प्रीति की बर्थडे गिफ्ट-21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां गुजरात
Preeti ka Birthday Gift

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

बालमन की कहानियां गुजरात: सूरज विला में सुधा बहन और सुरेश भाई रहते हैं। उसका एक लड़का है राकेश और उससे दो वर्ष छोटी एक लड़की है प्रीति। दोनों का जन्मदिन एक ही दिन आता है। इसलिए उनका जन्मदिन भी साथ में मनाते है। राकेश के दोस्त और प्रीति की सहेलियां भी आती हैं। उस दिन सुधा बहन के घर में आनंद ही आनंद होता है।

घर रंग-बिरंगे गुब्बारों से इन्द्रधनुषी हो जाता है और पिपूडी की आवाज से गूंज उठता है। प्रीति और राकेश को बेहद खुशी होती है।

राकेश नौ वर्ष का हुआ और प्रीति सात साल की हुई। राकेश ने कई दिनों से तय किया था कि पप्पा जब पूछे तो क्या मांगना? इसलिए सुरेश भाई ने जब पूछाः “बेटा! इस जन्मदिन पर तुझे क्या लाकर दूँ?”

तो राकेश ने तुरंत ही कहाः “पप्पा! लाइटवाली साइकिल! “सुरेश भाई ने कहाः “जरूर, जाओ मंजूर।”

फिर प्रीति को पूछाः “कुछ नहीं पप्पा! हम सब मिलकर गीत गाएंगे, नाचेंगे, अच्छा-सा बढ़िया खाना खाएंगे और मजा करेंगें। “यह सुनकर राकेश ने कहाः “देख प्रीति! तुम अगर ऐसा मानती हो कि मेरी साइकिल तेरी साइकिल है तो यह बात भूल जाना। मैं मेरी साइकिल को छूने भी नहीं दूंगा। फिर तुम रोने मत बैठ जाना। तुम्हें जो भी मंगाना हो, पप्पा-मम्मी को कह देना। पर…साइकिल को भूल जाना।”

प्रीतिः “तुम्हारी साइकिल मैं भला क्यों लूँगी? मुझे अगर लेनी होगी तो नई साइकिल ही मेरे लिए लूँगी न?

मम्मी, फिलहाल तो मुझे कुछ भी नहीं लेना है। “ऐसा कहकर वह तो खेलने के लिए चली गई।”

फिर थोड़े दिनों में ही दोनों का जन्मदिन बहुत ही अच्छी तरह से मनाया गया। सुरेश भाई राकेश के लिए उसकी मनपसंद साइकिल ले आए। बस, फिर तो राकेश की सुबह साइकिल के साथ होती थी और रात भी साइकिल के साथ। सुबह हुई नहीं कि ट्रीन…ट्रीन…घंटी बजाते राकेश भाई साइकिल की सवारी करने निकल पड़ते। सोसायटी में चक्कर लगाता। किसी को अपनी नई साइकिल नहीं देता। उसकी चाबी वह अपने पास ही रखता!

थोड़े दिनों में ही उसकी साइकिल पर धूल जमने लगी। कहीं से कीचड़ भी लग गया। इसलिए एक दिन नल में पानी की पाईप लगाकर धोने लग गया साइकिल को! साइकिल चमका दी। फिर प्रीति को कहाः “देखा न इस बंदे को, देखी न मेरी साइकिल! है न चकाचक!”

प्रीति ने कहाः “अच्छी है पर तुम इसे किसी को देते नहीं हो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता है।”

“मैंने तो तुम्हें पहले ही कह दिया था, अब हुआ न मन साइकिल चलाने का? पर…तुझे तो दूंगा ही नहीं।”

“नहीं रे नहीं! मुझे चाहिए ही नहीं, पर तुम्हारे पक्के मित्र को भी न दो, यह तो बहुत बुरा!”

“बस बहुत सयाना मत बन! कुछ भी मत बोल। “फिर तो ऐसे संवाद घर में बार-बार होने लगे। राकेश हर दो-तीन दिन के बाद उसकी साइकिल को धोने लगा। ऊपर से डींग भी मारता।

सुरेश भाई के घर के आगे छोटा-सा बाग था। हर रोज माली आता, खाद देता, पानी पिलाता और फूल-पौधे की देखभाल करता। पर एक बार उसे एक हफ्ते के लिए बाहर गांव जाना हुआ। इसलिए वह न आ सका।

प्रीति ने देखा कि दो ही दिन में फूल-पौधे मुरझाने लगे हैं। उसी वक्त राकेश साइकिल धोने बैठा था। फिर तो प्रीति को गुस्सा आया। उसने तुरंत ही नल बंद कर दिया। इसलिए राकेश चिल्लाने लगाः “किसने नल बंद कर दिया? प्रीतुडी ही होगी।

“देखती नहीं हो मैं साइकिल धो रहा हूँ?”

अब प्रीति भी धाम-धाम करती आई।

“हां, बोल मैंने ही नल बंद किया है। तू साइकिल धोने में कितना पानी बिगाड़ रहा है, उसकी खबर है तुझे? और यह बाग देख! माली नहीं है लेकिन तू और मैं तो है न? तुझे साइकिल दिखती है पर ये पौधे नहीं दिखते हैं क्या? पहले पाईप से उनको पानी पिला, बाद में ही तेरी साइकिल धोने दूंगी।”

राकेश ने देखा तो पानी के बिना मिट्टी सूख गई थी। पत्तें भी झुक गए थे। उसने प्रीति से कहाः “प्रीति जा! आज से, पहले पौधे को पानी, बाद में ही साइकिल! बस, अब खुश!

प्रीति ने तुरंत ही नल खोल दिया। राकेश फूल पौधे को पानी पिलाने लगा। उस दौरान सुरेश भाई बाहर से आए, उन्होंने कहाः “शाबाश राकेश! माली नहीं है, पर तू पौधे को पानी पिला रहा है, यह देखकर बहुत अच्छा लगा।” फिर सुरेश भाई घर में चले गए। राकेश ने प्रीति को कहाः “बैंक्यु प्रीति! तेरे कारण ही मुझे शाबाशी मिली, थैक्यु!”

तब प्रीति ने कहाः “भैया, आप साइकिल धोने में इतना सारा पानी क्यों व्यय करते हो? एक बाल्टी पानी से भी साइकिल को धो सकते हो। साइकिल रोज धुलो पर एक बाल्टी पानी से, इससे पानी की बचत होगी और साइकिल भी नई दिखेगी।”

“हां, प्रीति! तेरी बात सही है। बस, कल से ऐसा ही करूंगा। रोज सुबह में बाग में पानी पिलाना बाद में बाल्टी में पानी लेकर साइकिल धोना!”

थोड़े दिन में माली आ गया। माली पौधे को पानी पिला देता, उसके बाद राकेश बाल्टी में पानी लेकर साइकिल धोता है।

ऐसे ही पूरा साल बीत गया। फिर से उन दोनों का जन्मदिन आया। हर साल की तरह सुरेश भाई ने पूछाः “राकेश! इस साल तेरे लिए क्या लाना है?”

राकेश ने कहाः “पप्पा! अब मेरे लिए कुछ नहीं लाना है। पर प्रीति के लिए कुछ ले आओ।”

तब प्रीति ने कहाः “तुमने तो मुझे गिफ्ट दे दिया है!”

“मैंने तुम्हें गिफ्ट दिया है?”

प्रीति ने कहाः “तुम कम पानी से साइकिल साफ-सुथरी रखते हो, यही मेरा गिफ्ट है। हमको टीचर ने पानी बचाने को कहा था और तुम बचाते हो। बस, मुझे यही चाहिए था।”

राकेश तो प्रीति की बात सुनता ही रहा। वह बोलाः “हमको भी सर जी ने पानी बचाने को कहा था।”

और कहाः “प्रीति! आज से तू भी साइकिल चलाना! यह साइकिल हम दोनों की!”

“सच्ची… देखो पप्पा, मुझे कितनी अच्छी भेंट मिली!”

उसी वक्त सुधा बहन प्रीति के लिए छम…छम…बड़े हुए पायल लेकर आए। और प्रीति को पहनाया। प्रीति को बहुत ही आनंद आया! “मुझे तो कितनी सारी बक्षिसे मिली! “पायल पहनकर वह साइकिल पर बैठी। राकेश ने साइकिल पकड़कर उसे चलाना सिखाने लगा।

सुरेश भाई और सुधा बहन प्रसन्नता से अपने दोनों बालकों को देखते ही रहें!

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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