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नई नवेली दुल्हन की शर्मीली अदाओं का शंृगार कर मैं अपने ससुराल पहुंची। विवाह के रंगारंग कार्यक्रमों की मीठी चुहलबाजियों के साथ पिकनिक जाने का कार्यक्रम बनाया गया। एक दिन खाने-पीने, खेलने आदि की उत्तम व्यवस्था कर निकल पड़े। गाड़ी पार्क कर हाथों में सामान लिए कूदते-फांदते मस्ती करते पिकनिक स्थल की ओर चल पड़े। थोड़ी दूर चलने पर मेरी चाल कुछ धीमी पड़ गई तो पति के कदमों ने भी मेरा साथ दे दिया। परिवार के सभी सदस्य हमारी ओर से अंजान बन आगे बढ़ लिए। पास के तिराहे पर छोटी सी चट्टïान पर हम दोनों बैठ गए।

संयोग से स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों से भरा टिफिन मेरे पति के हाथों में ही था। अत: इन्होंने बरफी का टुकड़ा निकाल कर मुझे खिलाया और मैंने भी इन्हें बरफी का रसास्वादन करा दिया। फिर तेज कदमों से चलकर सभी के साथ हो लिए। खाने-पीने, मौज-मस्ती के बाद अंधेरा घिरने के पूर्व घर लौटने के लिए सभी जल्दी-जल्दी चलने लगे।

अचानक एक स्थान पर पहुंचकर सभी के कदम ठिठक गए। सामने था तिराहा, किस रास्ते से हम आए थे, दिशा भ्रम हो उठा। अचानक ही खुश हो मैं अपने पति से बोली, ‘देखिये, ये चट्टïान वाली राह ही सही है, यही तो है वो चट्टान, जिस पर बैठकर आपने बरफी खाई…! नासमझी भरा मेरा वाक्य अभी अधूरा ही था कि एक जोरदार सामूहिक अट्टïहास गूंज उठा और मैं शर्म से लाल हो उठी।

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