणालिनी (मेरी माँ )भीगे बालों में हीं दफ्तर आ गई थी । बला की खूबसूरत लग रही थी संजोग से तब तक और कर्मचारी नहीं आए हुए थे बड़े साहब अपना शुद्ध बुद्ध भीगे बालों में कुछ इस कदर खो बैठे मेरी मां के मना करने के बावजूद भी ना चाहते हुए एक घटना घट गई ।
उसके बाद उन्हें खुद पर भी घिन्न आ रही थी लेकिन जवानी के जोश में होश खो बैठे थे। जिसकी निशानी मैं हमेशा के लिए उनके आंखों के सामने में रह गई । मेरी मां मृणालिनी ने उन्हें बताया कि वो मां बनने वाली है । तब उन्होंने कहा अब क्या करूं मैं तो शादीशुदा हूं और पहले से ही मेरे दो बच्चे हैं। मेरी मां ने कहा कि मैं इस बच्चे को दुनिया में लाऊंगी।आपको अपना नाम देना होगा ???????? समय बितता गया और प्रशव पीड़ा का समय नजदीक आ गया मेरी मां मुझे जन्म देते ही बहुत ही नाजुक अवस्था में चली गई ।उन्होंने हमारे पिता से कहा कि आप इसकी देखभाल करोगे पिता ने वचन तो दे दिया ,लेकिन कहा मैं इसे अपना नाम नहीं दे पाऊंगा। मेरी बहुत बदनामी हो जाएगी । मां यह सुनी सुनते ही मां ने अपना दम तोड़ दिया। हमेसा के लिए उस लोक चली गई।
बच्ची को अपने घर बड़े साहब ने लाया। अपनी पत्नी को बताया कि, कार दुर्घटना में मेरे दोस्त और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई है। उसकी निशानी है ये बच्ची आज से यही रहेगी मैं इसका पिता और तुम इसकी मां उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया खुद को माँ बनना। लेकिन, अपने पति को किसी दूसरे के बच्चे के पिता के रूप में नहीं स्वीकार कर सकती।बड़े साहेब ने कलह करना उचित नहीं समझा। कोई एतराज नहीं कम से कम उसने बच्ची को मां का स्थान तो दिया ।अपने हृदय में रखा तो यही बहुत बड़ी बात थी ।बड़े साहब का एक बेटा 5 साल का और दूसरी बिटिया 2 साल की थी। मैं भी दोनों के साथ बड़ी होने लगी ।उन दोनों ने कभी भी भाई बहन से प्यार देने में कोई कमी नहीं होने दिया। समय अपने रफ्तार से भागता गया तीनों के तीनों जवान हो गए……….।
20 साल बाद??????????? मुझे तो आज तक पता ही नहीं चला कि हम तीनों भाई बहन नहीं है।एक दिन, जाने अनजाने में हमें हमारी सच्चाई अपने पिता और मां के द्वारा पता चल गयी। इस सच्चाई ने झकझोर के रख दिया। फिर भी चेहरे पर कोई शिकन आने तक नहीं दिया।
सुनैना को कॉलेज के काफी होनहार और अमीर घराने के लड़के समीर से प्यार हो गया । वह उसके प्यार में इतने हद तक जा चुकी थी कि उसके अलावा उसे विवाह के लिए कोई और लड़का मंजूर नहीं था ।
लेकिन समीर अमीर घराने के होते हुए भी दिल से भी काफी अमीर था जरा सा भी घमंड नहीं था।अपने दोस्त होने के नाते उसने बताया कि मुझे सुनैना बहुत प्यार करती है ।मैं भी बहुत प्यार करता हूं उसे लेकिन ,थोड़ी देर रुक कर”””” मैं उसकी चुप्पी से घबरा गई । मैं तुरंत पूछने लगी बताओ ना क्या हुआ ????????? क्यूँ खामोश हो गए ।उसने कहाँ मैं उसे तकलीफ नहीं दे सकता मुझे एक भयानक बीमारी है जिसकी वजह से मैं उससे विवाह नहीं कर सकता ।मुझे कैंसर है, उसने एक बार कहा मेरी कानों में यह बात बार-बार गूंजने लगी।
आगे उसने कहा मेरी लाइफ मुश्किल से 5 साल है अब मैं क्या करूं???????? सुनंदा अवाक् रह गयी । समीर रोते हुए सुनंदा तुम ही मदद कर सकती हो मेरी। वह यह मानने के लिए तैयार नहीं है । उसे या तुम्हें कोई भी लड़का मिल सकता है जब मैं उसे अपने जीवन का बहुमूल्य समय नहीं दे सकता तो और मैं क्या दूंगा ???????? मैं नहीं चाहता कि वो तकलीफ में रहे लेकिन मैं यह सच भी उसे नहीं बता सकता । वो टूट जायेगी पुनः तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो तुम ही कोई उपाय करो। इधर घर में सभी शादी के लिए दिल से तैयार थे कि जिसमें मेरी सुनैना खुश रहेगी मैं उस लड़के से ही उसका विवाह करूंगा??????
मैं समीर से बोली कि, मैं तुमसे शादी करूंगी समीर चीखते हुए पागल तो नहीं हो गई । क्यों जानबूझकर अपना जीवन बर्बाद कर रही हो???? मैं उसे सारी सच्चाई बताते हुए कि मुझे कर्ज चुकाना है। वो इसी तरह से चुकती हो सकता है । हम लोग कुछ इस तरह से नाटक करेंगे कि घर वालों को लगे कि तुम मुझसे प्यार करते हो । लेकिन समीर गिरगिराने लगा नहीं ऐसा मत करो। मैं जो कहती हूं करो ना इस तरह ही मैं उन लोगों की किए गए उपकार का एहसान चुका सकती है।दीदी को अच्छी जिंदगी दे सकती हूं वरना वह नहीं मानेगी ।भले ही सभी मुझसे नाता तोड़ ले कोई बात नहीं……….।
घर में यह बातें आग की तरफ फैल गई ।मां बड़े साहेब, दीदी भैया सभी ने हमसे नाता तोड़ लिया। उन्होंने आखिर खुलेआम कह ही दिया इसने अपने खून का असर दिखा दिया।
मुझे तो पता था मैं ईश्वर को साक्षी मानकर अपने निर्णय पर खुश थी । मैंने मंदिर में शादी की हमेसा के लिए समीर की हो चली सारे रिश्ते नाते तोड़कर……..।
समीर को भयानक बीमारी थी समय बिता मैं दो बच्चों की मां बनी और समीर गुजर गए । ससुराल में भी किसी ने नहीं रखा मैं अपने बच्चों के साथ बिना बताए बहुत दूर चली आई। किसी तरह खुद को संभाली। आज अचानक से मुझे पता चला कि सुनैना वहां रहती है तो सोची की जाकर उसके अंदर दबे तूफान को शांत कर कम से कम एक बहन के रिश्ते को जीवंत किया जा सकता है। क्यों ना मन के अंदर जो गलतफहमी की गांठ लग गई थी बरसों पहले उसके गिरह को हमेशा के लिए खोल दूँ………।
ट्रेन में बैठे यात्रियों के हरबराहट से मैं भी ख्वाब से हकीकत में आई । तभी पता चला कि जहां उतरना है मेरा स्थान आ गया है । पहुंच गई अपनी सहेली अपनी बड़ी बहन सुनैना के घर। मुझे देखते ही हमसे लिपटकर रोने लगी जैसे उसे मेरे बोलने से पहले ही सच्चाई का पता चल गया हो ।मैं कुछ बोलती उसने कहा कुछ मत बोल मुझे सब पता है बस तुम्हारा ही पता नहीं था । मैं तो कब से तुमसे माफी मांगने के लिए बेचैन थी, मुझे अच्छी जिंदगी देने के लिए तुमने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी । मैं रोते रोते बोली ये तो मेरा फर्ज था तभी , सुनैना बोली फर्ज या कर्ज तुमने अदा किया……….।
तभी सुनैना दोनों बच्चे कहां है मैं भी पूछी की, मां ,बड़े साहेब सब हमारा परिवार यही है बस तुम दोनों बच्चे को लेकर यहाँ शिफ्ट हो जाओ हमेशा के लिए। मैं मां बाबूजी की तरफ देखी उन्होंने मौन स्वीकृति दे दी । मैं बोली ठीक है आज मुझे सबके साथ देखकर हमारे समीर भी मुस्कुरा रहे थे। मन में दबी गांठ खुल गयी, आज मुझे मेरा पूरा परिवार मिल गया जिससे आज मेरा मन हल्का हो रहा था……….।
