Sawan Somvar 2025
Sawan Somvar 2025

Sawan 2024 Katha: सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है और सोमवार का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस शुभ अवसर पर आइए जानते हैं कि भगवान शिव को त्रिपुरारी क्यों कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, तीन असुरों ने तीन नगरों का निर्माण किया था – स्वर्णपुर, रजतपुर और लोहपुर। ये नगर इतने शक्तिशाली थे कि देवता भी इनसे युद्ध नहीं जीत पा रहे थे। तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने त्रिशूल से एक ही बाण चलाकर इन तीनों नगरों का नाश कर दिया। इसीलिए उन्हें त्रिपुरारी कहा जाता है, यानी तीनों नगरों का नाश करने वाला। त्रिपुरारी का नाम भगवान शिव की शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करते हुए त्रिपुरारी मंत्र का जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव को त्रिपुरारी क्यों कहा जाता है इसे चलिए विस्तार से समझते हैं।

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शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, दैत्यराज तारकासुर के तीन पुत्रों – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं के साथ युद्ध छेड़ दिया था। तारकासुर का वध कार्तिकेय देव ने किया था, जिसका बदला लेने के लिए उसके ये तीनों पुत्र उतारू थे। इन तीनों असुरों ने अपनी शक्ति और बल से देवलोक में हाहाकार मचा दिया था। देवता इनसे युद्ध नहीं जीत पा रहे थे। इसीलिए उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने इन असुरों का वध करके देवताओं की रक्षा की थी।

पुराणों के अनुसार, एक समय की बात है, कुछ असुरों ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। असुरों ने ब्रह्मा जी से एक ऐसा वरदान मांगा जिससे वे अजेय हो जाएं। ब्रह्मा जी ने उनकी बात सुनकर उन्हें तीन ऐसे नगर बनाने का वरदान दिया जो आकाश में उड़ सकें। इन नगरों को इस प्रकार बनाया गया था कि हजार साल बाद ये तीनों नगर एक ही स्थान पर आकर मिल जाएँ। असुरों ने ब्रह्मा जी से यह भी वरदान मांगा कि जब ये तीनों नगर एक हो जाएँ, तो जो देवता इन तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर सकेगा, वही उनकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस वरदान के कारण असुर अजेय हो गए और देवताओं के लिए बहुत बड़ा संकट बन गए।

ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से असुरों ने जो वरदान पाया था, उसे पूरा करने के लिए मय दानव नामक एक कुशल वास्तुकार को बुलाया गया। मय दानव ने अपने अद्वितीय कौशल से तीन अद्भुत नगरों का निर्माण किया। तारकाक्ष के लिए सोने का एक भव्य नगर बनाया गया, जो अपनी चमक से चारों ओर प्रकाश फैलाता था। कमलाक्ष के लिए चांदी का एक नगर बनाया गया, जो शीतलता और शांति का प्रतीक था। विद्युन्माली के लिए लोहे का एक अजेय नगर बनाया गया, जो शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक था। इन तीनों नगरों को सामूहिक रूप से त्रिपुर कहा जाता था और ये आकाश में स्वतंत्र रूप से विचरण करते थे। ये नगर इतने खूबसूरत और शक्तिशाली थे कि देवता भी इनकी तुलना नहीं कर सकते थे।

मय दानव द्वारा निर्मित तीन अद्भुत नगरों के असुरों ने ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। अपनी असीम शक्ति से उन्होंने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। देवता उनके अत्याचारों से बेहद परेशान थे। असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास गए और उनसे रक्षा की याचना की। भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को बताया कि उन्होंने असुरों को जो वरदान दिया था, उसे वे वापस नहीं ले सकते। तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। देवताओं को निराश देखकर भगवान शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे इस समस्या का समाधान करेंगे।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने त्रिपुर का विनाश करने का संकल्प लिया। उन्होंने देवताओं को बताया कि त्रिपुर का विनाश तभी संभव है जब तीनों नगर एक सीध में हों। यह एक दुर्लभ घटना थी, क्योंकि तीनों नगर लगातार आकाश में घूमते रहते थे।

जब वह विशेष क्षण आया जब तीनों नगर एक सीध में आने वाले थे, तब विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक अद्भुत रथ का निर्माण किया। इस रथ को बनाने में सभी देवताओं ने सहयोग किया। चंद्रमा और सूर्य इस रथ के पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर जैसे लोकपाल इस रथ के घोड़े बने। हिमालय इस रथ का धनुष बना, शेषनाग उसकी प्रत्यंचा, भगवान विष्णु उसका बाण और अग्निदेव उसकी नोक बना। वायुदेव ने इस रथ को गति प्रदान की। इस प्रकार सभी देवताओं की संयुक्त शक्ति से बना यह बाण अत्यंत शक्तिशाली था।

जब भगवान शिव दिव्य रथ पर सवार होकर त्रिपुर का नाश करने के लिए आगे बढ़े तो तीनों लोकों में हलचल मच गई। देवता आशा से भर गए जबकि असुर भयभीत हो गए। देवताओं और असुरों के बीच एक भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही तीनों नगर एक सीध में आए, भगवान शिव ने अपने दिव्य बाण को चलाया और एक पल में तीनों नगरों को भस्म कर दिया। त्रिपुर के विनाश के साथ ही असुरों का अहंकार चूर-चूर हो गया और देवता जयकारे लगाने लगे। भगवान शिव की इस अद्भुत शक्ति और पराक्रम को देखकर सभी देवता उनके चरणों में गिर पड़े। इस घटना के बाद से भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है “त्रिपुर का विनाश करने वाला”। यह घटना भगवान शिव की शक्ति और देवताओं के रक्षक होने का प्रतीक है।

मैं आयुषी जैन हूं, एक अनुभवी कंटेंट राइटर, जिसने बीते 6 वर्षों में मीडिया इंडस्ट्री के हर पहलू को करीब से जाना और लिखा है। मैंने एम.ए. इन एडवर्टाइजिंग और पब्लिक रिलेशन्स में मास्टर्स किया है, और तभी से मेरी कलम ने वेब स्टोरीज़, ब्रांड...