Hindi Katha: एक बार दक्ष प्रजापति ने एक बड़ा यज्ञ किया। उस यज्ञ में उसने शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से क्रुद्ध होकर सती ने योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया। पत्नी सती के अभाव में शिव लीलावश पागल जैसे हो गए और एक शांत स्थान पर जाकर भगवती माता का ध्यान करने लगे। उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया और कठोर तपस्या करने लगे।
उसी समय पृथ्वी पर तारकासुर नामक एक क्रूर और पराक्रमी दैत्य उत्पन्न हुआ। जन्म लेते ही तारकासुर की आकृति विशालकाय हो गई । वह वन में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगा। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे मनोवांछित वर माँगने के कहा ।
तारकासुर को भगवान् शिव की मनोस्थिति का पूर्ण ज्ञान था। अत: वह बोला .” हे परमपिता ! मेरी मृत्यु केवल भगवान् शिव के पुत्र के हाथों हो, यह वरदान दीजिए। अन्य कोई देवता मेरा वध न कर सके। “
ब्रह्माजी ने तारकासुर को मनोवांछित वरदान प्रदान कर दिया।
वर प्राप्त कर दैत्य तारकासुर ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगा। उसके अत्याचारों से पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। शीघ्र ही उसने तीनों लोकों पर अधि कार कर लिया। देवी सती की मृत्यु हो चुकी थी और भगवान् शिव तपस्या में लीन थे। इस कारण उनके पुत्र की कल्पना भी असम्भव थी । देवताओं के मन में चिंता के नाग डेरा डाले हुए थे। तब भगवान् विष्णु के परामर्श से ब्रह्मा एवं इन्द्र आदि देवगण हिमालय पर्वत पर जाकर माता जगदम्बिका की स्तुति करने लगे ।
देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवती जगदम्बिका वहाँ प्रकट हुईं और बोलीं – “हे देवगण ! मुझे याद करने का प्रयोजन निःसंकोच होकर बताएँ। भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए मैं सदैव तत्पर रहती हूँ। मैं अपने भक्तों को दुःखों और कष्टों से सदा मुक्त करती रही हूँ। “
देवता बोले – “परमेश्वरी ! तीनों लोकों में ऐसी कोई घटना नहीं है, जिसका आपको ज्ञान न हो। आप सर्वज्ञ हैं । माते ! तारक दैत्य तीनों लोकों में अत्याचार कर रहा है। ब्रह्माजी ने उसकी मृत्यु भगवान् शिव के पुत्र के हाथों निश्चित की है। और भगवान् शिव इस समय विधुर जीवन बिता रहे हैं। अतएव आप उस दैत्य के वध का कोई उपाय करें। ‘
भगवती जगदम्बा बोलीं – ” हे पुत्रो ! शीघ्र ही गौरी नाम से मेरी एक शक्ति हिमालय के घर प्रकट होगी। आप ऐसा प्रयत्न करें जिससे कि महादेव जी के साथ उसका विवाह हो जाए। वह देवी आप लोगों का कार्य अवश्य सिद्ध करेगी।” माता जगदम्बा का आशीर्वाद प्राप्त कर सभी देवता लौट गए।
कुछ समय बाद पर्वतराज हिमालय के घर भगवती माता दिव्य बालिका के रूप में उत्पन्न हुईं। ये दिव्य बालिका ही देवी पार्वती के नाम से प्रसिद्ध हुईं। युवा होने पर उनका विवाह भगवान् शिव के साथ सम्पन्न हुआ। देवताओं के उद्धार के लिए देवी पार्वती ने कार्त्तिकेय नामक सुंदर, वीर और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया | शिव- पुत्र कार्त्तिकेय ने युद्ध में दैत्यराज तारकासुर का वध करके तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्त कर दिया।
