कोई भी कार्य असंभव नहीं - स्वामी विवेकानंद की कहानी
कोई भी कार्य असंभव नहीं - स्वामी विवेकानंद

वे कहते थे कि ईश्वर की बनाई सभी रचनाओं में से मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है । यदि वह चाहे तो कार्य के नियोजन व समय की पाबंदी जैसे गुणों को जीवन में उतार कर कुछ भी पा सकता है। कोई भी काम करने से पहले उसके लिए योजना बनानी चाहिए । फिर परिश्रम और लगन के साथ उसे पाने के लिए जुट जाना चाहिए। यहां समय की पाबंदी भी उतना ही महत्व रखती है। जो व्यक्ति ऐसा कर सकता है, उसके लिए इस संसार में कोई भी कार्य करना मुश्किल नहीं है।

इसी तरह कोई पराधीनता के बंधन कितने भी कड़े क्यों न हों, मनुष्य उन्हें आसानी से तोड़ सकता है। किसी व्यक्ति के बारे में लोग कैसी भी राय क्यों न रखते हों। वह अपने कर्तव्य व कर्म से उस छवि व लोगों के बारे में अपनी राय को बदल सकता है।

कोई भी कार्य असंभव नहीं - स्वामी विवेकानंद की कहानी
कोई भी कार्य असंभव नहीं – स्वामी विवेकानंद की कहानी

शिकागो की धर्मसभा में अन्य धर्मो के गुरुओं ने स्वामी जी को छल-बल से अंत में मंच पर भेजा और उनका उपहास उड़ाने का अवसर तलाशने लगे। वे चाहते थे कि स्वामी जी के मुख से ऐसे शब्द निकलें कि सबको उनकी खिल्ली उड़ाने का अवसर मिल जाए। जब सनातन धर्म को हीन भाव से देखने वालों ने स्वामी जी को मंच से उनका धन्यवाद देते सुना। उन्होंने दांतों तले अंगुली दबा ली।

कोई भी कार्य असंभव नहीं - स्वामी विवेकानंद की कहानी
कोई भी कार्य असंभव नहीं – स्वामी विवेकानंद

इस तरह उनका उपहास उड़ाने वालों के मुंह बंद हो गए और वे भी उनके आगे सिर झुकाने को मजबूर हो गए। स्वामी जी ने एक भी कड़वा शब्द कहे बिना ही उन्हें उनकी भूल का एहसास दिला दिया था।

कोई भी कार्य असंभव नहीं - स्वामी विवेकानंद की कहानी
कोई भी कार्य असंभव नहीं – स्वामी विवेकानंद