बड़ी संतान-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Santaan Story
Badi Santaan

Santaan Story: “हमारी” यानी हर मां-बाप की वो संतान जिसके नाम में ही “बड़ा” शब्द है…..घर की बड़ी संतान। वो संतान जो एक उम्र तक घर का छोटा सदस्य बना रहता है। जैसे ही माता-पिता दूसरी संतान के आने की खुशखबरी से पूरे घर में त्योहार सा माहौल बना देते हैं, वो बच्चा एकदम से बड़ा हो जाता है। परिवार के लोग तभी से उसको सिखाने लगे जाते हैं की उसका छोटा भाई या बहन आने वाला है। उसको कैसे अपने अनुज के साथ व्यवहार करना होगा। वो परिवार का नया सदस्य उस बड़े बच्चे को क्या कह कर बुलाएगा।

उस न‌ए सदस्य की पहली किलकारी हमारी बड़ी संतान “अनी” को बड़ा होने का हक दे देती है। बच्चे के रोने की आवाज़ सुनते ही वो बड़े गर्व और प्रेम से नवजात शिशु का नाम “खुशी” रख देती है। ऐसा लगा मानो उसको पता था के घर में उसकी छोटी बहन ही आएगी और उसने पहले से नाम सोच रखा था।

कहीं न कहीं अनी के मन में यह अहसास बहुत गहरा था की वो अब बड़ी बहन बनने वाली है। इतना गहरा की जब सूरज अपनी पहली किरण से आकाश के स्लेटी रंग को लाली में बदलने वाला था, अनी अपने पिता के साथ अस्पताल पहुंच जाती है। उस दिन वो रात भर नहीं सोई थी न ही पिताजी को सोने दिया। सुबह के आगमन के साथ ४:३० बजे उसने अपनी बहन का नामकरण करा। उस दिन उसने सबको जता दिया कि वो बड़ी बहन बन गई है।

फिर तो अनी की सुबह स्कूल जाते वक्त खुशी को गले लगा कर होती। दोपहर को स्कूल से आगमन भी उसको लिपट कर प्यार करने से होता। अनी की मां उसको समझाती की नवजात शिशु के पास मुंह हाथ धो कर आना चाहिए। बस फिर क्या था, स्कूल से आते ही मिनटों में वह कपड़े बदलती और हाथ मुंह साफ कर अपनी गुड़िया के साथ खेलने आ जाती। यूं ही खेलते-खाते और खिलौनों से शरारत करते दोनों बहनें बड़ी होने लगीं। पर इन सबके बीच, खुशी छोटी और अनी बड़ी बहन बनी रहतीं।

हर बात पर ज़िद करना, रोने का नाटक करना और तो और स्कूल में भी अनी के पीछे भागना, खुशी का रोज़ का काम हो गया था। इस बात पर क‌ईं बार बेचारी अनी को भी खुशी के साथ डांट पड़ जाती। पर अनी हर कदम बड़ी होने का फ़र्ज़ अदा करती।

घर में सबसे पहले मदद के लिए हम ज़्यादातर बड़ी संतान को ही आवाज़ लगाते हैं। हमारे मन उसको ज़्यादा जिम्मेदार समझने लगता है। इसी के चलते घर के काम और अपनी पढ़ाई में अनी समझदार होती गई।

दोनों बच्चे उस वक्त करीब ८ एवं १२ वर्ष के थे, जब उनकी माता के पेट में बहुत तेज़ पीड़ा हुई। पिताजी ने जब डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने आपरेशन की सलाह दी। माता को पथरी की तकलीफ़ थी।
अस्पताल की तरफ से चिन्ता नहीं थी। आजकल बहुत सुविधा होती है। मां बाप दोनों परेशान थे के आपरेशन के समय और बाद में सब कैसे होगा।
लेकिन उस वक्त डॉक्टर की सलाह को प्राथमिकता देकर अनी के पिता ने उसकी मां का इलाज कराया। भगवान की कृपा से घर संभालने के लिए उनको एक मदद मिल गई।

आपरेशन का दिन मिलाकर मां को दो दिन के लिए अस्पताल में रहना था। मां के घर में न होने के बावजूद, कामवाली आंटी की मदद से उस छोटी बच्ची अनी ने घर और खुशी का अपनी तरफ से पूरा ध्यान रखा। पिताजी को घर और खुशी की तरफ ज़्यादा सोचना नहीं पड़ा।
अनी खुशी को पढ़ाने के साथ अपनी पढ़ाई में भी कोई कमी नहीं आने देती। वो उसका स्कूल का गृहकार्य करने में मदद करती। आंटी जो खाना बनातीं, वो बहुत प्यार से खुशी को अपने हाथों से खिलाती। उसकी हर बात को संयम से संभालती। सुबह स्कूल जाने के लिए खुशी को तैयार करती, बाल बनाती और बैग लगाने में भी मदद करती।
मां के पीछे ही नहीं बल्कि उनके अस्पताल से आने के बाद भी अनी ने कुछ दिनों तक घर, छोटी बहन और मां का ध्यान करा।
धीरे धीरे घर पहले की तरह पटरी पर आ गया।
माता पिता के मन में इस बात की खुशी का सागर था कि अनी ने अपने बड़ी संतान होने का फ़र्ज़ पूरे तरीके से अदा करा। परन्तु उसके साथ कुछ बूंदें दुःख की भी थीं कि उनकी बड़ी संतान कितनी जल्दी “बड़ी” हो गई।
जो भी घर में आता माता पिता अनी की तारिफों के पुल बांध देते। उसको देखकर सबके मन से हर पल यही दुआ निकलती के प्रभु सबके घर ऐसी ही एक बड़ी संतान हो।

आज दोनों बच्चियां पढ़ लिखकर नौकरी करने लग गई हैं। दोनों ही मां-बाप का भी पूरा ध्यान रखते हैं। अब भी पूरा ध्यान रखती हैं। परन्तु आज भी जब कोई चिंता का विषय होता है, तो बच्चों के मां बाप बड़ी संतान को पहले बताते हैं। छोटी बेटी आज भी उनके लिए छोटी बच्ची है।

बड़ी संतान क‌ईं बार मां-बाप की जगह ले लेती है। बल्कि यूं कहें कि एक उम्र के बाद वो मां बाप जैसे हो जाते हैं। घर परिवार के कायदे, रिवाज़, त्योहार हो या लेन-देन, बड़ी संतान को मानो तो सब पता होता है। उसने मां को यह सब करते बहुत करीब से जो देखा होता है एवं हाथ बंटाया होता है।
जैसे बचपन में मां की बीमारी में अनी ने घर और बहन की हर जरूरत का ध्यान करने की कोशिश की थी, आज सचमुच बड़ी हो जाने पर वो उसी ईमानदारी से हर बात का ध्यान करती है।

खुशी की ऊंचे दर्जे की पढ़ाई हो या उसकी शादी, यूं लगता था की जैसे वो उसकी ज़िम्मेदारी है। उसको हर कदम पर टोकती, सही ग़लत समझाती और उसके हर दुःख में मज़बूत स्तंभ की तरह वो खड़ी रहती। मां बाप के जाने के बाद, वो बड़ी संतान अनी अब पूरे तरीके से घर की बड़ी हो गई।

यह भी देखे-प्रेम की भाषा-Story