रामेश्वरी- बुलाया था। वह पाँच रुपये माँगती थी।
कुंदनलाल- तो एक ही रुपये का तो फर्क था, क्यों नहीं रख लिया?
रामेश्वरी- मुझे यह हुक्म न मिला था। मुझसे जवाब-तलब होता कि एक रुपया ज्यादा क्यों दे दिया। खर्च की किफायत पर उपदेश दिया जाने लगता, तो क्या करती?
कुंदनलाल- तुम बिलकुल मूर्ख हो।
रामेश्वरी- बिलकुल।
कुंदनलाल- तो इस वक्त भोजन न बनेगा?
रामेश्वरी- मजबूरी है।
कुंदनलाल सिर थाम कर चारपाई पर बैठ गए। यह तो नई विपत्ति गले पड़ी। पूरियां उन्हें जंचती न थीं। जी में बहुत झुंझलाए। रामेश्वरी को दो-चार उलटी-सीधी सुनायी, लेकिन उसने मानो सुना ही नहीं। कुछ बस न चला, तो महरी की तलाश में निकले। जिसके यहाँ गये, मालूम हुआ, महरी काम करके चली गई। आखिर एक कहार मिला। उसे बुला लाए। कहार ने दो आने लिये और बरतन धोकर चलता बना।
रामेश्वरी ने कहा- भोजन क्या बनेगा?
कुंदनलाल- रोटी-तरकारी बना लो, या इसमें भी कुछ आपत्ति है?
रामेश्वरी- तरकारी घर में नहीं हे ।
कुंदनलाल-दिन भर बैठी रही, तरकारी भी न लेते बनी? अब इतनी रात तरकारी कहीं मिलेगी?
रामेश्वरी- मुझे तरकारी ले रखने का हुक्म न मिला था। मैं पैसा-धेला ज्यादा दे देती तो?
कुंदनलाल ने विवशता से दाँत पीसकर कहा- आखिर तुम क्या चाहती हो?
रामेश्वरी ने शांत भाव से जवाब दिया- कुछ नहीं, केवल अपमान नहीं चाहती।
कुंदनलाल- तुम्हारा अपमान कौन करता है?
रामेश्वरी- आप करते हैं।
कुंदनलाल- तो मैं घर के मामले में कुछ न बोलूं ?
रामेश्वरी- आप न बोलेंगे, तो कौन बोलेगा? मैं तो केवल हुक्म की ताबेदार हूं।
रात रोटी-दाल पर कटी। दोनों आदमी लेटे। रामेश्वरी को तो तुरन्त नींद आ गई। कुंदनलाल बड़ी देर तक करवटें बदलते रहे। अगर रामेश्वरी इस तरह असहयोग करेगी, तो एक दिन भी काम न चलेगा। आज ही बड़ी मुश्किल से भोजन मिला। इसकी समझ ही उलटी है। मैं तो समझाता हूँ यह समझती है, डाँट रहा हूँ। मुझसे बिना बोले रहा भी तो नहीं जाता। लेकिन अगर बोलने का यह नतीजा है, तो बोलना फिजूल है। नुकसान होगा, बला से। यह तो न होगा कि दफ्तर से आकर बाजार भागूँ। महरी से रुपये वसूल करने की बात इसे बुरी लगी, और थी भी बेजा। रुपये तो न मिले, उलटे महरी ने काम छोड़ दिया। रामेश्वरी को जगाकर बोले- कितना सोती हो तुम?
रामेश्वरी- मजूरों को अच्छी नींद आती है।
कुंदनलाल- चिढ़ाओ मत, महरी से रुपये न वसूल करना।
रामेश्वरी- वह तो लिये खड़ी है शायद।
कुंदनलाल- उसे मालूम हो जाएगा, तो काम करने आएगी।
रामेश्वरी- अच्छी बात है, कहला भेजूंगी।
कुंदनलाल- आज से मैं कान पकड़ता हूँ तुम्हारे बीच में न बोलूँगा।
रामेश्वरी- और जो मैं घर लुटा दूं तो?
कुंदनलाल- लुटा दो, चाहे मिटा दो, मगर रूठो मत। अगर तुम किसी बात में मेरी सलाह पूछोगी, तो दे दूँगा। वरना मुंह न खोलूंगा।
रामेश्वरी- मैं अपमान नहीं सह सकती।
कुंदनलाल- इस भूल को क्षमा करो।
रामेश्वरी-सच्चे दिल से कहते हो न?
कुंदनलाल- सच्चे दिल से।
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