Supriya ka Sasural
Supriya ka Sasural

Hindi Social Story: “अरे! बिट्टू की मां तुमने अभी किसका नाम लिया? तुम्हें कुछ होश है भी या नहीं?”

“क्या हुआ बड़ी दीदी मैं तो अनंत पूजा के बारे में पूछ रही थी। ” 

सुप्रिया हैरान थी कि आज उसकी जेठानी किस बात पर उसे इस तरह बोल रहीं हैं।

“हे भगवान! तुम मामा ससुर का नाम ऐसे कैसे ले सकती हो? अपने सास ससुर और जेठ का नाम कभी नहीं लेते हैं। क्या तुमको तुम्हारी मां ने नहीं सिखाया है? आज तक हमें देखा है इस तरह मामा ससुर और जेठ का नाम लेते हुए।”

“दीदी मैं किसी का नाम थोड़े ही ले रही हूं मैं तो सिर्फ अनंत पूजा के बारे में पूछ रही हूं। इस बार कब है? वो तो दिवाली से पहले होती है ना।”

“राम राम राम! बुद्धि दीजिए इस औरत को। कुछ साल में खुद सास बन जाएगी फिर ये अपनी बहुओं को अपने रीति रिवाज क्या सिखाएगी। इसे तो खुद कुछ नहीं पता। जा पहले जाकर नहा फिर भगवान से माफी मांग और कसम खा की कभी ये नाम मुंह से नहीं निकालेगी।” 

गर्म कड़छिल उसकी तरफ दिखाते हुए सुप्रिया की बड़ी जेठानी ने कहा।

वो सहम गई।

उसकी बड़ी और छोटी दोनों जेठानी उसका मज़ाक तो उड़ा ही रही थी साथ में उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट पहुंचा रही थीं।

“हां दीदी आप बिल्कुल ठीक कह रहीं हैं। ये दिल्ली वाली अपने को कुछ ज्यादा ही मॉडर्न समझती है। मैं भी कुछ कहती हूं ना तो उल्टा मुझे ही सिखाने लगती है।” 

शादी के पच्चीस साल बाद भी तो उसे ऐसा लग रहा था कि कॉलेज में उसका पहला दिन है और उसकी रैगिंग हो रही है। लगातार पच्चीस सालों से रोज उसकी रैगिंग ही हुआ करती है जिसकी शिकायत वो किसी से कर भी तो नहीं सकती है। क्योंकि ये उसका खुद का चयन था‌। 

उसने अपनी मर्जी से अपने क्लासमेट से शादी की थी। लव मैरिज के बाद संयुक्त परिवार में रहना उसके लिए सजा बन गया था।

उसे हमेशा यही लगता था कि ये उसका ससुराल नहीं रैगिंग युनिवर्सिटी ही तो है।

उसकी सीनियर्स हैं उसकी दोनों जेठानियां और उसकी सास तो इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल है।

उसे मयंक से कॉलेज टाइम में ही प्यार हो गया था। वो उससे सीनियर था और उस दिन जब उसका कॉलेज का पहला दिन था और उसके बैच के सभी छात्रों की रैगिंग उनके सीनियर्स कर रहे थे । उसी दौरान तो मुलाकात हुई थी मयंक से उसकी  जो अपने दोस्तों के साथ उस सीनियर्स की रैगिंग करने वाली टीम में शामिल था।

नए बैच की लड़कियों को रैगिंग के बहाने छेड़ रहे थे वह सीनियर्स। अचानक मयंक को उनकी उस हरकत पर गुस्सा आ गया जब  उसके दोस्तों ने सुप्रिया का दुपट्टा खींच लिया था।

 चटाक से एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था उसने अपने दोस्त के गाल पर।

“पागल हो गया है क्या? अभी तक तो तू हमारा साथ दे रहा था और अब इस लड़की की रैगिंग के समय  हम पर हाथ उठा रहा है। कौन लगती है ये तेरी?”

“अब तक तुम लोग हद में थे पर अब हद पार कर रहे हो। हमारी भी बहने हैं इस तरह किसी लड़की का दुपट्टा खींचना यह तो ठीक नहीं। रैगिंग में नहीं मैं नए  स्टूडेंट के साथ इंट्रोडक्शन के लिए शामिल हुआ था तुम लोगों के साथ ना कि ऐसी हरकतों के लिए। “

फ़िदा हो गई थी सुप्रिया मयंक की  इन बातों से। अपना दिल दे बैठी थी उस पर। 

धीरे-धीरे उन दोनों के बीच प्यार बढ़ता गया था और दोनों ने शादी का फैसला किया। उन दोनों के परिवार वाले राजी नहीं थे इस अंतर्जातीय विवाह के लिए लेकिन बच्चों की खुशी के लिए उन्हें अनमने मन से राजी होना ही पड़ा।

सुप्रिया अपने अतीत की उन यादों के समंदर में गोते लगा ही रही थी कि तभी उसके कानों में बड़ी जेठानी की आवाज गूंज उठी जो उसे वर्तमान में ले आई।

“हां तो तुम अभी तक नहाने  नहीं गई । नहाने के बाद गंगाजल भी छिड़क लेना अपने ऊपर। यहां खड़े होकर बस ससुर और जेठ सबका नाम लेती रहोगी या मेरी बात भी मानोगी। तुमको नहीं पता कि मामा ससुर और जेठ की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए हम बहुओं पर। ऐसी जीभ को तो काट कर फेंक देना चाहिए।”

सुप्रिया में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो अपने मन की बात को बोल सके कि…

 ‘आप ये कौन से जमाने में जी रहीं हैं? ऐसा कुछ नहीं होता है। ये कॉमन सेंस की बात है कि अपने  से बड़ों को उनके नाम से नहीं बुलाना चाहिए । बड़ों की रिस्पेक्ट करनी चाहिए। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि अगर किसी का नाम किसी पर्व त्यौहार या किसी वस्तु या स्थान के नाम पर है तो उसका नाम भी ना लो।’

हद तो तब हो जाती है जब पूजा पाठ आरती में ऐसे नाम आ जाते हैं जैसा उसकी जेठानी और सास बोलती है कि तुमको ये नाम नहीं लेना है। 

अब उसके बड़े जेठ का नाम शिव प्रसाद है तो ना तो वो शिव बोल सकती है और ना प्रसाद।

अब बताओ ये भी कोई बात हुई। मंदिर में प्रसाद शब्द ना बोल कर वो क्या बोले। शिवजी की आरती में इव जी  बोले। अब छोटे जेठ का नाम भोला प्रसाद है तो वो भोला की जगह ओला या गोला बोले।

उसकी जेठानियां तो उसके मुंह से एक भी शब्द निकला नहीं कि उसका मजाक बनाना और बेमतलब का तंग करने का ठेका लिए रहती है।

कॉलेज का पहला दिन ही तो उसे सीनायर्स की रैगिंग का डर था लेकिन मयंक ने वो डर हमेशा के लिए युनिवर्सिटी में तो खत्म कर दिया था पर यहां उसके ही घर यानी सुप्रिया के ससुराल में तो रैगिंग खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

यहां की प्रिंसिपल यानी उसकी सास सुधा देवी तो क्या उसे इस रैगिंग से बचाएगी वो तो खुद उन तीनों की रैगिंग करती है।

सिर से आंचल जरा सा हटा नहीं कि हिटलर की तरह खड़ी हो जाती हैं।

“बड़ा फैशन सूझता है तुम  लोगों को जो अपने बालों का स्टाइल दिखाने के लिए सिर नंगा किए घूम रही हो।”

“मां जी गरमी बहुत ज्यादा है या साड़ी सिर पर से फिसल रही है।” 

अगर किसी के मुंह से ये शब्द निकल भी गया तो एक लंबा चौड़ा भाषण शुरू हो जाता था।

“तो क्या हम लोगों को गर्मी नहीं लगती थी। कभी जेठ ससुर ने हमारा आंचल सिर से गिरा हुआ नहीं देखा। आजकल की बहुएं तो अपने आपको किसी हिरोइन से कम नहीं 

समझती। “

कई बार तो सुप्रिया और उसकी जेठानियों के बाल खींचकर आंगन के चक्कर कटवाए फिर आगे से ऐसी ग़लती नही होगी ऐसा कहकर लंबा घूंघट डाल दिया।

इस रैगिंग का विरोध बडी बहू ने भी नहीं किया। उसने इस प्रथा को निभाने की कसम खा ली। उसके साथ जैसा हुआ सेम टू सेम वैसा ही तो उसने अपनी से छोटी बहू के साथ किया। फिर उसने उससे छोटी के साथ यानी सुप्रिया के साथ… अब तो वो दोनों खुद को ही इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल समझने लगी हैं।

यह प्रकिया कब तक ऐसे ही चलेगी सोच कर सुप्रिया का माथा झन्न झन्ना उठता है।

नहीं अब ऐसा नहीं होगा वो अपनी देवरानी और अपनी बहुओं के साथ कभी ऐसा नहीं करेगी। देवरानी को अपनी छोटी बहन समझेगी और बहुओं को बेटी बनाएगी।

अब वह इस रैगिंग के खिलाफ आवाज भी उठाएगी।

 जो बातें उसने घर की शांति को बनाए रखने के लिए मयंक को कभी नहीं बताई अब उन्हें बताना जरूरी हो गया है । रोज की चिक चिक से वह भी तंग आ गई है। ऐसे ससुराल और परिवार में रहने से अच्छा है कि अब वो मयंक और अपने बच्चों के साथ अलग ही रहे।

जनवरी की ठंड में वह दोबारा नहा कर बीमार नहीं पड़ेगी उसने कोई गलती नहीं की है जिसकी सजा उसे मिलेगी। यह एक दिन की बात तो नहीं है। हर बात पर उसकी बेइज्जती की जाती है और उसे ताने सुनने को मिलते हैं दूसरों के सामने उसको हंसी का पात्र बनाया जाता है। 

बहुत सह लिया उसने अब और नहीं सहेगी। कल उसकी बहुओं के साथ भी उसकी जेठानी और सांस अगर ऐसा ही व्यवहार करेगी तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। 

उसने हिम्मत करके आखिर मयंक को वह बातें बता ही थी जो कभी नहीं बताई थी। उसे लगता था कि मयंक के परिवार में सभी उसे समय के साथ एक्सेप्ट कर लेंगे। लेकिन उसकी सोच गलत निकली। 

“तुमने पहले क्यों नहीं कभी मुझे कुछ बताया। इतना सब कुछ तुम सहती रही और  मुझे भनक भी नहीं पड़ने दी। मुझे तो लग रहा था की सब तुम्हारे व्यवहार से खुश हैं और  सबने तुम्हें अपना लिया है।”

“वह सिर्फ आपके सामने ही खुश होने का दिखावा करते थे। आपके ऑफिस जाते ही जो मेरी रैगिंग शुरू होती थी वह खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी।”

मयंक तुरंत अपनी मां के पास गया और वहीं अपनी भाभियों को भी बुलाने के लिए कहा।

 सभी को लगा कि मयंक उनके लिए कुछ लाया है। 

“हां देवर जी आपने बुलाया।” 

चहकती हुई उसकी बड़ी भाभी ने कहा 

“हां भाभी मैं कुछ बात करना चाहता हूं आप सबके सामने। यह हमारा घर है ना की कोई रैगिंग यूनिवर्सिटी जो कि आप इस तरह से सुप्रिया को हमेशा सताते हैं मेरे घर पर ना रहने पर। “

“अच्छा तो क्या कर दिया हम सबने  तेरी पत्नी के साथ? क्या शिकायत की है इसने तुमको हमारी?”

 मा़ं ने कहा तो वो बोला… 

“मां कभी कुछ नहीं कहा इसने मुझसे यही तो सबसे बड़ी गलती की है। चुपचाप सब सहती रही।  पर अब नहीं अब हम इस घर से जा रहे हैं।”

मयंक ने सुप्रिया का हाथ पकड़ा और अपना सामान उठाया और वो घर छोड़कर अपने नए घर में आ गया जहां सुप्रिया खुले सिर और अपनी मर्जी से रह सकती है।

आज उसकी आवाज में खनक है और चेहरे पर चमक जब अपने बेटों से वीडियो कॉल पर बात कर रही है। उसे रेगिंग यूनिवर्सिटी समान ससुराल हूं मुक्ति मिल गई थी।