भोलेनाथ को क्यों पसंद है सावन का महीना, जानिए माता पार्वती से जुड़ी रोचक कहानी: Sawan Katha
Sawan Katha

Sawan Katha: सनातन संस्कृति में सावन के महीने को बहुत ही पवित्र और पावन महीना माना जाता है। हिंदू पंचांग वर्ष का पांचवां महीना सावन का होता है। साल 2023 में सावन महीना अधिक मास होगा। धर्मग्रंथों में बताया गया है कि सावन के महीने में पूजा पाठ, व्रत, धर्म कर्म और दान पुण्य का कार्य अधिक किया जाता है क्योंकि यह पूरा महीना भोलेनाथ की पूजा के लिए श्रेष्ठ है। सावन के महीने में भोलेनाथ की विधि विधान से पूजा करने से शिवजी का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए सावन के महीने में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का व्रत भी किया जाता है। शिव पुराण में भी यह वर्णन है कि सावन के महीने में भोलेनाथ, माता पार्वती के साथ धरती लोक पर रहते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार सावन का महीना भोलेनाथ को बहुत ही अधिक पसंद होता है। धर्मग्रंथों में इसके पीछे की पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है। आइए जानते हैं।

माता पार्वती से जुड़ा है इतिहास

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Paravati ma and Sawan Katha

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शिव पुराण में शिव जी के विवाह से जुड़ी एक कथा का उल्लेख मिलता है और यह कथा स्वयं शिव जी ने संतकुमारों को सुनाई थी। कथा के अनुसार, दक्ष राजा की पुत्री सती शिव जी की पत्नी थीं। दक्ष राजा द्वारा शिव जी का अपमान किए जाने के कारण क्रोध में माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद माता सती ने हिमालयराज की पुत्री पार्वती के रूप में फिर से जन्म लिया और भगवान शिव को पति बनाने के लिए उन्होंने सावन के महीने में पहाड़ों पर कठोर तपस्या की। माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने सावन मास में ही माता पार्वती से विवाह किया। इसी कारण शिव जी को सावन का महीना बहुत अधिक पसंद है। विवाह के बाद सावन महीने में ही माता पार्वती और भगवान शिव जब राजा हिमालयराज के घर गए तब सभी ने भगवान शिव का अभिषेक किया तभी से सावन के महीने में भगवान शिव का रूद्राभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है।

समुद्र मंथन की पौराणिक कथा

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पौराणिक ग्रंथों में एक अन्य कथा का उल्लेख भी मिलता है। ग्रंथों के अनुसार, सावन मास में हुए समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष निकला था। यह विष इतना भयंकर था कि इस विष की एक बूंद ही पूरी सृष्टि को खत्म कर सकती थी। सृष्टि को बचाने के लिए शिव जी ने इस विष को अपन गले में धारण कर लिया और मानवजाति का कल्याण किया। विष पीने के कारण शिव जी का गला नीला पड़ गया और वो नीलकंठ कहलाए। हलाहल विष के कारण शिव जी के गले में पीड़ा होने लगी और उन्हें बहुत गर्मी का एहसास होने लगा। इस पीड़ा से राहत दिलाने के लिए सभी देवी देवताओं ने शिव जी को दूध और जल से नहलाया और उन्हें बेलपत्र खिलाए। इन सभी चीजों से विष का असर खत्म हो गया। इसी कारण सावन मास में शिव जी को दूध और जल अर्पित किया जाता है। इसी कारण शिव जी को सावन का महीना अधिक प्रिय है।

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