purush se stree
purush se stree

Hindi Katha: सृष्टिकाल के आरम्भ की घटना है, भगवान् शंकर किसी वन में देवी पार्वती के साथ विहार कर रहे थे। उसी समय उनके दर्शनों की इच्छा से कुछ मुनिगण वहाँ पहुँचे। भगवान् शिव और देवी पार्वती प्रेमालाप में लीन थे। मुनिगण को देखकर पार्वती लज्जित हो गईं। उनकी यह दशा देखकर भगवान् शिव ने उस वन को शाप देते हुए कहा आज से जो पुरुष इस वन में प्रवेश करेगा, वह स्त्री हो जाएगा । ” उसी समय से पुरुषों ने उस वन में जाना बंद कर दिया और वह स्थान अम्बिका वन नाम से प्रसिद्ध होकर शिव-पार्वती का सुरक्षित प्रणय-स्थल बन गया।

एक बार वैवस्वत मनु के पुत्र इल शिकार खेलते हुए उस वन में आ निकले तो वे तत्क्षण एक सुंदर स्त्री में परिवर्तित हो गए। उनका घोड़ा भी घोड़ी बन गया। स्त्री बनकर इल अत्यंत दुखी हुए और वन में यहाँ-वहाँ भटकने लगे। उस वन के निकट ही बुध (जो बाद में बुध ग्रह बने) का आश्रम था। स्त्री के रूप में इल वहाँ पहुँचे तो बुध उन पर मोहित हो गए। उन्होंने स्त्री बने इल का नाम ‘इला’ रख दिया। फिर दोनों ने प्रेम-विवाह कर लिया। इला उसी आश्रम में बुध के साथ रहने लगीं। कुछ समय बाद इला ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ‘पुरूरवा’ रखा गया।

बुध के आश्रम में स्त्री बने इल को वर्षों बीत गए । एक दिन इला को दुखी देखकर पुरूरवा ने इसका कारण पूछा। इला ने अपना परिचय देकर पुरुष से स्त्री बनने की सारी घटना बताई।

माता के दुःख-निवारण का उपाय जानने के लिए पुरूरवा पिता बुध गए। तब बुध बोले – ” वत्स ! मैं राजा इल के इला बनने की कथा भली-भाँति जानता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि भगवान् शिव और देवी पार्वती के कृपा-प्रसाद से ही उनका उद्धार हो सकता है। इसलिए तुम गौतमी के तट पर जाकर उनकी आराधना करो। भगवान् शिव और पार्वती सदा वहाँ विराजमान रहते हैं। वे अवश्य तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेंगे। ‘

पिता की बात सुनकर पुरूरवा बड़े प्रसन्न हुए। वे उसी समय माता-पिता को साथ लेकर गौतमी के तट पर गए और वहाँ स्नान कर भगवान् की स्तुति करने लगे । उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव देवी उमा के साथ साक्षात् प्रकट हुए और उन्हें इच्छित वर माँगने को कहा। पुरूरवा ने वर- स्वरूप इला को पुन: राजा इल बनाने की प्रार्थना की। भगवान् शिव बोले ‘वत्स ! इल गौतमी गंगा में स्नान करने के बाद पुनः अपने वास्तविक रूप में परिवर्तित हो जाएँगे ।” यह कहकर वे अंतर्धान हो गए।

इला ने गौतमी गंगा में स्नान किया। स्नान के समय उनके शरीर से जो जल चू रहा था, उसके साथ उनके नारीजनोचित सौंदर्य, नृत्य और संगीत भी गंगा की धारा में मिल गए। वे नृत्या, गीता एवं सौभाग्या नाम की नदियों में परिणत होकर गंगा में आ मिलीं। इससे वहाँ तीन पवित्र संगम हुए। तभी से वह स्थान इला तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वहाँ इलेश्वर नामक भगवान् शिव की स्थापना भी हुई। इस तीर्थ में स्नान और दान करने से सम्पूर्ण यज्ञों का फल प्राप्त होता है।