Hindi Kahani: “यह क्या हो गया है निहारिका तुमको? तुमने अपना रेजिग्नेशन लेटर क्यों दे दिया प्रिंसिपल मैडम को? अचानक इतना बड़ा फैसला आखिर क्यों ले लिया तुमने? ये तुम्हारे ही तो सपने थे कि तुम नौकरी करो फिर जब तुम्हारा वो सपना पूरा हो गया तो पीछे क्यों हट रही हो? क्यों भाग रही हो तुम यहां से ?
तुम्हें कल ही तो बैस्ट टीचर का अवार्ड भी मिला है इस साल का फिर क्यों छोड़ रही हो यह नौकरी?”
उसकी सहेली स्वरा एक के बाद एक लगातार कई प्रश्न पूछती ही जा रही थी और…
निहारिका क्षितिज में इन प्रश्नों का उत्तर खोजती
एकटक आसमान में चमकते ध्रुव तारे को निहार रही थी।
कैसे समझाए और क्या बताएं स्वरा को कि आखिर वो अपने सपनों की नौकरी जिसे पाने के लिए उसने कितने त्याग किए हैं वो उसने क्यों छोड़ दी। ऐसा क्या हो गया उसके साथ यह स्वरा को या किसी को भी वो कैसे समझाए वो तो खुद ही समझ नहीं पा रही थी कि उसने यह फैसला आखिर क्यों ले लिया और क्या वो जो कर रही है वो सही है।
वो भी तो इस ध्रुव तारे के समान ही अपनी चमक पूरी दुनिया में फैलाना चाहती थी। तभी तो उसने टीचर बनने का सपना देखा था। शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और बेटे के जन्म के बाद उसने बी एड करने की इच्छा जताई तो पति ने उसका साथ दिया पर यह समझाया…
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“जानती हो इतना आसान नहीं है जैसा तुम्हें लग रहा है। बड़ा ही कठिन होगा तुम्हारा नौकरी करना। अपने बच्चे की परवरिश में बाधाएं आएंगी। तुम्हें करियर और परिवार में से किसी एक को चुनना होगा। मैं इतना तो कमाता ही हूं जो अपनी पत्नी और बच्चे के खर्चे उठा सकूं। तुमको आगे पढ़ने की इच्छा थी सो तुम्हारी पढ़ाई में कभी कोई रुकावट नहीं आने दी अब बीएड भी करना चाहती हो तो कर लो लेकिन उसके बाद नौकरी की ज़िद मत करना। अगर घर के आसपास किसी स्कूल में मिल गई तो सोचेंगे वो भी तब जब अपना सोनू स्कूल जाने वाला हो जाएगा।”
उस समय उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया था और बी. एड की पढ़ाई में खुद को झोंक दिया। घर का काम और बच्चे को संभालना फिर अपनी पढ़ाई करना बहुत कठिन था।
रितेश से कहकर गांव से अपनी सास को बुलवा लिया था। बात बात पर ताने भले सुनती रही लेकिन फिर भी अच्छे नंबरों से पास हुई और सरकारी स्कूल में उसकी नियुक्ति का पत्र जब उसके हाथ में आया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था।
सबसे बड़ी समस्या तब आई जब यह पता चला कि वह स्कूल दूसरे शहर में था तो पति ने कहा… “अभी हमारा बेटा छोटा है और इसे तुम्हारी जरूरत है। तुम खुद समझदार हो। दूसरे के बच्चों को पढ़ाने के लिए बेताब हो रही हो और अपने छोटे से बच्चे की चिंता नहीं है।”
“जी ऐसा नहीं है। सोनू के बिना मैं कैसे रहूंगी यह मैं ही जानती हूं। मैं हर छुट्टी वाले दिन आ जाया करूंगी बाकी दिन आप और मां जी संभाल लीजिएगा ना प्लीज…
ऐसे अवसर बार बार नहीं आते हैं। बड़ी मेहनत की है मैंने सरकारी नौकरी के लिए।”
मेल इगो हर्ट कर रहा था रितेश का पर निहारिका तो उस समय सातवें आसमान पर थी। उसे अपनी मेहनत सफल होने की खुशी ने बावली बना दिया था।
उसकी सास ने उसे दिखावे के तौर पर खुशी-खुशी बिदा किया था नौकरी ज्वाइन करने के लिए। मन में लालच तो था ही कि बहुरिया कमाएगी तो पैसे उसके हाथ में भी आएंगे और उसके मन में जो चल रहा है वो भी पूरा कर पाएगी।
वो निहारिका को बिल्कुल पसंद नहीं करती थी क्योंकि रितेश ने दूसरी जाति की लड़की से प्रेम विवाह जो किया था । वो तो चाहतीं थीं कि रितेश की दूसरी शादी करवा दें अपनी बहन की ननद से जो देखने में भी गोरी चिट्टी सुंदर है और घर के सारे काम में भी निपुण है।
रितेश तो निहारिका के प्यार में पागल सा हो गया था तभी उसकी सारी इच्छाएं पूरी करता था लेकिन धीरे-धीरे उसकी मां ने निहारिका की इतनी बुराइयां करना शुरू कर दिया कि वो उससे नफ़रत कर बैठे।
दो साल का सोनू मम्मा मम्मा करता रो रहा था जब निहारिका अपना सामान उठाए घर से जा रही थी।
“जाने दे मेरे लाल अपनी मां को जिसे तेरी बिल्कुल चिंता नहीं है। तेरी दादी है ना अभी जिंदा… तुझको पालेगी। तेरी मां को पैसा कमाने का जो भूत सवार हुआ है वो पूरा करने दे।”
सोनू दादी की इन बातों का अर्थ कहां समझ पा रहा था।
ये उसकी सास कौन सा खेल खेल रही थी उसके साथ इस बात से तो उस समय निहारिका बिल्कुल अंजान थी।
बच्चे को उसकी दादी और पापा के पास छोड़कर वो निश्चिंत तो थी पर बच्चे से दूर जाना उसे भी अखर रहा था।
“एक बार फिर सोच लो… मां अब इस उम्र में जब उसे आराम की आवश्यकता है तब हमारे बच्चे को कैसे पालेगी। मैं तो दिन भर आफिस में रहूंगा।” ट्रेन में चढ़ते वक्त रितेश ने निहारिका से कहा तो वो बोली…
“ रितेश बस साल भर की ही तो बात है। मैं अगले साल सोनू को अपने साथ ले जाऊंगी।”
“उसे कहीं ले जाने की कोनो जरूरत नहीं है बहुरिया तू जा इसकी कोई चिंता मत कर हम हैं ना इसे पाल लेंगे।”
नए शहर में अपने सपने साकार करने के लिए वो अपने पति बच्चे से दूर आ गई थी।साल भर तो सब ठीक रहा। जब वो रितेश को फोन करती तो सोनू की आवाज भी सुनती और हर छुट्टी में घर जाती पर साल भर वो स्कूल के काम में इतना व्यस्त रही कि उसे रितेश और सोनू के पास घर आने का समय ही नहीं मिला। अभी कुछ दिन पहले ही उसे पता चला रितेश की मां तो सोनू को अपने साथ गांव ले गई।
“यहां शहर में क्या दिक्कत हो रही थी मां को जो वो गांव चली गई सोनू को लेकर।” चीख उठी थी निहारिका।
“उसका मन नहीं लग रहा था यहां। अच्छा ही है अपना बच्चा गांव की हवा में पलेगा। यहां शहर की हवा में कितना प्रदूषण फैला हुआ है।”
“ यह सब बहाना है उसे मुझसे दूर करने का। आपने तो कहा था आप उसे संभाल लेंगे।”
“हम उसे तुमसे दूर कर रहें हैं या तुम ही उससे दूर भाग रही हो और हां मैंने कोई वादा नहीं किया था कि मैं अकेले सोनू को पालूंगा।”
कहां खो गई निहारिका… स्वरा ने उसे झकझोरते हुए कहा।
उसकी आंखें आंसूओं से भरी हुई थी।
“मैं हार गई स्वरा। मेरा पति… मेरा बच्चा… सब मुझसे दूर जा रहा है। रितेश की दूसरी शादी की तैयारी कर रही है उसकी मां।”
“यह क्या बोल रही हो निहारिका। ऐसा कैसे हो सकता है पहली पत्नी के रहते तुम्हारा पति दूसरी शादी कैसे कर सकता है?”
“उसने तलाक़ के पेपर भेजे हैं। कल जब एक तरफ बैस्ट टीचर का अवार्ड मिल रहा था मुझे दूसरी तरफ मैं एक पत्नी और मां बनने में फेल हो गई थी।”
उसकी आवाज में तड़प थी अपने बच्चे और पति के लिए। स्वरा ने उसे गले से लगा लिया।
“इतनी बड़ी बात हो गई और तुमने बताया भी नहीं।”
‘क्या बताती? नौकरी छोड़ने के सिवा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। मैं आज ही शाम को वापस अपने बच्चे पति के पास चली जाऊंगी हमेशा के लिए। यही चाहते हैं ना कि मैं हमेशा घर पर रहूं… नौकरी ना करूं… तो ठीक है ना अब मैं वैसा ही करूंगी जैसा वह चाहते हैं।”
“चलो मेरे साथ अभी प्रिंसिपल ऑफिस में।”
“पर क्यों? उन्होंने तो मेरे रेजिग्नेशन लेटर पर साइन कर ही दिया है। मैं शाम की ट्रेन से ही वापस कर जा रही हूं।”
“हां हां तुम्हें अभी घर ही जाना चाहिए और तुम्हारे साथ मैं भी जा रही हूं। तुम्हारे पति और सासूमां की खबर लेने । जरा देखूं तो सही कैसे तुम्हारे रहते तुम्हारा पति दूसरी शादी करता है।”
“कोई तमाशा क्रिएट मत कर स्वरा। ऐसे ही जिंदगी एक तमाशा बनकर रह गई है।”
“तमाशा तो अब होकर ही रहेगा मेरी सहेली को तड़पाने वाला खुद चैन से दूसरी शादी करेगा ऐसा मैं नहीं होने दूंगी।”
“तो क्या करेगी? रहने दे मुझे मेरे हाल पर… मेरे नसीब में जो और जितना लिखा है मुझे उतना ही तो मिलेगा।”
“अपना नसीब तेरे हाथों में है जो तुझे खुद लिखना है। नौकरी छोड़ देने से क्या रितेश तुझे पहले की तरह प्यार करेगा इस बात की क्या गारंटी है।”
थोड़ी ही देर बाद निहारिका और स्वरा प्रिंसिपल ऑफिस से निकल रहे थे दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी।
“देखा मैंने कहा था ना अपना नसीब लिखना अपने हाथों में होता है। बस थोड़ी सी रिक्वेस्ट की प्रिंसिपल सर से तो तेरा ट्रांसफर तेरे ही शहर में हो गया ना। अब तो तू अपने पति और बच्चे को संभालते हुए नौकरी भी कर पाएगी।”
निहारिका वापस लौट आई थी अपने पति के पास।
“सोनू कहां है? मुझे उसके पास ले चलिए ना।”
“क्या हुआ क्यों तड़प रही हो अब उससे मिलने के लिए। खुद ही तो उसको छोड़ कर भागी थी। तुमसे दूर है तो ठीक है आराम से मां के पास गांव में रह रहा है तुम तो फिर उसे अपना चेहरा दिखा कर लौट जाओगी। मां को उसे संभालना मुश्किल हो जाता है।”
अब कभी नहीं जाऊंगी यही रहूंगी अपने बच्चे के पास। आप मां को समझा दीजिए कि वह आपकी दूसरी शादी ना करवाएं।”
“मैं खुद तुम्हारे लिए तड़प रहा था निहारिका। मैं नहीं चाता हूं कि अपनी जिंदगी में तुम्हारे सिवा किसी और को जगह दे सकूं पर मां कब तक सोनू को संभालेंगी।”
“रितेश यह देखो… मुझे अब अपने ही शहर में अपने घर के पास वाले स्कूल में ही नौकरी मिल गई है। आप यही तो चाहते थे। सोनू भी स्कूल में एडमिशन कराने जितना बड़ा हो गया है गांव में कैसे पढ़ेगा लिखेगा। चलिए उसे ले आते हैं।”
“मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि तुम वापस आ गई हो और हमेशा मेरे पास रहोगी।”
“इतना प्यार करते हो आप मुझसे जो साल भर की जुदाई में ही अपना यह हाल बना लिया है। उसके बिखरे हुए बालों और बढ़ी हुई दाढ़ी पर उंगली फेरते हुए निहारिका उसकी बाहों में कब समा गई उसे पता ही नहीं चला।”
