pinjre ki bechaini
pinjre ki bechaini

एक मदारी था। वह दिन भर घूम-घूमकर अपने बंदर के तमाशे दिखाता और उससे जो आमदनी होती, उससे अपने और बंदर के खाने के लिए कुछ रूखा-सूखा खरीदकर पेट भर लेता। एक दिन उसका बंदर एक चिड़ियाघर के सामने से गुजर रहा था कि उसने देखा- कुछ बच्चे पिंजरे में बंद एक बंदर को केले खिला रहे थे। उसे बहुत ईर्ष्या हुई कि मुझे दिनभर की मेहनत के बाद थोड़ा सा खाने को मिलता है और यह आराम से बैठकर माल उड़ा रहा है।

उसने मदारी से यह बात कही। मदारी ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। हारकर वह उसे चिड़ियाघर के मैनेजर के पास ले गया और कहा कि मेरा बंदर कुछ दिन आपके बंदर के साथ रहना चाहता है। मैनेजर के लिए तो यह और भी अच्छा था। उसने इजाजत दे दी। दो-तीन दिन तो मदारी के बंदर को स्वादिष्ट चीजें खाकर बहुत अच्छा लगा, लेकिन फिर उसे बंद पिंजरे में बेचौनी होने लगी। उसे लगा कि बाहर भले ही उसे अच्छा खाने को नहीं मिलता था, लेकिन कम से कम वह आजादी से जहां चाहे, वहाँ घूम-फिर सकता था। उसने मैनेजर के जरिए मदारी तक संदेश पहुँचा दिया। कि वह आकर उसे ले जाए।

सारः स्वतंत्रता से बढ़कर कोई सुख नहीं होता।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)