पंडित रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे। एक बार जब वे विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो पत्नी ने उनसे सवाल किया कि आज खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में केवल एक मुट्टी भर चावल भर है। पंडितजी ने पत्नी की ओर एक नजर देखा, फिर बिना कोई जवाब दिए घर से चल दिए।
पत्नी ने कहा, “मैंने जब सुबह आपसे भोजन के विषय में पूछा था तो आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की तरफ गई थी। मैंने उसी के पत्तों से यह शाक बनाया है।” पंडितजी ने निश्चिंतता के साथ कहा, “अगर इमली के पत्तों का शाक इतना स्वादिष्ट होता है फिर तो हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।”
जब नगर के राजा को पंडितजी की गरीबी का पता चला तो राजा ने उनको नगर में आकर रहने का प्रस्ताव दिया, किंतु पंडितजी ने मना कर दिया। राजा हैरान हो गए और स्वयं जाकर उनकी कुटिया में उनसे मिलकर इसका कारण जानने की कोशिश की। राजा ने काफी देर इधर-उधर की बातें कीं, फिर उन्होंने हिम्मत कर पंडितजी से पूछ ही लिया कि आपको किसी चीज का कोई अभाव तो नहीं है?
पंडितजी की पत्नी ने जवाब दिया कि मेरे पहनने के वस्त्र इतने नहीं फटे कि वे पहने न जा सकें और पानी का मटका भी नहीं फूटा कि उसमें पानी नहीं आ सके। इसके अलावा मेरे हाथों की चूड़ियां जब तक हैं, मुझे किसी चीज का क्या अभाव हो सकता है। राजा श्रद्धा से उस देवी के सामने झुक गए।
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