बहुत समय पहले की बात है। अब्दुल्ला नाम का एक गरीब आदमी था। उसकी पत्नी सुलताना उसे हमेशा कोसती रहती थी। उनका घर सुलतान के महल के खंडहर की टूटी दीवार से लगा हुआ था।
अब्दुल्ला अक्सर अपने भाग्य को कोसता रहता, “ऊंट मुझसे कहीं बेहतर है। उन्हें मुझसे अच्छी छत और खाना नसीब होता है। हे अल्लाह ! अब तो इस दुनिया से उठा ले। मैं जीना नहीं चाहता।
एक दिन वह बैठा यही बुदबुदा रहा था कि उसकी बीवी उसे कोसने लगी, “बेअक्ल ! तुम किसी काम के नहीं। जाओ कुछ पैसा कमाकर लाओ। “
अब्दुल्ला बगदाद की सड़कों पर भटकता रहा, पर वह इतना बदकिस्मत था कि उसके हाथ एक दीनार भी नहीं आया। वह घर पहुंचा तो सुलताना सो चुकी थी । अब्दुल्ला ने लेटने से पहले खुद को कोसा, “अल्लाह ! मैं तेरी बेरहम दुनिया में जीना नहीं चाहता ।

उस रात अब्दुल्ला ने एक सपना देखा। एक लंबी दाढ़ी वाले फकीर ने उसके सपने में आकर कहा, अब्दुल्ला ! कैरो जा, कैरो ! अब्दुल्ला ने सुबह उठकर सुलताना को इस बारे में बताया, “यह तो अल्लाह का संदेश लगता है। सुलताना! मुझे एक बार कैरो जाना चाहिए। हमारी किस्मत पलट जाएगी ।
सुलताना गुस्से में चिल्लाई, “ निकम्मे ! शर्म कर !! क्या कैरो जाने के लिए पैसा है?”
” जाओ, पहले कुछ पैसा कमाओ। घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है । ” पर अब्दुल्ला ने सपने की बात मानने की ठान ली थी।

उस रात वह पत्नी को बताए बिना कैरो रवाना हो गया । उसे एक कारवां मिल गया, जो कैरो ही जा रहा था। उसमें कुछ लोग उसके जानकार निकले। उसने एक दोस्त से कहा था, “मैं भी कारवां में शामिल होना चाहता हूं। मेरी मदद कर सकते हो?” कारवां के मालिक ने यह सुन लिया, वह बोला, ‘मदद तो हो जाएगी, पर वही करना होगा, जो मैं कहूंगा।
हुजूर! मैं कैरो जाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं।’ अब्दुल्ला ने कहा ।
मालिक ने उसे ऊंटों को चराने व नहलाने का काम दे दिया।

अंत में कारवां कैरो पहुंचा व लोग यहां-वहां बिखर गए । अब्दुल्ला अकेला रह गया। उसके पास एक भी पैसा नहीं था । वह एक पेड़ के नीचे सो गया। अचानक चीख – चिल्लाहट से उसकी आंख खुली।
“उठ ! क्या तेरे बाप की जागीर है।
अब्दुल्ला डरकर उठ गया व रोने लगा, “ जनाब ! इस गरीब पर रहम करें। आपके पांव पड़ता हूं। मुझे छोड़ दें। “
वर्दी वाला आदमी उसे छोड़ना नहीं चाहता था । वह चिल्लाया, मुझे परवाह नहीं । तुम्हें सुलतान के पास जाना ही होगा । “

अब्दुल्ला को जाना ही पड़ा। वह कैरो के सुलतान के दरबार में ले जाया गया। सुलतान ने उसकी कहानी सुनकर कहा, मुझे तुम्हारे लिए अफसोस है, पर तुमने अपराध तो किया है, इसलिए सजा भी मिलेगी।”
दरबार में उसे दो दिन की सज़ा दी गई। दो दिन बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया।


सुलतान ने उसे कुछ दीनार देकर हुक्म दिया कि वह उसी समय कैरो छोड़ दे। उसने कहा, “कभी भी सपनों पर विश्वास मत करो। मेरे वज़ीर को भी कुछ दिन पहले एक सपना आया था। उसे एक फ़कीर ने कहा था कि वह बगदाद जाकर उस दीवार को खोदे, जो कभी बगदाद के राजा का महल थी । मेरे वज़ीर ने समय बरबाद नहीं किया। वह कहीं नहीं गया और यहीं मज़े से नौकरी करके अपना घर चला रहा है। “
अब्दुल्ला सुलतान की बात सुनकर हैरान रह गया। उसने झट से सुलतान से विदा ली। बगदाद पहुंचकर वह अपने खंडहर घर में गया और एक फावड़े से घर खोदने लगा। बीवी चिल्लाई, “आ गया, बेशर्म ! मैं कितनी बदकिस्मत हूं कि इस भिखारी की बीवी बनना पड़ा।
अब्दुल्ला हंसकर बोला, “सुलताना, अब तो तुम पैसे वाले की बीवी हो । ” सुलताना को लगा कि अब्दुल्ला पागल हो गया । अब्दुल्ला ने हीरे-जवाहरात से भरा बक्स दिखाया, जो दीवार खोदने से निकला था। सुलताना बहुत खुश थी। वह खुशी से चिल्लाई, “अल्लाह! हम तो पैसे वाले बन गए।” फिर उन दोनों ने बगदाद में एक बड़ा घर बनवाया और खुशी-खुशी रहने लगे।

