Bholenath : सभी देवी-देवताओं में भगवान शिव को सबसे ऊपर माना जाता है। महादेव को जितना शांत बताया जाता है वह उतने ही गुस्से वाले भी हैं। शास्त्रों के मुताबिक सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इसलिए इस दिन लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए लोग व्रत करते हैं। भगवान शिव सभी देवताओं में सबसे अलग हैं और इनका विवाह भी सबसे अलग ही था। क्या आपको पता है कि भगवान शिव का विवाह बहुत अद्भुत था और उनकी बारात भी सबसे अलग थी।
आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों में शिव बरात निकाली जाती है। तो चलिए आज हम आपको शिव विवाह की कथा के साथ बताएंगे की कहां-कहां आज भी निकाली जाती है शिव-पार्वती बारात।

काशी में शिव-पार्वती बारात बड़ी धूम-धाम से निकाली जाती है। महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव की शादी हुई थी। इस दिन पूरी काशी शिव के रंग में रंग जाती है। हर साल भोलेनाथ का अद्भुत बारात निकलती है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। तिलभांडेश्वर, बैजनत्था, मैदागिन और केदार मंदिर से हर साल शिवरात्रि के दिन निकलती है। इसमें भूत, प्रेत, जिन्नाद, जानवर और देवी-देवता सभी शामिल होते हैं।
मान्यता है कि माता पार्वती ने काफी तपस्या के बाद भगवान शिव से विवाह किया था और जब जगदंबा से भोलेनाथ प्रसन्न हुए तो वह हिमालय की ओर बारात लेकर निकले। आम बारात में जैसे महिलाएं परछन करती हैं ठीक उसी तरह काशी में भोलनाथ की बारात निकलती है तो महिलाएं उनका परछन करती हैं।

शिव बारात के दौरान काशी की सड़कें शिव रात्रि के दिन भोलेनाथ के भक्तों से भर जाती हैं। भोलेनाथ घोड़े पर सवार होकर जब निकलते हैं तो पूरी काशी का भ्रमण करते हैं। मान्यताएं ऐसी है कि बाबा शिवरात्रि के ही दिन जब वापस लौटे थे तो होली खेले थे, इसीलिए आज के दिन बाबा को रंग भी अर्पित करना चाहिए।
बता दें कि भगवान शिव के विवाह के बारे में वर्णन पुराणों में मिलता है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का विवाह सबसे पहले सती से बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था। धार्मिक कथा के अनुसार, सती के पिता दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे। लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह संभव हो पाया। विवाह के बाद एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिसे माता सती सहन नहीं कर सकी और नाराज होकर अपने पिता के यहां हो रहे यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया। जब ये समाचार भगवान शिव ने क्रोध में सती का शव लिए शोक संतप्त होकर दुनियाभर में घूमने लगे। जिसके बाद भगवान विष्णु ने सती के शरीर को बहुत छोटे टुकड़ों में बांट दिया, वे भारत के विभिन्न हिस्सों में गिरे और उनसे शक्तिपीठों ने जन्म लिया। इस घटना के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए और उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया।

इस बीच तारकासुर असुर का आतंक बढ़ गया और देवतागण उससे भयभीत थे। तारकासुर को प्राप्त वरदान के अनुसार उसका वध सिर्फ भगवान शिव की संतान ही कर सकती थी। लेकिन उस समय भी भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई और भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया लेकिन वह भस्म हो गए। देवताओं की विनती पर शिव जी पार्वती जी से विवाह करने के लिए मान गए।
माता पार्वती से विवाह के लिए भगवान शिव की बारात तैयार हुई जिसमें देवता, दानव, गण, जानवर सभी शामिल हुए। इतना ही नहीं भगवान शिव की बारात में भूत पिशाच भी पहुंचे। ऐसी बारात को देखकर पार्वती जी की मां बहुत डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर से अपनी पुत्री का विवाह नहीं करेंगी। तब देवताओं ने भगवान शिव को परंपरा के अनुसार तैयार किया, सुंदर तरीके से श्रृंगार किया इसके बाद दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। उनकी शादी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुई थी। जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, वह स्थान आज रुद्रप्रयाग एक गांव त्रिर्युगी नारायण के नाम से जाना जाता है।
