shram ki khushi

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

गंगा नदी का पानी पूरे उफान पर था। गंगा के किनारे स्थित सारे छोटे, बड़े सभी शहर इन दिनों बाढ़ की चपेट में थे। दूरदर्शन के सभी चैनलों और सभी समाचार पत्रों में लगातार बस बाढ़ के ही चित्र तथा बाढ़ की ही खबरें देखने व सुनने को मिल रही थीं। अमोल के जीवन में यह पहला अवसर था जब उसने बाढ़ की विभीषिका को अपनी आँखों से साक्षात देखा हो। इससे पहले उसने बाढ के प्रकोप के बारे में पढ़ा और सुना तो अवश्य था लेकिन बाढ़ का ऐसा भयंकर स्वरूप उसे कभी पहले देखने को नहीं मिला था। शहर के बड़े बुजुर्गों का कहना था कि पूरे तीस वर्षों के बाद गंगा नदी में ऐसी भयंकर बाढ़ आयी थी। गंगा नदी का पानी खतरे के निशान को पार कर चुका था और लगातार बढ़ता ही चला जा रहा था। शहर के किनारे तो ऊँचा और मजबूत बांध होने के कारण शहर के लोगों पर बाढ़ का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन नदी के दूसरी तरफ स्थित सैकड़ों गांव पूरी तरह से जलमग्न हो चुके थे। सैकड़ों घर, घरों के सामान, मवेशी तथा औरतें, बच्चे और आदमी बाढ़ में बह चुके थे। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची थी। सरकारी प्रशासन बाढ़ से निपटने में परेशान था। शहर के सारे स्कूल, कालेज अनिश्चित काल तक के लिए बंद कर दिए गए थे। सेना के जवान बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने में जुटे थे। बाढ़ से घिरे गांवों में फंसे लोगों तथा पालतू जानवरों को बड़ी-बड़ी नावों द्वारा सुरक्षित ले आ कर शहर के विद्यालयों, धर्मशालाओं तथा सरकारी कार्यालयों के भवनों में ठहराया जा रहा था। उनके भोजन तथा इलाज की व्यवस्था की जा रही थी। स्थान कम पड़ जाने के कारण बहुत से लोग खुले मैदानों में लगे तम्बुओं में शरण लिए हुए थे। पूरे शहर में अफरातफरी मची हुई थी और जिधर देखो उधर बस बाढ़ की ही चर्चा थी।

अमोल का विद्यालय बंद हुए आज चौथा दिन था। सुबह का नाश्ता करने के बाद वह अपने घर के बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था तथा उसमें छपी बाढ़ की तबाही की तस्वीरें देख रहा था। उसी समय उसके तीन दोस्त अपूर्व, दीपक तथा गौरव आ पहुंचे।

“क्यों भाई अमोल! अकेले बैठे-बैठे क्या कर रहे हो?” दीपक ने पूछा।

“कुछ नही यार!…बस खाली बैठा बाढ़ की तस्वीरें देख रहा हूं…देखो तो कितनी भयंकर तबाही मचा रखी है बाढ़ ने। सैकड़ों गांव पूरी तरह से पानी में डूब गए हैं। हजारों लोग बेघर हो गए हैं लेकिन अभी भी पानी बढ़ता ही चला जा रहा है।” अमोल ने कहा।

“अरे तो तस्वीरें क्यों देख रहे हो….आओ बांध की तरफ चलें और सचमुच की बाढ़ देख आयें। हम तीनों तो उधर ही जा रहे थे सोचा तुम्हें भी साथ ले लें।” अपूर्व ने कहा।

“हां यार! यह तो अच्छी बात कही तुमने….. । मैं भी पिछले चार दिनों से घर में बैठे-बैठे बोर हो रहा था। चलो घूम कर आते हैं।” अमोल ने कहा और अपनी मम्मी से अनुमति ले कर दोस्तों के साथ बाढ़ देखने चल पड़ा।

चारों दोस्त घूमते, टहलते बांध की तरफ जा पहुंचे। बांध पर खड़े हो कर देखो तो जहां तक निगाहें जातीं सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्होंने देखा कि बांध के किनारे एक स्थान पर काफी भीड़ जमा थी। कौतूहलवश वे चारों दोस्त भी भीड़ के पास पहुंच गए। निकट जाने पर उन लोगों ने देखा कि एक स्थान पर बालू का ढेर लगा था और बालू के उस ढेर के पास ही सीमेंट की सैकड़ों खाली बोरियां रखी हुई थीं। सेना के कुछ जवान उन खाली बोरियों में जल्दी-जल्दी बालू भर रहे थे और कुछ दूसरे जवान उन बालू भरी बोरियों को अपनी-अपनी पीठ पर लाद कर बांध की दिशा में दौड़ते जा रहे थे। बालू के ढ़ेर के पास खडे बहत सारे लोग चपचाप तमाशा देख रहे थे। उन चारों की समझ में नहीं आया कि बात क्या है।

“क्या बात है अंकल…? यहाँ क्या हो रहा है…? कोई विशेष बात है क्या…?” अमोल ने भीड़ में खड़े एक व्यक्ति से पूछा।

“मुझे पता नहीं। मैं तो बस यूं ही घूमने के लिए निकला था …यहां भीड़ देखी तो आ कर खड़ा हो गया।” उस आदमी ने मुंह बिचका कर उत्तर दिया।

सेना के जवानों की भागदौड़ और हड़बड़ी देख कर अमोल को लगा कि हो न हो जरूर कोई विशेष बात है तभी ये लोग इस कदर परेशान हो रहे हैं। वह अपने आप को रोक नहीं सका और भीड़ से निकल कर आगे उस तरफ बढ़ गया जहां सेना के चार, पांच जवान खाली बोरियों में जल्दी-जल्दी बालू भर रहे थे। “क्या बात है अंकल! आप लोग इन बोरियों में बालू भर कर कहां ले जा रहे हैं?” अमोल ने एक जवान से पूछा।

“उधर गऊघाट के पास बाँध में दरार पड़ गयी है। वहां बालू भरी बोरियां रख कर हम लोग उस दरार को बंद करने की कोशिश कर रहे हैं। यदि जल्द से जल्द उस दरार को बंद नहीं किया गया तो पानी के दबाव के कारण बांध टूट भी सकता है। और यदि बांध टूट गया या बांध में आयी दरार बढ़ गयी और पानी अंदर आने लगा तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी। कम से कम आधा शहर तो डूब ही जाएगा।” बोरी में बालू भर रहे एक जवान ने अमोल को बताया।

“अरे, क्या ऐसा भी हो सकता है ? बांध टूट भी सकता है ?” बांध टूटने और आधे शहर के डूबने की संभावना की बात सुन कर अमोल घबरा गया। पिछले दिनों टी. वी. पर देखीं बाढ़ में डूबे गांवों की ढेरों तस्वीरें उसके आंखों के सामने घूम गयीं। “क्या हम भी आप लोगों की कुछ सहायता कर सकते हैं अंकल?” अमोल ने पूछा।

“हम लोगों ने छावनी में खबर भेज दी है। सहायता के लिए हमारे कुछ और जवान आने ही वाले हैं। तुम लोग चाहो तो तब तक इन खाली बोरियों में बालू भरने में हमारी मदद कर सकते हो…इससे दरार को रोकने के काम में तेजी आएगी।’ सैनिक ने कहा।

सैनिक के इतना कहते ही अमोल तथा उसके साथी बालू के ढेर के पास बैठ गए और खाली बोरियों में बालू भरने लगे। उनकी देखादेखी भीड़ में खड़े कुछ और लोग भी बोरियों में बालू भरने लगे। यह देख बालू भरने में लगे सेना के जवान बालू भरना छोड़ भरी हुई बोरियों को दरार तक पहुंचाने में लग गए। इस प्रकार काम दूनी गति से होने लगा और जब तक जवानों की दूसरी टोली वहां पहुंची तब तक दरार को भरने का काम पूरा हो चुका था।

“शाबाश बच्चों! तुम लोग बहुत सही समय पर हमारी सहायता के लिए आ पहुंचे । बाँध के दरार की चौड़ाई बहुत तेजी से बढ़ रही थी। हम तो डर रहे थे कि कोई अनहोनी न हो जाये। तुम लोगों की सहायता से समय रहते स्थिति पर काबू कर लिया हमने । अब चिन्ता की कोई बात नहीं है।” सेना के एक जवान ने अमोल की पीठ थपथपाते हुए कहा।

“यदि हम बाढ़ की इस तबाही से निपटने में आप लोगों की कुछ और सहायता कर सकते हैं तो बताइए अंकल। वैसे भी आजकल हम लोगों के स्कूल बंद हैं और हम लोग फुर्सत में ही हैं।” अमोल ने उस जवान से कहा।

“देखो दोस्त! हम लोगों ने बाढ़ में डूबे गांवों के हजारों लोगों को सुरक्षित ले आ कर यहां जगह-जगह बने कैम्पों में ठहराया है। इन बेचारों का सब कुछ बाढ़ में बह गया है। इस समय इन लोगों को भोजन, कपड़ा, दवा, इलाज सभी चीज की जरूरत है। सरकार इन लोगों के लिए व्यवस्था करने में जुटी है लेकिन एक साथ इतने लोगों को संभाल पाना बहुत मुश्किल काम है। चाहो तो तुम लोग इस काम में मदद कर सकते हो।”

“हम किस तरह से मदद कर सकते हैं अंकल..? क्या करना होगा हमें..?” अपूर्व बोल पड़ा।

“देखो, तुम सभी के घरों में पुराने कपड़े होंगे। तुम लोग अपने घरों तथा मुहल्ले के घरों से पुराने कपड़े इकट्ठा कर के कैम्पों में रह रहे लोगों में बांट सकते हो। इसी प्रकार तुम खाने-पीने का सामान एकत्र करके इन लोगों को दे सकते हो। कैम्पों में बहुत से लोग बीमार पड़ गए है। तुम लोग उनकी सेवा तथा इलाज के काम में भी सहायता कर सकते हो। इतने अधिक बेसहारा हो चुके लोगों को फिर से बसाने का कार्य सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। तुम लोग चाहो तो लोगों से चंदा इकट्ठा कर के बाढ़ पीड़ितों के लिए बने सरकारी सहायता कोष में जमा कर सकते हो। तुम लोगों का छोटा-छोटा प्रयास इस विपत्ति में बहुत बड़ी सहायता हो सकती है। बाढ़ पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है। संकट के इस समय में हम सभी देशवासियों का दायित्व है कि प्रकृति के इस प्रकोप से हम मिलजुल कर निपटें ।’ सेना का जवान बोला।

“बहुत अच्छा अंकल! हम चारों दोस्त आज से ही इस काम में जुट जायेंगे तथा अपने कुछ अन्य दोस्तों को भी साथ ले लेंगे। हर घर से हम एक पुराना कपड़ा तथा पांच रूपए का चंदा जरूर इकट्ठा करेंगे।” अमोल ने चहकते हुए कहा और सिर से पैर तक बालू से सने चारों दोस्त अपने घरों की तरफ चल दिए।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’